ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
इस तरह गांठी कमल ने हाथी की सवारी!
केंद्र में संसदीय कार्य मंत्रालय
बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जाता है। इस मंत्रालय का प्रभार जिस किसी को भी
दिया जाता है उस पर अनेकानेक जिम्मेदारियां स्वयमेव ही आ जाती हैं। पवन बंसल के स्थान
पर इसका प्रभार कमल नाथ को दिया गया जो पहले से ही शहरी विकास मंत्री हैं। कमल नाथ
ने लोकसभा में एफडीआई पर बहस के दर्मयान ही मायावती को साथ लिया और चल दिए पीएम के
कक्ष की ओर। मायावती ने भी अपने साथ सतीश मिश्रा को ले लिया। अंदर लगभग पंद्रह मिनिट
तक चर्चा हुई और माया मेम साहब ने कांग्रेस के पक्ष में रूझान साफ कर दिया। कमल नाथ
के करीबी सूत्रों का कहना है कि भले ही वे यह कहें कि मायावती से कोई डील नहीं हुई
पर माया मेम साहेब को लुटियन जोन में बसपा के लिए कार्यालय की जगह मिल गई। माया मेम
साहब इसलिए भी मान गईं कि आखिर शहरी विकास मंत्रालय तो कमल नाथ के ही पास है अतः माया
का विश्वास कैसे टूट सकता था।
आप के बाप!
अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी
(आप) का गठन किया। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर आप के स्थान पर भारतीय आम आदमी पार्टी
(बाप) बनाने का मशविरा दिया गया। केजरीवाल से अण्णा हजारे की नाराजगी किसी से छिपी
नहीं है। अण्णा केजरीवाल से क्यों नाराज हैं यह बात अब सियासी फिजा में घुमड़ रही है।
अण्णा के एक करीबी ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि दरअसल, केजरीवाल ने अण्णा की सांसें
ही छीन ली हैं। केजरीवाल ने अण्णा के आंदोलन के दौरान मिली राशि, दानदाताओं की सूची,
कार्यकर्ताओं
आदि की सूची का सारा का सारा डाटा वाली हार्ड डिस्क ही अपने साथ दबाकर ले जाई गई है।
माईनस केजरीवाल बची टीम अण्णा के पास अब अण्णा के नाम के अलावा और कुछ नहीं बचा है।
यही कारण है कि टीम अण्णा अब मायूस ही नजर आ रही है, वहीं सारे होमवर्क को अपने साथ ले
जाने वाले केजरीवाल अब चहचहाते ही दिख रहे हैं।
गड़करी की बिदाई की राह देख रहे मुंडे
महाराष्ट्र प्रदेश का देश की राजनीति
अहम रोल है। हाल ही में भाजपा में अंदर ही अंदर इस बात पर धुआ उठता दिख रहा है कि वित्तीय
विवाद में फंसे नितिन गड़करी को किस तरह किनारे लगाया जाए। मराठा क्षत्रप गोपी नाथ मुंडे
भी इस प्रयास में हैं कि मराठा राजनीति में उनका सितारा खासा बुलंद हो जाए। दरअसल,
मुंडे को गड़करी
ने हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। मुंडे जब पार्टी छोड़ने का मन बना ही चुके थे कि उनके
एक अभिन्न ने उन्हें थोड़ा सा इंतजार करने का मशविरा दिया। मुंडे रूक गए, इसी बीच गड़करी का वित्तीय
विवाद सामने आ गया। अब मुंडे नई चाल चलते दिख रहे हैं। बाला साहेब ठाकरे के निधन के
उपरांत उद्धव और राज ठाकरे में सुलह करवाने का काम मुंडे ही कर रहे हैं। अगर मुंडे
की यह चाल सफल रही तो आने वाले समय में भाजपा के लिए शिवसेना और मनसे की बैसाखी मुफीद
होगी, उस वक्त मराठा क्षत्रप मुंडे का इकबाल जमकर बुलंद हो जाएगा।
दादा को भुलाया कांग्रेस ने!
