मंगलवार, 6 नवंबर 2012

भ्रष्टाचार का भ्रम जाल है मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग विज्ञापन, किसानों से गेंहू खरीद


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ----------------- 6

भ्रष्टाचार का भ्रम जाल है मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग विज्ञापन, किसानों से गेंहू खरीद

(राजेश शर्मा)

भोपाल (साई)। म.प्र. मे किसानों से गेंहू खरीदी केन्द्रों पर बंपर खरीदी हो रही है। म.प्र. जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी एक विज्ञापन के अनुसार देश के चार प्रमुख कृषि प्रधान राज्यों ,हरियाण,राजस्थान,गुजरात में म.प्र. ने दिनांक 25 अप्रैल 2012 तक 1938754 मीट्रिक गेंहू खरीदकर कीर्तिमान स्थापित किया है। विज्ञापन देखकर प्रत्येक प्रदेशवासी को सुखद अनुभव होना स्वाभाविक है।
प्रदेश के मुखिया की मेहनत एवं किसान की सेहत दुरूस्त नजर आती है। विज्ञापन के माध्यम से तो यही दर्शाने का प्रयास किया गया है। म.प्र. मे किसानों से गेंहू खरीदी केन्द्रों पर बंपर खरीदी हो रही है। प्रदेश में गतवर्ष भी बंपर खरीदी हुई,सूखा भी खूब पड़ा,ओलावृष्टि भी हुई,पाला भी पड़ा। भरपूर मुआवजा भी बंटा। और अब उन्ही किसानों के नाम से गेंहूॅ खरीदी केन्द्रों पर बंपर गैहू आ रहा है।
आकड़ों पर नजर डालेंगें तो आश्चर्यजनक लगेगा। यह सब एक भ्रष्ट व्यावसायिक परंपरा म.प्र. में चल रही है। जिसका संचालन ,खाद्य,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग म.प्र. स्वयं कर रहा है।  भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के लिए जिला कलेक्टर ,जिला नियन्त्रक खाद्य,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण को हरसंभव सहयोग प्रयास कर रहे है। 9.25 रू प्रति किलो का ए.पी.एल.गैहू जिसे आरक्षण मुक्त सामान्य परिवारों के लिए शासन शासकीय उपभोक्ता भंडारों के माध्यम से वितरण कराने की व्यवस्था प्रतिमाह कराता है।
वह गैंहू गुणवत्ताविहीन होने के कारण सामान्य परिवार के लोग नहीं खरीदते है। इसमें अपवादस्वरूप खरीदने वालों की संख्या 1,2 प्रतिशत हो सकती है। यह सारा आवंटित गैंहूॅ म.प्र. मेें किसानों से गेंहूॅ खरीदी केन्द्रों पर कूटरचित योजना के तहत आ रहा है। खरीदी केन्द्रों पर समर्थन मूल्य 1300रू एवं राज्य शासन की ओर से 100 रू प्रति कुन्टल विशेष अनुदान कुल 1400 रू प्रति कुन्टल में सीधे आ रहा है। 9.25 रू प्रति किलो में शासकीय उपभोक्ता भंडारों के संचालक को प्रति किलो 1.85 रू कमीशन ,गेंहू खरीदी केन्द्रों 1400 रू प्रति कुन्टल में सीधे आ रहा है। अर्थात 660 रू प्रति कुन्टल  शासकीय उपभोक्ता भंडारों के संचालक, लीड ऐजेन्सीज, जिला नियन्त्रक खाद्य,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण के बीच बॅट रहा है।  भोपाल के किसान गैंहू खरीदी के केंन्द्रों ,एवं जिला कलेक्टर कार्यालय में आम चर्चा है कि जिला नियन्त्रक प्रति कुन्टल 250रू  कुन्टल निरीक्षक प्रति कुन्टल 100रू एवं अन्य राशि क्षेत्रीय विधायक एवं लीड ऐजेन्सी,संचालक शासकीय उपभोक्ता भंडार के बीच बंट जाती है। गैंहू खरीदी  केंन्द्रों के बन्द होने के बाद यह गैहू आटा, दलिया, मैदा,सूजी, बनाने के लिए फ्लोर मिल्स एवं आटा चक्कियों को बेच दिया जाता है। इसमें एक और आश्चर्य जनक जानकारी प्राप्त हुई है कि भोपाल सहित अन्य जिलों में आधे से अधिक खाद्य निरीक्षकों एवं नियन्त्रकों के फ्लोर मिल्स एवं आटा चक्किया छद्म नामों से संचालित हो रही हैं।  अर्थात शासकीय योजना का खाद्यान्न खपाने की पूरी कूट रचित प्रक्रिया चल रही है। स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब जिला कलेक्टर शिकायत करने के बाद सत्ताधारी दल के स्वजातीय विधायक का नाम लेकर अपना पल्ला झाड़ लेते है। मानो मामला कोई राजनीतिक हो। इस प्रकार की नियमित खाद्यान्न आवन्टन एवं वितरण तथा उपार्जन की जानकारी जिसे आम नागरिक विभाग के वेव पोर्टल पर देख सकता था ,उस वेवपोर्टल को भी विभागाध्यक्ष द्वारा हिडन करा दिया गया है। इस प्रकार विभाध्यक्ष से लेकर निरीक्षक तक जिला कलेक्टरों के माध्यम से खाद्यान्न माफिया के रूप में काम कर रहे है। और बेचारे मुख्यमंत्री बारदाना -बारदाना चिल्ला कर दिल्ली की सड़कों पर अपना पसीना बहा रहे है।

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