शनिवार, 23 जून 2012

आदिवासी उपयोजना में करोड़ों का गोलमाल


आदिवासी उपयोजना में करोड़ों का गोलमाल

चहेते उपयंत्री पर चौधरी मेहरबान

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। जल संसाधन विभाग के सब डिवीजन सिवनी में जिला सेक्टर बना राज्य सरकार ने आदिवासी उपयोजना के अंतर्गत करोड़ों के कार्य क्षेत्रीय विकास के लिए करायेए लेकिन करोड़ों खर्च करने के बाद भी जिले पर ये विकास निर्माणाधीन कार्य औचित्यहीन साबित हुए हैं। इस योजना के अंतर्गत खर्च की गई राशि में भ्रष्ट अफसरों और छुटभैया नेताओं की तिजोरियां अवश्य भर गई हैं।बताया जाता है कि इस योजना के अंतर्गत सर्वाधिक काम उपयंत्री चौकसे और प्रीतम सिंह राजपूत के मार्फत अनुविभागीय अधिकारी डीआर चौधरी ने कराये हैं और इनके निर्माण कार्यों की शिकायतों का भी बोलबाला क्षेत्रीय स्तर पर बहुत जोरों। शोरो से हैए लेकिन यह शिकायतें नगारखाने की तूती साबित हो रही हैं।
उपयंत्री राजपूत की तो बात ही निराली है। सूत्र बताते हैं कि यह अपने आप को कार्यपालन यंत्री समझकर मापदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए निर्माण कार्य को अंजाम देता है। इसके भ्रष्टाचार करने की नीति भी बहुत ही निराली होती है। यह अंदर उपयोग की जाने वाली सामग्री में गुणवत्ता  पर भारी हेरफेर कर ऊपर से अच्छी सामग्रियों का उपयोग कर अपने निर्माण कार्य को 100 प्रतिशत सही बताने का प्रयास करता हैए लेकिन अंदर भ्रष्टाचार की दलदल रहती हैए जिसे देखना विभागीय अधिकारी के बस की बात नहीं होती और जो उच्चाधिकारी इसे जानते हैंए उन्हें कमीशन फेंक पहले ही उनका मुंह बंद कर दिया जाता है।
ऐसा ही मामला झीलपिपरिया में घटित हुआ हैए जहां पर आदिवासी उपयोजना के अंतर्गत बनाये गये लगभग 36 लाख की लागत से रपटा कम स्टॉप डेम में उपयंत्री राजपूत ने भारी मात्रा में भ्रष्टाचार कर खुद की और अपने अनुविभागीय अधिकारी यआकाद्ध की तिजोरी भरी है। इस बात की शिकायत क्षेत्रीयजन ने विभागीय स्तर पर कियाए लेकिन उच्चाधिकारी इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लेते। आश्चर्य की बात तो यह है कि कार्यपालन यंत्री हेमंत त्रिवेदी भी इस भ्रष्टाचार के मामले पर ध्रतराष्ट्र बन पूरे मामले को दबाने का प्रयास कर रहे हैं। विश्वसनीय सूत्रों की माने तो हेमंत त्रिवेदी भी इस पूरे मामले में मोटी रकम के नीचे दबकर इस मामले को रफा।दफा करने में लगे हुए हैं। यहीं नहीं सूत्र तो यह भी बताते हैं कि इस मामले  की शिकायत जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल को भी की गई थीए लेकिन मोहन चंदेल ने शिकायत को यह कहकर ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया कि तकनीकी मामले पर हम जनप्रतिनिधि पैदल होते हैं और जो इंजीनियर कहेंगे वहीं सही निर्माण कार्य माना जायेगा। इन शब्दों से यह प्रतीत होता है कि हमारे जनप्रतिनिधि भी इन भ्रष्टाचारियों के आगे बौने हैं और ये भ्रष्ट अधिकारी इन जनप्रतिनिधियों को अपने हाथ में धन की डमरू लेकर बंदरों के माफिक इन्हें नचाते रहेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं: