बुधवार, 30 जनवरी 2013

आग का दरिया है डूब के जाना है. . .


आग का दरिया है डूब के जाना है. . .

(लिमटी खरे)

कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आज़म राहुल गांधी की उपाध्यक्ष पद पर ताजपोशी तो हो गई है पर उनके सामने अनेक जटिल समस्याएं और समीकरण जस के तस मुंह बाए खड़े हैं। राहुल गांधी की प्रधानमंत्री बनने की राह पूरी तरह शूलों से भरी हुई है। अब पंडित जवाहर लाल नेहरू या प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी जैसा चमत्कारिक नेतृत्व भी कांग्रेस के पास नहीं है कि उन्हें इस आग के दरिया में से गोदी में उठाकर उनकी वेतरणी को पार लगवा दे। अब तो जो करना है राहुल को ही करना है। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के उपरांत उनकी अनभवहीनता का पूरा पूरा लाभ उठाया है कांग्रेस के चालाक नेताओं ने। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस वर्तमान समय में संभवतः अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। खानदानी परचून की दुकान के मानिंद कांग्रेस में सत्ता के हस्तांतरण की तैयारियां भी मुकम्मल ही हो चुकी हैं।

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस संभवतः संक्रमण काल से गुजर रही है। मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी के बाद सोनिया गांधी ने भी दस साल तक निष्कंटक कांग्रेस पर राज कर लिया है। अब सत्ता के हस्तांतरण की तैयारियां गुपचुप और खुले दोनों ही तौर पर जारी हैं। खानदानी परचून की दुकान की तरह ही अब कांग्रेस की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में कभी भी सौंपी जा सकती है। राहुल को उपाध्यक्ष बनाकर यह संकेत दे दिया गया है कि कांग्रेस में आंतरिक प्रजातंत्र महज दिखावा है। यह सामंतशाही का नायाब उदहारण ही माना जाएगा कि नेहरू गांधी परिवार के इर्दगिर्द ही कांग्रेस में सत्ता और शक्ति की धुरी घूमती रही है।
इटली मूल की भारतीय बहू श्रीमति सोनिया गांधी जिन्हें हिन्दी बोलने में काफी तकलीफ होती थी, आज भी साफ सुथरी हिन्दी नहीं बोल पातीं हैं। वैसे भी सत्ता की उचाईयों पर बैठे लोग हिन्दी भाषा को कम समझते और कम ही इसका प्रयोग करते हैं। कहने को हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा जरूर है पर हिन्दी का उपयोग जमीनी लोग ही ज्यादा किया करते हैं। आज भी सोनिया अपनी ही सरकार के काले कारनामों पर ना केवल चुप हैं वरन् कठोर कार्यवाही का संकेत भी देने में हिचक रही हैं।
सोनिया गांधी की रहस्यमयी बीमारी के उपरांत कांग्रेस के अंदर एक अजीब सा वेक्यूम महसूस किया जा रहा था। कांग्रेस में अध्यक्ष पद मानो रामायण काल की याद ताजा कर रहा हो, जिस तरह भरत ने भगवान राम की खडाउं रखकर राज चलाया उसी तरह कांग्रेस के नेता श्रीमति सोनिया गांधी के साथ कर रहे हैं। सोनिया के अस्वस्थ्य होते ही कांग्रेस में नंबर दो बनने की होड़ मच गई। चूंकि अभी नेहरू गांधी परिवार के वारिसान मौजूद थे, इसलिए किसी अन्य नेता को नंबर दो की कुर्सी तक पहुंच पाना दुष्कर ही था।
जयपुर में चिंतन शिविर में सिर्फ और सिर्फ युवराज की चिंता ही की गई। युवराज को उपाध्यक्ष बनाया गया। वे कांग्रेस के तीसरे उपाध्यक्ष बने हैं। सोनिया ने उन्हें पांच सदस्यीय चुनाव संचालन समिति का मुखिया बनाया है। राहुल के उपाध्यक्ष बनते ही कांग्रेस के जरखरीद मीडिया ने राहुल चालीसा का पाठ आंरभ कर दिया। राहुल की तारीफों में जो कशीदे गढ़े गए उससे लगने लगा मानो राहुल प्रधानमंत्री ही बन गए हों। वहीं, कांग्रेस के उमरदराज और उनके पिता से बड़े नेताओं ने भी राहुल का स्तुतिगान करना आरंभ किया। नेताओं ने तो यहां तक कह डाला कि राहुल तो पहले से ही कांग्रेस में नंबर दो थे। वैसे तो यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला है किन्तु कांग्रेस की अगुआई में आज संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार अस्तित्व में है, इसलिए कांग्रेस की आंतरिक गतिविधियों पर देश की नजर होना स्वाभाविक ही है।
