सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कैग पहरेदार या बाबू!

कैग पहरेदार या बाबू!

(लिमटी खरे)

भारत के लेखा महानियंत्रक अर्थात कैग और सरकार के बीच रार छिड़ी दिख रही है। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को कटघरे में खड़ा करने पर कांग्रेस की बयानवीर तोपें एकाएक गरजने लगी हैं। सरकार मौन है पर संगठन द्वारा कैग को निशाने पर लिया जा रहा है। कैग की स्थापना भारत गणराज्य में क्यों और किसलिए की गई थी? क्या कैग का काम क्लर्की और मुनीमी तक ही सीमित है? क्या भारत गणराज्य में कैग को इसीलिए बनाया गया कि वह सरकारी खर्चों का लेखा जोखा ही रखे? दरअसल, हमारे संविधान में कैग की स्थापना सही गलत के अंकेक्षण और सरकार को लगातार चेताने के लिए किया गया है कि सरकार के कोष में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित धन का उपयोग सही किया जा रहा है या उसमें गफलत हो रही है? सरकारी कोष में जमा धन सार्वजनिक होता है उसका दुरूपयोग रोकना कैग की महती जवाबदेही है।

भारत के लेखा महानियंत्रक विनोद राय का कहना एकदम सही और सटीक है कि कैग का काम सिर्फ सरकारी खर्च में हुई अनियमितताओं का प्रतिवेदन बनाकर सरकार को देना भर नहीं है। इतने भर से कैग की जवाबदेही पूरी नहीं हो जाती है। विनोद राय भारत के लेखा महानियंत्रक की जिम्मेदार आसनी पर विराजमान हैं, उन्होंने जो कुछ कहा वह निश्चित तौर पर पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता से कहा होगा। विनोद राय को कैग के अधिकार, उसकी कार्यप्रणाली, सीमाएं आदि के बारे में निश्चित तौर पर कांग्रेस के भोंपूओं से ज्यादा माहिती होगी।
भारत के संविधान का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि कैग को मुनीमी या क्लर्की के लिए सृजित नहीं किया गया था। कैग के हवाले अनेक जिम्मेदारियां जिम्मेवारियां हैं। कैग को भारत गणराज्य की लोकतांत्रिक प्रणाली के अधीन ही संवैधानिक तौर पर सृजित किया गया वह पद है जो सरकार को हर कदम पर यह चेतावनी देता रहे कि सार्वजनिक धन का सदुपयोग हो और उसका दुरूपयोग हर स्तर पर रोका जाए।
कैग विनोद राय के वक्तव्यों का विरोध कर उसे गलत दिशा में ले जाने वाले कांग्रेस के भोंपू भी संसद के सदस्य रहे हैं। वे इस बात को भली भांति जानते होंगे कि कैग की सिफारिशों को लोकसभा में पेश किया जाता है, इसके उपरांत संसद की जिम्मेदार लोक लेखा समिति इसका अध्ययन कर इसकी समीक्षा के उपरांत इस पर कार्यवाही की सिफारिश भी करती है। इसकी सिफारिशों से ही देश में भ्रष्टाचार के खात्मे के मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं।
भारत गणराज्य ने जिस तरह की लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली अपनाई है उसकी रीढ़ यही है कि सरकारी खजाने में आने वाले सार्वजनिक धन को सही तरीके से खर्च किया जाए और उसमें भ्रष्टाचार ना हो सके। इस धन में बंदरबांट और भ्रष्टाचार रोकने के लिए कैग को पहरेदार की भूमिका में खड़ा किया गया है। इस लिहाज से कैग को इस बात का पूरा अधिकार है कि वह हर मद में खर्च किए गए सरकारी धन के सदुपयोग और दुरूपयोग की समीक्षा कर इस बात को सरकार के संज्ञान में अवश्य लाए कि गफलत आखिर कहां हुई है।
निश्चित तौर पर आजादी के समय भारत देश में परिदृश्य चाहे सामाजिक हो, राजनैतिक हो या आर्थिक, हर दृष्टिकोण से आज से बहुत भिन्न था। जिस वक्त कैग की स्थापना हुई उस समय के परिदृश्य और आज के परिदृश्य में जमीन आसमान का अंतर है। शुरूआती दौर में सरकार द्वारा अपने ही स्तर पर सार्वजनिक कंपनियों को खड़ा किया जा रहा था, पर आज उन कंपनियों को बेचा जा रहा है। सरकार अपनी ही कंपनियों को बेचकर खजाने को भर रही है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पिछले लगभग दो दशकों से कथित तौर पर महिमा मण्डित किए गए महान अर्थशास्त्री डॉ.मनमोहन सिंह और पलनिअप्पम चिदम्बर का ही अर्थशास्त्र और आर्थिक नीतियों पर चल रहा है भारत गणराज्य फिर भी मंहगाई का ग्राफ सुरसा के मुंह की तरह ही बढ़ता जा रहा है।
कैग को पूरा अधिकार है कि वह सार्वजनिक धन में हुई गफलत की जानकारी भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और सांसदों को बताए कि आखिर जनता के धन में किसने कहां लूट मचाई है। भारत में होने वाले घपले घोटालों के साथ ही साथ सांसदों को दी जाने वाली सांसद निधि के उपयोग की भी जांच सुनिश्चित होना अनिवार्य है। वहीं सरकार के साथ विपक्ष का होना इसलिए भी आवश्यक होता है क्योंकि सरकार निरंकुश ना हो जाए।
विडम्बना ही कही जाएगी कि आज सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही मिलकर जनता जनार्दन को बेवकूफ बनाने पर तुले हुए हैं। कामन वेल्थ घोटाले से लेकर अब तक ना जाने कितने घपले घोटाले सामने आ चुके हैं पर विपक्ष थोड़ा बहुत विरोध कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री ही करता नजर आता है। देश में मंहगाई बढ़ रही है, हर पग पर भ्रष्टाचार हो रहा है पर विपक्ष को इसकी चिंता नजर नहीं आती है। इसका कारण यह है कि सांसदों के वेतन भत्ते और सुविधाएं ही देख लें तो आम आदमी बेहोश हो जाए।
कैग के बयान के बाद कांग्रेस के बयानवीरों को लगी मिर्ची समझ से परे है। नेता अब कह रहे हैं कि कैग क्या पीएम बनना चाह रहे हैं। अरे आप जिम्मेदार नेता हैं कम से कम बयान तो जिम्मेदारी के साथ दें। कैग ने क्या गलत कहा यह तो पहले बताया जाए? विपक्ष भी मौन रहकर तमाशाई बना हुआ है। कैग के बारे में कोई भी बयान देने के पहले नेताओं को कम से कम भारत के संविधान में कैग की भूमिका, उसके अधिकार, कर्तव्य, सीमाओं के बारे में जानना आवश्यक है, विडम्बना है कि कोई भी इसके बारे में जाने समझे बिना ही दनादन बयान दे रहा है। भारत के लेखा महानियंत्रक को सार्वजनिक धन का पहरेदार कहा जा सकता है। उसे बाबू या क्लर्क तो कतई नहीं समझा जाना चाहिए। (साई फीचर्स)

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