आखिर क्यों लिया
रीढ़ विहीन कांग्रेस ने यूटर्न
महाकौशल के प्रबंधन गुरू की भूमिका संदिग्ध
(नन्द किशोर)
भोपाल (साई)।
भ्रष्टाचार के मामले में सदन से सड़कों तक संघर्ष का एलान करने वाली सवा सौ साल
पुरानी कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के यूटर्न से नेता ही नहीं कार्यकर्ता भी
असमंजस में हैं कि अखिर क्या वजह है कि कांग्रेस को बैकफुट पर जाने को मजबूर होना
पड़ा जबकि इस मामले में भाजपा की चूक का फायदा कांग्रेस के पाले में ही चुका था। इस
मामले में कांग्रेस के महाकौशल के एक स्थापित स्वयंभू प्रबंधन गुरू राजनेता की
भूमिका संदेह के दायरे में आ रही है।
भाजपा के एक
पदाधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि
कांग्रेस के विधायक कल्पना पारूलेकर और राकेश सिंह की बर्खास्तगी के आनन फानन में
लिए गए निर्णय से भाजपा के आला नेता बेहद भयाक्रांत थे। भाजपा के नेताओं को इससे
यह भय सता रहा था कि कहीं कांग्रेस के विधायक एक साथ त्यागपत्र देकर नया संकट ना
खड़ा कर दें।
उक्त पदाधिकारी ने
आगे कहा कि भाजपा इस निर्णय से रक्षात्मक मुद्रा में साफ दिखाई दे रही थी। इसके
बाद भाजपा के संकट मोचकों ने इस समस्या को हल करने के लिए कांग्रेस के आला नेताओं
से भी संपर्क साधा। कांग्रेस के हाथ में आए इस मौके से कांग्रेस के नेताओं ने भी
इस मसले पर हाथ ही उठा दिए थे।
उन्होंने कहा कि
इसी बीच भाजपा का संपर्क कांग्रेस के एक प्रबंधन गुरू से हुआ। ये प्रबंधन गुरू
महाकौशल अंचल से आते हैं। कहा जा रहा है कि इन्हीं की बिछाई बिसात पर कांग्रेस एक
बार औंधे मुंह गिर गई है। चर्चा है कि उक्त दोनों ही विधायकों की सदस्यता समाप्त
करने के फैसले के बाद चुनाव आयोग द्वारा अगर दोनों सीट रिक्त घोषित कर दी जातीं तो
उनकी बहाली फिर बेहद मुश्किल होती।
कहा जा रहा है कि
उक्त दोनों की विधायकों को यह बात समझाई गई कि अगर एसा हुआ तो उनकी सीटों पर होने
वाले उपचुनावों में भाजपा पहले की तरह कब्जा जमाने में देरी नहीं करेगी। इन
परिस्थितियों में दोनों ही नेताओं ने पार्टी की लाईन से इतर अपना माफीनामा भिजवा
दिया है।
कांग्रेस के
कार्यकर्ता इन नई उपजी परिस्थितियों से असमंजस में हैं, क्योंकि जिस मामले
को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बी.के.हरिप्रसाद, नेता प्रतिपक्ष अजय
सिंह जैसे नेता भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहे थे, अब इसमें क्या किया
जाए। इस मामले में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की भूमिका भी
संदिग्ध ही मानी जा रही है।
यहां यह भी
उल्लेखनीय है कि कल्पना पारूलेकर और चौधरी राकेश सिंह के मामले को लेकर कांग्रेस
के तेवर इतने उग्र थे कि विधायकों ने सामूहिक तौर पर आलाकमान से त्यागपत्र देने की
पेशकश तक कर डाली थी। इसके बाद अचानक ही दोनों विधायकों ने आसंदी पर चढ़ने पर खेद
जता दिया है।
ज्ञातव्य है कि
इसके पूर्व विधानसभा स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने बुधवार को राज्यपाल रामनरेश यादव
से मुलाकात कर उन्हें कांग्रेस विधायकों द्वारा आसंदी के साथ किये गये दुर्व्यवहार
की सीडी दिखाई। इस सीडी में सबसे पहले चौधरी राकेश सिंह एवं कल्पना पारुलेकर नारे
लगाते हुए सभापति की आसंदी तक पहुंचते हैं। सभापति ज्ञानसिंह आसंदी से खड़े होते
हैं तो कल्पना पारुलेकर दोनों हाथ उनके कंधे पर रखकर उन्हें जबरन कुर्सी पर बिठाती
हैं। इसके बाद वे उनके सामने खड़े होकर नारे लगाने लगती हैं। ज्ञानसिंह को मार्शल
कुर्सी से उठाकर आसंदी के पीछे ले जाते हैं। स्पीकर रोहाणी ने इस संबंध में
राज्यपाल रामनरेश यादव को विधानसभा के नियमों संबंधी पुस्तक पढ़ाते हुए बताया कि इन
दोनों सदस्यों की बर्खास्तगी नियमानुसार है।
उसी समय विधानसभा
के डिप्टी स्पीकर हरवंश सिंह की भूमिका को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं। मंगलवार को
सुबह साढ़े बजे जब कांग्रेस विधायक दल ने स्पीकर रोहाणी को उनके कक्ष में बंधक बना
लिया था तब सदन के संचालन के लिए डिप्टी स्पीकर हरवंश सिंह को कमान संभालनी थी
लेकिन वे विधानसभा ही नहीं पहुंचे।
मजबूरी में
ज्ञानसिंह को सभापति के रूप में आसंदी पर बिठाया गया। मंगलवार के पूरे घटनाक्रम को
लेकर हरवंश सिंह ने स्वयं को अलग रखा था लेकिन बुधवार को जब विधानसभा ने बहुमत के
आधार पर कांग्रेस के दो विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी तब अचानक हरवंश सिंह
सक्रिय हुए। बताते हैं कि उन्होंने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और संसदीय कार्यमंत्री
नरोत्तम मिश्रा के बीच संवाद बहाल करने का प्रयास किया, लेकिन तब तक देर हो
चुकी थी। विधानसभा सचिवालय दोनों सदस्यों की सदस्यता समाप्त कर उनकी सीट को शून्य
घोषित करने की सूचना निर्वाचन आयोग को भेज चुका था।
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