शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

सब्जी व्यापारियों की काली करतूस दे रही लोगों को हरा जहर


सब्जी व्यापारियों की काली करतूस दे रही लोगों को हरा जहर

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर। (साई)। बे-मौसम हरी सब्जियों के देख कर मन प्रसन्न हो जाता है। बैंगनी बैंगन और हरे मटर को देख हर किसी का जी ललचा उठता है। इनकी चमक दुकान की तरफ अपने आप बरबस खींच लेती है और इंसान के पैर भी दुकान की ओर खींचे चले जाते है और जाने अनजाने में हरा जहर खरीदकर ही अपने घरों को लौटते है। परंतु इस बात से ग्राहक अनभिज्ञ है कि हरी सब्जियों की इस चमक के पीछे कुछ लोगों की काली करतूत छिपी है जो आपको हरा जहर दे रही है। जी हां, इन रंगीन और चमकदार सब्जियों को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। जिसे सुनकर आप वास्तविक रूप से दंग रह जायेंगे और अपने दांतों तले अंगूली दबा लेंगे।
बेमौसम हरी सब्जियों को बाज़ार में खुलेआम औने-पौने दामों में बेचा जाता है। इससे जेब तो कटती ही है, स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। हरी सब्जियों को आकर्षक और चमकदार बनाने के लिए घातक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। उसी तरह समय से समय से पहले इन्हें तैयार करने के लिए जहरीले आक्सीटोसिन इंजेक्शन को भी लगाया जाता है। जनपद की सब्जि मंडियों में रोजाना हज़ारों लोग ताज़ी सब्जियां लेने आते हैं। लेकिन रोज ही उनकी इन उम्मीद पर पानी फिर जाता है। बाहर से देखने में हरी-ताज़ी सब्जी रंग से रंगी हुई होती है। इन सब्जियों को हरा-भरा रखने के लिए इनको रंग के पानी तक में डुबो दिया जाता है। सब्जी बेचने वाले हरे रंग को पानी में मिलकर उसमे सब्जी को डालकर हरा कर रहे है।
वहीं दूसरी ओर सब्जी बेचने वाले दुकानों की माने तो उनकी दुकानों पर आने वाला प्रत्येक ग्राहक को ताजा व हरी सब्जियां चाहिए होती है जो सभी को मिलनी नामुमकिन है और यदि उनकी सब्जियां नहीं बिकती है तो उन्हें भी काफी नुकसान होता है इसलिए व कृत्रिम विधि का प्रयोग करना पडता है। क्योंकि ग्राहक हरी सब्जी ही पसंद करता है, इसलिए हरी सब्जियों को रंग में डालकर बेचा जाता है। हर आदमी सब्जियां धो कर खाता है, इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं होती है।
इन सब्ज़ियो को हरा और चमकदार बनाने के लिए सबसे पहले इनको एक बड़े से बर्तन या फिर ड्रम मे डाला जात है। केमिकल रंगों में परवल और तरोई को अच्छी तरह से डाल कर रंगा जाता है। करीब 15 मिनट के बाद इन सब्ज़ियों को टब से बाहर निकालकर कर सुखा लिया जाता है। आधे घंटे की मसकत के बाद यह पीली और सूख चुकी सब्जी, परवल और तरोई फिर से ताजी हो जाती है।
0 हरी सब्जी नहीं हम खा रहे कैमिकल
डाक्टरों की माने तो सब्जियों में पाए जाने वाले पेस्टिसाइड और मेटल्स पर अलग-अलग  इस्तेमाल करते है और इनके इस्तेमाल से सब्जियों के साथ हम कई प्रकार के पेस्टिसाइड और मेटल खा रहे हैं। इनमें केडमियम, सीसा, कॉपर और क्रोमियम जैसी खतरनाक धातुएं और एंडोसल्फान, एचसीएच व एल्ड्रिन जैसे घातक पेस्टीसाइड शामिल हैं। सब्जियों के साथ शरीर में जाकर ये स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। सब्जियां तो हजम हो जाती हैं लेकिन यह जहर शरीर के विभिन्न संवेदनशील अंगों में जमा होता रहता है। इससे उल्टी-दस्त, किडनी फेल, कैंसर जैसी बीमारियां सामने आती हैं। पालक, आलू, फूल गोभी, बैंगन, टमाटर आदि में इस तरह का जहर पाया गया है। शोध के अनुसार खेतों में फसलों पर रासायनिक पेस्टिसाइड का उपयोग बहुतायत में किया जा रहा है। इस रासायनिक जहर में एंडोसल्फान जैसे खतरनाक पेस्टिसाइड का उपयोग आम है।
0 फूलगोभी सबसे ज्यादा है प्रदूषित
खेतों में फसलों पर रासायनिक पेस्टिसाइड का उपयोग बहुता ज्यादा मात्रा में किया जा रहा है। इस रासायनिक जहर में एंडोसल्फान जैसे खतरनाक पेस्टिसाइड का उपयोग आम है। टमाटरों के 28 नमूनों में से 4643 प्रतिशत नमूनों में पेस्टिसाइड ज्यादा पाया गया। भिंडी के 25 में से 32, आलू के 17 में से 2353, पत्ता गोभी के 39 में से 28, बैंगन के 46 में से 50 प्रतिशत नमूने प्रदूषित पाए गए। फूल गोभी सर्वाधिक प्रदूषित पाई गई, जिसके 27 में 5185 प्रतिशत नमूनों में यह जहर था।
0 ये हो सकती हैं ये बीमारियां
सब्जियों के साथ शरीर में जाकर एंडोसल्फान, एचसीएच व एल्ड्रिन जैसे पेस्टिसाइड वसा उत्तकों में जम जाते हैं। बायोमैनीफिकेशन प्रक्रिया से शरीर में इनकी मात्रा बढ़ती रहती है। यह लंग्स, किडनी और कई बार दिल को सीधा नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी अधिक मात्रा जानलेवा बन जाती है। इसी तरह मेटल के कारण भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। केडमियम धातु लीवर, किडनी में जमा होकर इन्हें डेमेज करती है। यह धातु प्रोटीन के साथ जुड़कर उसका असर खत्म कर देता है। इससे कैंसर का खतरा रहता है। इटाई-इटाई नामक बीमारी होने से हड्डियां मुड़ जाती हैं। इस बीमारी को ब्रिटल बोन भी कहा जाता है। जापान में सबसे पहले यह तथ्य सामने आया था, जहां इसे इटाई-इटाई नाम दिया गया।
जिंक से उल्टी-दस्त, घबराहट होना आम है। ज्यादा मात्रा में जमा होने पर लीवर पैन की शिकायत हो जाती है। ज्यादा मात्रा होने पर इसे जिंकचीली कहा जाता है। सीसा की मात्रा शरीर में ज्यादा होने पर असहनीय दर्द होता है। किडनी पर इसका असर सीधा होता है और वह फेल हो सकती है। मानसिक संतुलन भी बिगड़ सकता है। खून में इसकी मात्रा बढ़ने पर एनिमिया हो जाता है। लीवर को भी यह प्रभावित करता है। इससे लकवा होने की आशंका भी रहती है। क्रोमियम से चर्मरोग व श्वास संबंधी बीमारियों के साथ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होने की समस्या रहती है। कैंसर होने की संभावना भी बनती है। कॉपर से एलर्जी, चर्मरोग, आंखों के कॉर्निया का प्रभावित होना, उल्टी-दस्त, लीवर डेमेज, हाइपर टेंशन की शिकायत मिलती है। मात्रा बढ़ने पर व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। हिमोग्लोबिन के साथ जुड़कर यह उसे कम कर देता है।

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