शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

देश गुजरात में मोदित्व का अहसास


देश गुजरात में मोदित्व का अहसास

(संजीत त्रिपाठी)

अहमदाबाद (साई)। बीते दस साल में तीसरी बार जाना हुआ अहमदाबाद। हालांकि इसी साल मई में जाना हुआ था लेकिन वह अति संक्षिप्त यात्रा थी। इस बार कुछ दिन रुकने का मौका मिला। दस सालों का बदलाव स्टेशन पर उतरते ही महसूस हुआ। यह महसूस हुआ स्टेशन के सामने एक होटल में भोजन करते हुए जहां भोजन में मीठा नहीं था। आमौतर पर गुजरात में मीठे भोजन की परंपरा है लेकिन यह चौंकानेवाला परिवर्तन नजर आया. भले ही गुजरात में भोजन मिठास खत्म हो गई हो लेकिन हम जहां भी गये वहां मोदी तत्व का अहसास हमें जरूर हुआ।
देश के किसी राज्य में चुनाव हो तो अक्सर एन्टी इन्कम्बसी का सुर सुनाई देता ही है. यानी सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ लोगों का गुस्सा. लेकिन गुजरात की मीडिया में ऐसी कोई चर्चा नहीं है। गुजरात का स्थानीय मीडिया इस बात के आंकलन में जुटा है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ताधारी भाजपा कितनी सीटें बढ़ाएगी। यह आश्चर्य की बात हो भी सकती है और नहीं भी। आश्चर्य इसलिए कि आमतौर पर ऐसा होता नहीं। लेकिन आश्चर्य इसलिए भी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह गुजरात है जहां कांग्रेस के पास मोदी का विकल्प नजर नहीं आता, यह बात दबी जुबान से गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संस्कार केंद्र मार्ग स्थित कार्यालय राजीव गांधी भवन में बैठे नेता भी स्वीकारते हैं। लोगों के मुताबिक आमतौर पर शांत रहने वाले इस दफ्तर में आजकल लोगों की आमदरफ्त बढ़ गई है।

1985 में गुजरात की राजनीति में पटेल( करुआ/लेउवा) समाज का दबदबा तोड़ने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने खाम ( क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) फैक्टर तैयार किया, नतीजा यह रहा कि कांग्रेस को राज्य में ऐतिहासिक सफलता मिली। अब जब भाजपा के पुराने चेहरे रहे और कांग्रेस का चेहरा बन चुके शंकर सिंह बाघेला चुनावी रण में उतर रहे हैं तो वह इसी खाम फैक्टर से फिर से आजमाने की तैयारियों में लगे हैं। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 27 साल पुराना यह जाति फैक्टर वर्तमान परिस्थितियों में गुजरात कांग्रेस के लिए कितना असरकारक होगा।
माना जा रहा है कि शंकर सिंह वाघेला  प्रभाव उत्तर गुजरात में पड़ सकता है। इसी तरह मोदी के दूसरे कट्टर विरोधी केशूभाई पटेल जिन्होंने अब भाजपा से अलग होकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बना ली है, का दावा है कि वे इस बार के चुनाव में निश्चित ही नरेंद्र मोदी को पटखनी दे देंगे। उनके इस दावे की सच्चाई तो नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि वे कच्छ-सौराष्ट्र में असर दिखा सकते हैं। इसके पीछे वे कुछ गणित भी बताते हैं, इस गणित के अनुसार पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 40 सीटें ऐसी थी जिन पर भाजपा एक से पांच हजार मतों के अंतर से विजयी हुई थी। इन सीटों पर अगर केशुभाई दमदार उम्मीदवार खड़े करते हैं तो भाजपा को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि यह भी एक मुद्दा ही है कि केशुभाई को इतने दमदार उम्मीदवार कहां से मिलेंगे? देने वाले इस बात का भी जवाब यह कहकर देते हैं कि जब केशुभाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता प्रवीण मनियार और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांशीराम राणा का साथ मिल सकता है तो फिर दमदार उम्मीदवार मिलेंगे ही।
इस बीच यह भी जानना भी दिलचस्प रहा कि केशुभाई के पीछे एक बड़े उद्योगपति नरेश पटेल जो कि उन्हीं के समुदाय के हैं, हाथ और दिल, दोनों ही खोलकर खड़े हैं। गौरतलब है कि मोदी ने स्वयं अभी तक केशुभाई की पार्टी बनाने के मुद्दे पर एक बार भी मुंह नहीं खोला है, उनके तकनीकी टीम के एक नजदीकी के मुताबिक मोदी आखिर-आखिर में सिर्फ यही कहेंगे कि श्जो अपने दोनों पैर पर खड़ा नहीं हो सकता वो पार्टी क्या खड़ा करेगाश्।