राहुल गांधी को जिस तरह महिमा मण्डित किया गया है उससे अब उनकी जवाबदेहियां कई गुना बढ़ चुकी हैं। आने वाले समय में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव और आम चुनाव भी राहुल गांधी की राह तक रहे हैं। ये राहुल के लिए कांटों भरी राह से कम नहीं होगी। इसका कारण यह है कि संगठन में ब्लाक, शहर, जिला और राज्य स्तर पर निष्पक्ष चुनाव कराना आसान नहीं है। कमोबेश हर जगह कांग्रेस के चुने हुए पदाधिकारियों के बजाए तिलक लगाकर बिठाए पदाधिकारी मौजूद हैं। राहुल गांधी के बारे में कहा जाने लगा है कि वे जल्द ही अपना टेम्पर लूज करने लगे हैं इन परिस्थितियों में उनके आस पास वे ही नेता रह जाएंगे जा चाटुकारिता के दम पर उनकी खरी खोटी सुनने को तैयार हों।
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौति तो इस बात की है कि क्या वे पार्टी में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर पाएंगे। अगर देखा जाए तो सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृति की आयु 62 साल है पर दिल्ली की निजाम को ही ले लें। श्रीमति शीला दीक्षित 75 की होने को आईं और अभी भी सीएम बनी हुई हैं। क्या इन परिस्थितियों में युवाओं को साथ ले पाएंगे राहुल गांधी? राहुल गांधी कौन सा काला जादू दिखाएंगे कि देश के 41 करोड़ युवा मतदाता उनके हाथ करने आगे आएंगे?
राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आएगी कि वे केंद्र सरकार या कांग्रेस शासित राज्यों की नीतियों रीतियों को गलत नहीं ठहरा पाएंगे। वस्तुतः नीतियां ही इस कदर बनी और अमली जामा पहन रही हैं कि सरकारी धन की होली जमकर खेली जा रही है। राहुल गांधी का सबसे अंधेरा पहलू यह है कि वे भ्रष्टाचार, दिल्ली गेंग रेप, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, मंहगाई, केंद्रीय मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों आदि के मसले पर सदा ही मौन रहे हैं।
देश की जनता हत्प्रभ है कि आखिर क्या वजह है कि राहुल गांधी गैस सब्सीडी, तेल की कीमतों, मंहगाई, गेंग रेप, विदेशी बैंक को छूट, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, एस बेण्ड, टूजी, कामन वेल्थ, कोल, गोदावरी तेल ब्लाक, आदर्श सोसायटी, यूपी का अनाज घोटाला, एनआरएचएम घोटाला, एयर लाईंस घोटाला आदि के मामलों में राहुल गांधी की क्या मौन सहमति है?
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की दूसरी पारी में महज एक साल में ही दस लाख करोड़ रूपयों की भ्रष्टाचार के हवन कुण्ड में आहुती देने से हाहाकार मच गया। नेशनल कैंपेन अगेंस्ट करप्शन ने मई 2009 से जनवरी 2011 तक के बीच हुए प्रमुख भ्रष्टाचार के महाकांडों की फेहरिस्त तैयार की थी। इसमें पहली पायदान पर संचार मंत्रालय द्वारा टूजी स्पेक्ट्रम लाईसेंस में केंद्रीय महालेखा नियंत्रक एवं परीक्षक ने पौने दो सौ लाख रूपए की हानि का प्रकरण बना था। इस प्रकरण में सीबीआई ने पूर्व संचार मंत्री आदिमत्थू राजा सहित अनेेक अफसरान को शिकंजे में कस दिया।
वहीं, जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप था कि टूजी में ही कांग्रेस और द्रविड़ मुनैत्र कषगम के नेताओं ने साठ हजार करोड़ की रिश्वत ली। इसके बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की विपणन कंपनी और एक निजी क्षेत्र की कंपनी देवास मल्टी मीडिया के बीच दो उपग्रहों के दस ट्रांसपोंडर को बारह वर्ष के लिए लीज पर देने के मामले में सीएजी ने प्राथमिक परीक्षण में दो लाख करोड़ रूपए का नुकसान आंका। उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का अनाज नेपाल, बंग्लादेश और अफ्रीका जैसे देशों में बेचने का मामला प्रकाश में आया जिसमें दो लाख करोड़ का घोटाला सामने आया। इसके बाद नंबर आता है राष्ट्रीयकृत बैंक का भवन आवासीय ऋण घोटाला जिसे छत्तीस हजार करोड़ रूपयों का आंका गया। सिटी बैंक में अरबों रूपयों के केंद्रीय सरकार के मैटल स्क्रेप ट्रेडिंग कार्पाेरेशन के छः सौ करोड़ रूपए के सोने का महाघोटाला भी इसी फेहरिस्त में शामिल किया गया।