एक समय कांग्रेस के संकटमोचक रहे
प्रणव मुखर्जी इस समय रायसीना हिल्स में महामहिम राष्ट्रपति बनकर काम कर रहे हैं। इस
बार एफडीआई पर होने वाली बहस में उनकी खासी रूचि थी। दरअसल, पिछले शीत सत्र में प्रणव
मुखर्जी वित्त मंत्री थे, और उन्होंने सदन को आश्वस्त किया था कि जब तक राज्यों और सियासी
दलों में आम सहमति नहीं बन जाती तब तक इसे लागू नहीं किया जाएगा। महामहिम आवास के सूत्रों
का कहना है कि प्रणव दा पूरे समय टीवी से चिपके रहे। पर यह क्या सत्तर फीसदी बहस तो
हिन्दी में हुई। कहते हैं कि दादा की हिन्दी अच्छी नहीं है इसलिए उन्हें समझने में
काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। दादा के पास उस वक्त तुरंत में एसा कोई साधन नहीं था कि
वे इसका अंग्रेजी अनुवाद करवा सकें। बाद में दादा को सारी कहानी बताई गई। दादा के मुंह
से बस यही निकला, जब मैने भरोसा दिया था तो पहले आम सहमति बनाना चाहिए था,
इस तरह की जल्दबाजी
ठीक नहीं।
कमजोर पड़ने लगे हैं युवराज!
कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे
आजम राहुल गांधी को भले ही यह प्रचारित किया जा रहा हो कि वे अब घोषित तौर पर नंबर
दो की स्थिति में आ गए हैं पर कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि युवराज अब कमजोर
पड़ते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के बीच अब खार्इ्र गहरी
होती दिख रही है। प्रधानमंत्री पहली बार अपने विशेषाधिकार का उपयोग कर अपने आप को मजबूत
दिखाने की जुगत में हैं। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय मंत्री कमल नाथ को
युवराज राहुल गांधी बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं। इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने कमल
नाथ को शहरी विकास मंत्रालय के साथ ही साथ संसदीय कार्य का प्रभार सौंपा। कमल नाथ ने
अपनी उपयोगिता साबित की,। राहुल गांधी को यह कहते भी सुना गया है कि ये एक चुनाव बाद
तो रिटायर हो जाएंगे, हमारी पारी तो अभी आरंभ ही हो रही है! राहुल का यह कहना उनकी
कमजोरी ही प्रदर्शित करता है।
ब्राम्हणवाद हावी है भाजपा में!
मध्य प्रदेश भाजपा में ब्राम्हणवाद
जमकर हावी होता दिख रहा है। इसके पहले यह आरोप कांग्रेस में लगते रहे हैं। मध्य प्रदेश
भाजपा के अध्यक्ष प्रभात झा के नेतृत्व में ब्राम्हणों की खासी पूछ परख है। भाजपा के
कार्यालयों में इन दिनों यह बात जमकर उछल रही है कि वाकई अब भाजपा ब्राम्हण बनियों
की पार्टी बनकर रह गई है। भाजपा में कहा जा रहा है कि अगर आपने किसी ब्राम्हण विधायक,
सांसद,
या अन्य जनप्रतिनिधि
या कार्यकर्ता की शिकायत कर दी तो उस पर कोई कार्यवाही होने ही वाली नहीं है। पिछले
दिनों एक विधायक द्वारा अटल बिहारी बाजपेयी के जन्म दिवस 25 दिसंबर पर आयोजित एक प्रोग्राम
में सरेआम पुजारी की थाली से दो सौ रूपए उठाए गए तब उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।
अब बाताते हैं कि उक्त विधायक का घर चोरी की बिजली से रोशन होता पकड़ा गया। इसकी शिकायत
भी हुई पर इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हो पाई। कहते हैं कि इसकी लिखित शिकायत करने
पर भी मामला ठण्डे बस्ते के हवाले ही कर दिया गया है।
कपड़े की तरह आका बदलते प्रकाश!
कांग्रेस के खेमे में मोहन प्रकाश
पर विश्वास करने वालों का टोटा है। लगभग दस साल पहले जनार्दन द्विवेदी की जमानत पर
कांग्रेस में प्रवेश पाने वाले मोहन प्रकाश कुछ समय तक तो द्विवेदी को गुरूजी कहकर
ही बुलाया जाता था, उनके चरणों को सार्वजनिक तौर पर स्पर्श किया जाता था,
पर अचानक ही
उनकी निष्ठा बदली और वे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के सियासी गुरू अहमद
पटेल के साथ हो लिए। अहमद पटेल के साथ सियासी मलाई चखने के बाद अचानक ही मोहन प्रकाश
ने यू टर्न लिया और अब वे राहुल गांधी के सबसे विश्वस्त बनने की चेष्टा में दिख रहे
हैं। गुजरात के चुनावों में अहमद पटेल के चेले चाटों को ही टिकिट से महरूम रखकर मोहन
प्रकाश ने यह साबित करने की कोशिश की है कि वे राहुल गांधी के कितने हितैषी हैं। हद
तो उस वक्त हो गई जब मोहन ने मजबूत जनाधार वाले नरहरि अमीन को ही टिकिट देने से इंकार
कर दिया।
शिव के खिलाफ खड़ा मीडिया!