परिसीमन बढ़ाएगा कांग्रेस-भाजपा की परेशानीरू गुजरात में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद होने वाला यह पहला विस चुनाव होगा। नए परिसीमन के अनुसार कुल 182 विधानसभा क्षेत्रों में से अब नौ सीटें ऐसी हो गई हैं जो मुस्लिम मतदाता बाहुल्य हैं। अर्थात यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक होंगे। माना जा रहा है कि अपने को निरपेक्ष साबित करने के लिए इस बार प्रदेश भाजपा मुस्लिम उम्मीदवार उतार सकती है जबकि पिछले दो विधानसभा चुनावों के दौरान एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दी गई थी। मुस्लिम फैक्टर भी यहां एक बड़ा मुद्दा है, खासतौर पर अहमदाबाद में। माना जा रहा है कि चुनाव से पूर्व हिंदु मतों का ध्रुवीकरण किसी न किसी बहाने किया जाएगा ताकि एकतरफा मत भाजपा को मिले। एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं कि जिन हिंदू इलाकों में श्लाउडस्पीकरश् लगे होंगे, ये मान लीजिए कि वहां से कांग्रेस का सफाया तय है।
गुजरात विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन में ऐसा नहीं हुआ है कि सत्ताधारी भाजपा या विपक्ष कांग्रेस को फायदा ही हुआ हो। दोनों ही दलों के कई वर्तमान विधायकों के लिए मशक्कत की स्थिति आ गई है क्योंकि उनके श्योर शॉट वाले इलाके हट गए हैं तो नए इलाके जुड़ गए हैं, कुछ सीटें ही गायब हो गई हैं और नई सीटें बनीं है। परिसीमन का असर कांग्रेस विधायकों पर भी पड़ा है तो भाजपा के मंत्री-विधायकों की सीट पर भी। कांग्रेस के करीब 16 विधायक ऐसे हैं जिनकी या तो सीट ही नहीं रही या फिर सीट में से कुछ इलाके हटे और नए जुड़े हैं। वहीं दो राज्यमंत्री पुरुषोत्तम सोलंकी और जसवंत सिंह भाभोर की घोघा तथा रणधीकपुर सीटों का विलय हो गया है। परिसीमन के बाद बदले जातिगत समीकरण के चलते कई मंत्रियों तक के निर्वाचन क्षेत्र बदलने की चर्चा यहां राजनीतिक गलियारों में है। अहमदाबाद में ही जमालपुर और कालूपुर विधानसभा सीटें विलोपित हो गई तो जमालपुर सीट का खडिया विस सीट में विलय हो गया है। खडिया इलाके में हिंदू मतदाता प्रभावी थे तो जमालपुर में मुस्लिम वोटर। विलय के बाद स्थिति यह है कि मुस्लिम मतदाता ही निर्णायक भूमिका में है, ऐसे में मुस्लिम उम्मीदवारों से परहेज करने वाली गुजरात भाजपा को यहां से मुस्लिम उम्मीदवार की तलाश है।