महाराष्ट्र प्रदेश के पूना के एक अस्तबल के मालिक हसन अली खान के स्विस बैंक, यूबीएस ज्यूरिक में सवा आठ अरब डालर अर्थात लगभग छत्तीस हजार करोड़ रूपए के खाते के रहस्य से भी पर्दा उठा। 2009 - 2010 के बजट में यह रहस्य भी सामने आया कि हसन अली के उपर लगभग साढ़े पचास हजार करोड़ रूपयों का आयकर बाकी है। सिविल सोसायटी के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने सरकार की मुखालफत की तो सरकार ने उन पर तत्काल शिकंजा कस दिया किन्तु एक जरायमपेशा व्यक्तित्व पर पचास हजार करोड़ का आयकर कैसे बाकी रह गया यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
एक चाटर्ड एकाउंटेंट का कथन था कि हसन के विदेशी खातों में छत्तीस हजार करोड़ के बजाए डेढ़ लाख करोड़ रूपए होना अनुमानित है। आयकर चोर एक मामलू घोडों के अस्तबल का मालिक हसन अली कितना रसूखदार है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेशक अजीज डोवाल, प्रोफेसर आर.वैद्यनाथन, एस.गुरूमूर्ति, महेश जेठमलानी के अलावा कांग्रेस के आलाकमान से भी संबंधों का खुलासा हुआ।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त जे.एम.लिंगदोह, पूर्व राजस्व सचिव जावेद चौधरी, सहित अनेक अफसरों ने केरल के पामोलिन कांड में आरोपी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पी.जे.थामस को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाए जाने को चुनौती दी। बाद में सरकार को इस मामले में अपने कदम वापस लेने पड़े और भ्रष्ट अधिकारी थामस को सीवीसी के पद से हटाना ही पड़ा। देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा व्यवस्था की पोल तब खुली जब पचपन हजार करोड़ रूपयों की लड़ाकू हवाई जहाज की खरीद से संबंधित गोपनीय नस्ती सड़क पर लावारिस हालत में मिली।
तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने निजी एयरलाईंस की मदद करते हुए एयर इंडिया के डैनों की हवा निकाल दी। आज आलम यह है कि एयर इंडिया भारी कर्जे में है और उसके पास तेल के बाकी पैसे चुकाने तक को पैसे नहीं है। आज एयर इंडिया के कर्मचारियों को तनख्वाह देने के बांदे हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री शरद पंवार पर आरोप है कि उन्होने अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए कम दाम वाली चीनी और प्याज के निर्यात की अनुमति दे दी जिससे देश में इनका संकट तो पैदा हुआ ही साथ ही साथ इनकी दरें तेजी से उपर आईं। फिर पंवार ने इनका आयात आरंभ किया।
कार्पाेरेट घरानों की तगड़ी पैरोकार नीरा राड़िया के टेप ने तो मानो भारत के सियासी तालाब में मीटरांे उंची लहरें उछाल दीं। नीरा राडिया के टेप कांड में जब यह बात सामने आई कि द्रमुक के सांसद आदिमुत्थु राजा को मंत्री बनाए जाने लाबिंग की गई तब लोगों के हाथों के तोते उड़ गए। इसमें अनेक मंत्रियों पर सरेआम पंद्रह फीसदी कमीशन लेकर देश सेवा तक करने की बात भी कही गई। विडम्बना यह कि साफ साफ आरोपों के बाद भी न तो मनमोहन कुछ करने की स्थिति में हैं और न ही इस मामले में सोनिया गांधी ही कुछ कर पाईं।
यह, मामला शांत नहीं हुआ कि सीएजी ने कामन वेल्थ गेम्स में हजारों करोड़ रूपयों की होली खेलने की बात कही गई। कांग्रेस के चतुर सुजान मंत्री कपिल सिब्बल कभी कलमाड़ी के बचाव में सामने आए तो कभी तत्कालीन संचार मंत्री ए.राजा के। अंततः दोनों ही को जेल की रोटी खानी पड़ रही है। केंद्रीय महालेखा नियंत्रक और परीक्षक ने कामन वेल्थ गेम्स में सत्तर हजार करोड़ रूपयों की अनियमितता पकड़ी।
बिहार सरकार ने वहां के पूर्व राज्यपाल बूटा सिंह द्वारा अरबों रूपयों के नदी तटबंधों के ठेकों की जांच के आदेश भी जारी किए। सीबीआई ने उनके पुत्र को एक करोड़ रूपए रिश्वत लेते रंगें हाथों धरा गया। इतना ही नहीं सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भ्रष्टाचार के आरोपी प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.एस.लाली को निलंबित कर उनके एवं मध्य प्रदेश काडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी अरूणा शर्मा के खिलाफ जांच की सुस्तुति की गई। रूस से विमानवाहक जंगी जहाज खरीदने के सिलसिले में रक्षा मंत्रालय द्वारा वरिष्ठ नौसेना अधिकारी की बर्खास्तगी की गई। सम्प्रग सरकार के लिए स्विस बैंक सहित अन्य बैंकों में जमा अस्सी लाख करोड़ रूपए से ज्यादा की देश वापसी आज भी पहेली बनी हुई है।