देश के हृदय प्रदेश में मीडिया का
एक तबका सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ खड़ा दिख रहा है। सोशल नेटवर्किंग
वेब साईट्स पर सत्ता और मीडिया के सेतु जनसंपर्क विभाग मीडिया के निशाने पर है। मीडिया
का आरोप है कि जनसंपर्क विभाग इन दिनों भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस का पिट्ठू बना हुआ
है। संघ के इशारे पर ही मीडिया को विज्ञापन आदि देने का काम चल रहा है। जनसंपर्क की
कमान जब से एक अतिरिक्त संचालक के हाथ में आई है तबसे यह यृद्ध तेज हो गया है। एक वेब
साईट को पंद्रह लाख का विज्ञापन तो जनसंपर्क मंत्री की अनुशंसाओं को दरकिनार कर कचरे
की टोकरी में डाल रहा है जनसंपर्क विभाग। यही आलम अधिमान्यता का है। सूबे में पत्रकारों
ने दस दिसंबर को विधानसभा के चलते में राजधानी भोपाल में जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मी कांत
शर्मा की प्रतीकात्मक शवयात्रा निकालने का आयोजन भी रखा है।
फिर विवादों में रूपए का प्रतीक चिन्ह
रूपए के नए प्रतीक चिन्ह को लेकर
एक बार फिर चर्चाएं तेज हो गई हैं। ज्ञातव्य है कि रुपये का प्रतीक चिनह तय करने की
प्रक्रिया में अनियमितताएं बरते जाने का आरोप लगाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित
याचिका दायर की गई है। याचिका पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी मुरुगेसन व जस्टिस
आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले में
न्यायालय ने केंद्रीय गृह सचिव और सांस्कृतिक मंत्रालय के सचिव को 9 जनवरी को अदालत
में पेश होकर जवाब दाखिल करने के लिए समन जारी किया है। राकेश कुमार सिंह ने अधिवक्ता
कमल कुमार पांडेय के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है कि
रुपये का चिन्ह तय करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता हुई थी। लोगों में
देश प्रेम की भावना जोड़ने के लिए सरकार ने रुपये के प्रतीक चिन्ह का डिजाइन मांगा था।
अब निशाने पर आए अहमद
गुजरात के चुनावों में कांग्रेस भले
ही फतह हासिल करे या ना करे पर कांग्रेस के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण ही साबित
होता दिख रहा है। इसका कारण कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव
अहमद पटेल का गुजरात मूल का होना है। कांग्रेस में एक के बाद एक करके सबके शनी भारी
होते दिख रहे हैं। कांग्रेस में पर्दे के पीछे सर्वशक्तिमान समझे जाने वाले कांग्रेस
अध्यक्ष के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल की सियासी सांसों की डोर बंधी हुई है। अगर गुजरात
में मोदी ने एक बार फिर करिश्मा कर दिया तो निश्चित तौर पर अहमद पटेल को सियासी हाशिए
में ढकेल ही दिया जाएगा। राहुल गांधी के मुख्य भूमिका में शामिल होते ही अब सियासी
धुरी में परिवर्तन होता दिखने लगा है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गंाधी को यह
कहा गया है कि पहले तो ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाले एमपी में फिर उनके
और राहुल के प्रभाव वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की भद्द पिटी और अगर अब सोनिया
के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल के प्रभाव वाले गुजरात में कांग्रेस औंधे मुंह गिरी तो
आने वाले समय में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचेगा।
पुच्छल तारा
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मसले पर
कांग्रेस को मिली सफलता से सोनिया गांधी और उनके पिट्ठू फूले नहीं समा रहे हैं। सोशल
नेटवर्किंग वेब साईट पर इस मसले पर तरह तरह की बातें चल रही हैं। हाल ही में एक चित्र
के माध्यम से एफडीआई पर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के रूख को बयान किया गया है।
चित्र में 1942 में कांग्रेस ने स्वदेशी अपनाओ नारे को जमकर तरजीह दी थी। उस वक्त विदेशी
सामानों की होली जलाई जाती थी। इसके सत्तर सालों बाद उसी कांग्रेस का झंडा डंडा उठाने
वाले आज स्वदेशी की जगह विदेशी यानी एफडीआई की वकालत करते नजर आ हैं। सही कहा है किसी
ने, जय भारत जय जवान! हो रहा भारत निर्माण!!
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