वाहवाही सब तरफ सडक का नामोनिशान नहीं
सीमाओं में रहकर
काम करे जनमंच: एड. वीरेंद्र सोनकेशरिया
पत्रकारों का काम
जनजागृति पैदा करना है आंदोलन करना नहीं
लखनादौन जनमंच भी
हो चुका है उदासीन!
(ब्यूरो)
सिवनी (साई)। ‘‘2009 में जनमंच का
गठन सिर्फ और सिर्फ एनएचएआई के फोरलेन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए
किया गया था। जनमंच इन बाधाओं को दूर करने के बजाए अब थोथी वाहवाही लेने की जुगत
में दिख रहा है। मेरे द्वारा लड़े गए प्रकरण पर पत्रकार वार्ता आयोजित कर मीडिया को
गुमराह करना बंद करे जनमंच के कार्यकर्ता।‘‘ उक्ताशय के आरोप वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र सोनकेशरिया
द्वारा यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में लगाए गए हैं।
अधिवक्ता वीरेंद्र
सोनकेशरिया ने कहा कि जनमंच का गठन सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले नेशनल हाईवे पर
आने वाली बाधाओं से निपटने के लिए किया गया था। जनमंच ने सिर्फ कुरई घाट के मामले
को हाथ में लेकर साबित कर दिया था कि उसका बाकी जिले से कोई लेना देना नहीं है।
हाल ही में दो
पत्रकार वार्ताओं में जनमंच के कथित शिरोमणि द्वारा झूठी वाहवाही लूटने के
उद्देश्य से सद्भाव पर हुई खनिज रायल्टी की वसूली की कार्यवाही को गलत तरीके से
प्रस्तुत किया गया है। एडव्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि उनके द्वारा उनके
मुवक्किलों के कहने पर इस प्रकरण को लड़ा गया था।
उन्होंने बताया कि
माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा सद्भाव कंपनी से रायल्टी और अर्थदण्ड की वसूली की
कार्यवाही हेतु चार लोगों की कमेटी बनाई गई थी। इसमें अनुविभागीय अधिकारी शहर राजस्व, खनिज अधिकारी आदि
शामिल थे। इस कमेटी के प्रतिवेदन को दरकिनार कर तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी
राजस्व ग्रामीण सुमन धुर्वे द्वारा वूसली शून्य घोषित कर दी गई थी।
उन्होंने कहा कि जब
वे इस संबंध में रिव्यू के लिए गए तब पुनः शासन ने बारह करोड़ 94 लाख रूपए की राशि
की वसूली के आदेश जारी किए गए हैं। उन्होंने संभावना व्यक्त की है कि संभवतः इस
प्रकरण में गफलत करने के चलते ही तत्कालीन एसडीएम सुमन धुर्वे बिना बताए ही गायब
हो गईं थीं। इस संबंध में सुमन धुर्वे के खिलाफ विभागीय जांच भी आरंभ की गई है।
एडव्होकेट वीरेंद्र
सोनकेशरिया ने सीधे सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि कमेटी का आदेश सिर्फ वसूली के लिए
था, जिसे
तत्कालीन एसडीएम सुमन धुर्वे ने दरकिनार करते हुए सुनवाई के दौरान वसूली ही शून्य
कर डाली।
वरिष्ठ अधिवक्ता
वीरेंद्र सोनकेशरिया ने कहा है कि उनके पास इस बात के प्रमाण और आदेश हैं कि यह
प्रकरण उन्होंने अपने मुवक्किलों के कहने पर लड़ा गया है। उन्होंने जनमंच को नसीहत
देते हुए कहा कि इस तरह दूसरे की पकाई रोटी पर राजनीति करना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में यह बात भी लाई गई है कि सड़क निर्माण के लिए गठित
जनमंच द्वारा अपने मूल काम को छोड़कर अन्य कामों में दिलचस्पी ली जा रही है।
उन्होंने कहा कि भंडारण के एक मामले में भी जनमंच द्वारा इंटरवीनर बनने का प्रयास
किया गया था किन्तु जिला प्रशासन ने जनमंच के इस तरह के मंसूबों पर पानी फेर दिया
गया।
ज्ञातव्य है कि दो
साल पहले जनमंच की इस तरह की अनर्गल कारस्तानियों को उजागर करने पर जनमंच के कथित
तौर पर प्रवक्ता से हस्ताक्षरित एक विज्ञप्ति में एक वरिष्ठ पत्रकार को हद में
रहकर लिखने की हिदायत जनमंच ने सार्वजनिक तौर पर दी गई थी। उस दर्मयान जनमंच
द्वारा यह कहा गया था कि सिवनी शहर के गड्ढे भी वे भरवाएं, छपरा के भी वे
भरवाएं, लखनादौन के
भी वे भरवाएं, पत्रकार बस
बैठकर समीक्षा करें। जनमंच के कार्यकर्ता यह भूल जाते हैं कि पत्रकार का काम
सच्चाई को सामने लाकर जन जागृति पैदा करना है ना कि आंदोलन करना।
वहीं दूसरी ओर
सिवनी जिले के लखनादौन जनमंच द्वारा भी वर्ष 2009 में बड़े ही जोर शोर से सड़क के
लिए आंदोलन किया गया था। लखनादौन में जब नेशनल हाईवे को रोक दिया गया तब लखनादौन
जनमंच के सर्वेसर्वा और सिवनी से विधानसभा चुनाव लड़ चुके दिनेश राय मुनमुन के
हवाले से मीडिया में यह बात जमकर प्रचारित करवाई गई थी कि तत्कालीन अपर कलेक्टर
अलका श्रीवास्तव द्वारा जनमंच लखनादौन को एक पत्र लिखकर इस काम को तत्काल आरंभ
करवाने का आश्वासन दिया था।
विडम्बना ही कही
जाएगी कि वर्ष 2008 से रूके इस सड़क के काम को ना तो सिवनी के जनमंच जिसके बारे में
एडव्होकेट वीरेंद्र सोनकेसरिया द्वारा बताया गया है कि यह जनमंच महज कुरई घाट के
सड़क के हिस्से के लिए ही लड़ाई लड़ रहा है, और ना ही लखनादौन जनमंच द्वारा आरंभ कराया
जा सका है। आरोपित है कि दोनों ही जनमंच द्वारा जनता के हितों को बलाए ताक पर रखा
गया है, वरना क्या
कारण है कि कुरई घाट का विवादित महज 8.7 किलोमीटर के बजाए सिवनी जिले में लगभग
पचास किलोमीटर का हिस्सा जंगल की पथरीली जमीन में तब्दील हो गया है?
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