राहुल गांधी के सलाहकारों ने उन्हें स्क्रिप्ट लिखकर दी, कुछ माहों पहले राहुल गरजे और कहा कि अगर नेहरू गांधी परिवार का पीएम होता तो बाबरी ढांचा नहीं गिरता! राहुल की इस हुंकार से यही अंदाजा लगाया गया कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री नरसिंहराव ही बावरी विध्वंस के लिए दोषी थे? बाद में कांग्रेस को राहुल गांधी की नादानी समझ में आई तब जाकर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को बयान देना पड़ा और पीएम ने कहा कि नरसिंहराव उनके जनक और आर्थिक सुधारों के अद्भुत ज्ञाता थे। पीएम ने राव को सन्यासी नेता तक करार दिया।
इतना ही नहीं राहुल गांधी की नादानियां समाप्त नहीं हुईं। या यूं कहा जाए कि जिन हाथों में राहुल गांधी खेल रहे हैं, वे राहुल गांधी का उज्जवल भविष्य कतई नहीं चाहते हैं। उत्तर प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव को राहुल गांधी की देखरेख में करवाया गया। 403 विधानसभा वाले उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी और सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र आता है। उत्तर प्रदेश में पहले 22 तो अब 2012 में 28 सीट आना आखिर क्या दर्शा रहा है? जाहिर है राहुल गांधी को भी गुरू द्रोणाचार्य के बजाए कोई नौसिखिया ही शिक्षा दे रहा है।
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर अब आउल बाबा के नाम से चुटकुले और कहानियां बनना आरंभ हो गई हैं। आउल का अर्थ अंग्रेेजी में उल्लू होता है। देश की वर्तमान हालात के लिए सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर आम आदमी के निशाने पर हैं राहुल, सोनिया और मनमोहन ंिसंह। उधर, गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी के कथित प्रशंसक उन्हें देश भर का नेता बनाने पर आमदा हैं। साईट्स पर मोदी बनाम राहुल की जंग चल पड़ी है।
गुजरात में हिन्दुत्व के प्रहरी के बतौर नरेंद्र मोदी को पेश किया गया और राहुल के हाथों गुजरात की कमान थी विधानसभा चुनावों में। गुजरात के परिणाम आए और राहुल गांधी चारों खाने चित्त धड़ाम से फर्श पर गिर पड़े। गुजरात में मोदी ने अपने दम पर दुबारा सरकार बना ली। रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस के सीएम पद के घोषित दावेदार शक्ति सिंह गोहिल के साथ ही साथ गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अर्जुन मोड़वाडिया भी खेत (चुनाव हार गए) रहे।
अब सोचना सिर्फ और सिर्फ सोनिया और राहुल गांधी को ही है कि उनके उनके नेतृत्व में कांग्रेस कहां पहुंची है और कांग्रेस के चाटुकार, रणनीतिकार और मंत्री कहां। राहुल गांधी का राज्याभिषेक होने को है, पर सोनिया सोचें कि वे जब अपना राजपाट अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंपेंगी तो उसमें कितने प्रदेशों की रियासतें और कितने आलंबरदार, झंडाबरदार राहुल गांधी के नेतृत्व में सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के झंडे को उठाने को तत्पर होंगे। राहुल गांधी को मौकापरस्त कपड़े की तरह पार्टी बदलने वाले और बिना रीढ़ वाले यानी राज्य सभा के रास्ते राजनीति करने वालों को किनारे करना होगा। इसी तरह आसमान से उतरकर नेतागिरी करने वाले बिना जनाधार वाले नेताओं को भी बाहर का रास्ता दिखाना होगा। कांग्रेस में राहुल गांधी को साठ पेंसठ साल से ज्यादा वाले नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में लाकर उन्हे चुनाव से दूर रखना होगा वरना कांग्रेस जिस रास्ते पर चल चुकी है वह अंधेरी सुरंग की ओर जाता ही दिख रहा है। (साई फीचर्स)

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