मोदी का मिशन हैट्रिकरू इन सब के बीच यह तय माना जा रहा है कि मिशन हैट्रिक की तैयारी में जुटे नरेंद्र मोदी एक बार फिर से न केवल वर्तमान विधायकों की बल्कि कुछ मंत्रियों की भी टिकट काट सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान 2007 के नरेंद्र मोदी ने दुबारा चुनाव जीतने के लिए नए चेहरों को साथ लिया था। लगभग 50 विधायकों के टिकट काटने के साथ ही बाकी सीटों पर भी नए चेहरे उतारे गए। नतीजा कुल 182 सीटों में 117 विधायकों के साथ तीसरी बार मोदी सत्ता में आए। देशगुजरात डॉट कॉम के नाम से न्यूजपोर्टल चलाने वाले स्थानीय पत्रकार जपन पाठक का आंकलन है कि इस बार भाजपा 110 से 115 सीटों तक ही रहेगी। वहीं एक भाजपाई का आंकलन है कि 102 के आसपास सीटें भाजपा लाएगी।

अब यह उस मुख्यमंत्री के लिए एक चुनौती है जिसका नाम प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल माना जा रहा हो, कि वह विधानसभा चुनाव में पिछले परफार्मेंस को और कितना बेहतर कर सकता है। इसी बात पर न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी विरोधियों, जिनमें भाजपाई भी शामिल हैं, की नजर टिकी हुई है। संजय जोशी विवाद को स्थानीय भाजपा कोई मुद्दा नहीं मानती। भाजपा की तकनीकी टीम से जुड़े देसाई पिछले उदाहरणों के साथ कहते हैं कि जोशी के नेतृत्व में तो भाजपा कई चुनाव हारी थी। इनमें पालिका-पंचायत से लेकर विधानसभा उपचुनाव भी शामिल थीं। बात छवि की करें तो निरूसंदेह मोदी की छवि शहरी इलाकों में जबरदस्त है। यह छवि महज इस बात पर नहीं टिकी है कि उन्होंने गुजरात स्वाभिमान को बढ़ावा दिया या गुजरात गौरव को और ऊंचा किया हो, लोग किए गए कार्यों का ब्यौरा देने लगते हैं। सेना से जुड़े एक जवान ट्रेन में मिले। वे बताते हैं कि उनके घर में अधिकांश लोग प्राइमरी स्तर के शिक्षक हैं। वे बताते हैं कि प्राइमरी स्कूलों में कंप्यूटराज्ड सिस्टम है कि अगर शिक्षक तय समय से देर से आता है तो थंब इंप्रेशन के माध्यम से उसकी अटेंडेंस ही नहीं लगेगी, इसी तरह अगर स्कूल बंद होने के समय से कुछ पहले भी कोशिश की जाए तो थंब इंप्रेशन नहीं लगेगा। सेना के जवान की इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव न ले पाने का अफसोस मुझे रहेगा। वहीं जब किए गए कार्यों को गिनाने वालों को यह तर्क दिया गया कि इतने साल सत्ता में रहने वाला काम तो करेगा ही तब उनका कहना था कि यह सही है लेकिन जो मोदी ने किया वो सालों से कई लोग नहीं कर पाए थे।
विकास का दूसरा नाम मोदीरू गुजरात के पांच करोड़ गुजरातियों का विकास मोदी का राजनीतिक मंत्र है। इस मंत्र का असर गुजरात में दिखता भी है। गुजरात निश्चित ही दस साल आगे नजर आता है। अकेले अहमदाबाद में ही तस्वीर दस साल में काफी बदली है। जो परियोजना दिल्ली और बैंगलुरु जैसे शहरों में फेल हो गई वह यहां न केवल सफलतापूर्वक संचालित है बल्कि लोग उसकी तारीफ भी करते हैं। यह है बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (बीआरटीएस परियोजना)। अहमदाबाद बीआरटीएस के लिए गुजरात को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
अहमदाबाद की बीआरटीएस परियोजना में केंद्र सरकार की भी हिस्सेदारी है, इसके बाद भी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर इसे यह कहते हुए अपनी उपलब्धि में शुमार करते हैं कि श्केंद्र सरकार ने जो पैसे गुजरात को दिए वो वही पैसा था जो गुजरात की जनता ने केंद्र सरकार को दिया थाद्य इस बात का खेद है कि जिन लोगो ने 15 करोड़ में से सिर्फ 5 करोड़ रूपए दिए वे लोग सारा क्रेडिट खुद लेना चाहते  हैद्यश् जानकारों के मुताबिक बीआरटीएस के 90 किलोमीटर लम्बे प्रोजेक्ट को बनाने के लिए करीब  9,000 करोड़ रूपए खर्च किए गएद्य इस राजनीति से इतर देखा जाए तो वाकई यह परियोजना लोगों के लिए लाभकारी है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं होने के बाद भी अहमदाबाद की सड़कों पर जाम लगे रहना आम बात है। बीआरटीएस की बसों का फायदा एक बड़ा तबका उठा रहा है। 2009 में शुरु हुई इस परियोजना के लिए अभी भी कई सड़कों पर काम चल ही रहा है।
इसी तरह यदि कांकरिया लेक के कायाकल्प का उल्लेख किए बिना यह यात्रा अधूरी रहेगी। अहमदाबाद के उपनगर मणिनगर के दक्षिणी भाग में अवस्थित इस झील का निर्माण 15वीं सदी में सुल्ताब कुतुबुद्दीन ने करवाया था, बताते हैं कि तब इसमें वाटर फिल्ट्रेशन की भी सुविधा रखी गई थी जो समय के साथ अपने आप बंद हो गई। धीरे-धीरे समय के साथ यह झील मरने की हालत में पहुंच रही थी। कारण वही जो आज देश भर में तालाबों के साथ हुआ या हो रहा है, प्रदूषण,  निस्तारी आदि। अहमदाबाद के पुराने निवासी बताते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब यह कांकरिया झील आत्महत्या करने की खास जगह के रुप में भी जानी जाने लगी थी। बहरहाल! इसका कायाकल्प हुआ और ऐसा हुआ कि आप वहां जाने के बाद तारीफ किए बिना न रहेंगे।
इन सबके बाद बात आती है रिवरफ्रंट की। दिलचस्प बात है कि कुछ कांग्रेसजनों के मुताबिक अहमदाबाद में साबरमती रीवरफ्रंट का सपना एक समय यहां के कांग्रेसी मेयर रहे जेठालाल परमार का था लेकिन अब सारा श्रेय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ले जा रहे हैं। दरअसल अहमदाबाद शहर गोलाई में बसा हुआ है, साबरमती नदी इसे घेरे हुए है, शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से को जोड़ने के लिए नदी पर 9 पुल/ब्रिज हैं। साबरमती हालांकि बारहों महीने पानी से भरी नहीं रहती लेकिन बारिश में अच्छा पानी रहता है। शहर के बीच में स्थित नदी के दोनों तरफ करीब दस किमी के हिस्से को सौंदर्यीकरण परियोजना को ही रीवरफ्रंट प्रोजेक्ट कहा जाता है। अब जब इसके पहले चरण का लोकार्पण हो चुका है।
मोदी पर मेहरबान ऊपरवालारू इतना सब देखते-सुनते वापसी का दिन आ गया और सवार हो लिए ऑटो में, पत्रकारीय मन आटोवाले के साथ बात करने में लग गया, पता चला ऑटो वाला कांग्रेस का मतदाता था। आनेवाले विधानसभा चुनाव के बारे में सवाल पूछने पर उसने एक लाइन कही तो आगे कुछ पूछने की जरुरत ही नहीं पड़ी। उसका कहना था कि मोदी पर ऊपरवाला मेहरबान है, सबका ऊपरवाला, कांग्रेस का ऊपरवाला और भाजपा का भी ऊपरवाला।

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