कर्र्फ्यू में
फंसे दो भुक्तभोगियों की आप बीती
पुलिस प्रशासन जिन्दाबाद
. . .
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। 7
फरवरी को सिवनी जिले में तनाव की स्थिति में कर्फ्यू लगा दिया गया था। इस दौरान
ए।पवन नामक एक भुक्तभोगी ने अपनी पीड़ा का बयान किया है। स्थानीय समाचार पत्र में
प्रकाशित उसकी पीड़ा भरे पत्र के मुताबिक मैं अपने एक दोस्त के साथ बस स्टेंड से
वापस आ रहा था। हम दोनो दोस्तों को शहर के माहौल के बारे में कुछ भी पता नहीं था, मतलब कर्फ्यू के
बारे में। हम दोनो मिले और बात हुई की चल भाई चाय पी कर आते हैं और हम दोनो इसकी
तालाश में बस स्टेंड पहुँचे।
वहां पहुँचने के बाद हमने देखा की वहाँ तो
स्थिति बहुत ही खराब है। पूरे के पूरे स्टेंड में चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट
हमें एक भी इंसान नज़र नहीं आया। जहाँ दूर तक देखो वहां सन्नाटा ही नजर आ रहा था
इतने में मैंने अपने दोस्त से कहा यार भाई यहां तो पूरा स्टेंड ही बंद है चल वापस
चलते हैं कोई लफड़ा न हो जाये उसने भी मेरे साथ हामी भरी- हां चल चलते हैं। जैसे ही
हम प्राइवेट बस स्टेंड से एनएच-7 पर आये तो दूर एक नज़र पड़ी वहाँ तीन पुलिस वाले
अपने हाथ में एक-एक लम्बा सा डंडा लिए खड़े हुए थे और जो भी उन्हें नज़र आ रहा था
उन्हें बे-रेहमी से मार रहे थे जैसे ही मैने ये नज़ारा देखा मैं एकदम से सकपका गया
मुझे लगा शायद यहां लाठी चार्ज हुआ हैं। मैने दूर से ऐसा देखते ही अपनी गाड़ी पलटा
ली। गाड़ी पलटा कर हम मिशन कॉम्पलेक्स वाली रोड से नेहरू रोड आना चाहते थे पर मन
में एक डर भी था कि यार मुस्लिमों के एरिये में तो कोई नाटक नहीं हुआ।
हमने छोटी मस्जिद
वाली रोड में गाड़ी डालने से पहले सोचा चल पुलिस वालों से ही बात करते हैं। हमने
अपनी गाड़ी पलटायी और कोतवाली पहुँचे। अचानक ही वो पुलिस वाले अपने डंडे के साथ फिर
से नज़र आये। मैनें उनमें से एक से कहा- सर हम घर जा रहें हैं प्लीज़ सर जाने
दीजिये। अचानक ही उस पुलिस वाले ने कहा- घर जा रहे हो जाओ ये सुनते ही मेरी जान
में जान आयी और मैनें अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। जैसे ही मेरी गाड़ी आगे बढ़ी। मुझे
अचानक एक आवाज़ आयी। वो आवाज़ सुनते ही मैं समझ गया की मेरे पीछे बैठे मेरे दोस्त को
कस कर एक डंडा पड़ा। मैने वो आवा़ज आते ही अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी लेकिन तब तक
मेरे दोस्त को तीन डंडे पड़ चुके थे। मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैं जानता था
कि मैं सनी देओल तो हूँ नहीं, जो पुलिस वालों को ही मार दूं। मैनें सटाक से अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई। जैसे ही मेरी गाड़ी
आगे बढ़ी। मैंने अपने दोस्त से पूछा - भाई लगी तो नहीं इतने में उसने कहा - भाई
पहले भाग। उतने में हमारी गाड़ी नगरपालिका पहुँची वहां देखा तो 12-15 पुलिस वाले
हमारी तरफ ही भागते हुए चले आ रहे थे हमें जाना तो महावीर मढ़िया था लेकिन डर के
मारे हमने गाड़ी नेहरू रोड में डाल दी। मैने सोचा चलो पहले दोस्त को छोड़ देता हूँ
जैसे ही हमारी गाड़ी आगे बढ़ी तो हमने देखा की नायक क्लाथ स्टोर वाली गली से लगभग
10-12 पुलिस वाले और 6-7 पुलिस वाले शिवानी होटल के सामने से आ रहे थे। जैसे ही
मैने ये नज़ारा देखा मेरी तो जान गले में आ गयी। मुझे समझ आ गया कि कर्फ्यू लगा
हुआ है। पर मरता
क्या न करता डर के मारे हमने अपनी गाड़ी मालू ज्वेलर्स के समाने लगायी और पैदल ही
भागने लगे हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या न करें तब तक वो पुलिस
वाले हमारे बहुत करीब आ चुके थे पीछे मैं और आगे मेरा दोस्त। जैसे ही एक पुलिस
वाला मेरे करीब आया मैं जोर से चिल्लाया - ङ्गपुलिस प्रशासन जिन्दाबादङ्घ जैसे ही
मैने ये शब्द कहे तो मेरे करीब वाले पुलिस वाले ने कहा - ङ्गपुलिस प्रशासन
जिन्दाबाद।।।?ङ्घ और कस
कर मेरे पीछे एक डंडा घुमाया। मैने सोचा यार।।। यहाँ तो तरीफ करने पर भी डंडे पड़
रहे हैं। इतने में मेरे आगे चल रहे मेरे दोस्त की आवाज़ सुनाई पड़ी मुझे उसने कहा
ङ्गपुलिस प्रशासन मुर्दाबाद।।।ङ्घ । उसे दो डंडे पड़ गये। मैनें मन ही मन सोचा
यार।।। ये कैसे इंसान हैं तारीफ करो तो भी डंडा खाओ नहीं करो तो एक डंडा ज्यादा
खाओ। लेकिन हमारा पूरा ध्यान भागने पर था जैसे-तैसे हम अपने एक करीबी के घर
के बाहर पहुँचे और हमें दो तरफ से पुलिस
वालों ने घेर लिया था। और वे अपने डंडे घुमा रहे थे। डंडों से बचने के लिए चीनी और
जापानी जितनी भी मूवी देखी थी उनमे दिखाये सारे पैंतरे अपनाये । और अपने उस करीबी
के घर के अंदर जाने की कोशिशें करने लगे। लेकिन हमारी किसी भी तरकीब ने कोई काम
नहीं किया और फिर मुझे दो डंडे पड़ ही गये। और मैं करीबी के घर में दाखिल हो गया और
मेरा दोस्त तो माशा अल्लाह था उसने वहां भी मुझसे एक डंडा ज्यादा खा लिया जैसे ही
मैं पलटा एक पुलिस वाले ने एक डंडा और घुमाया और मैने अपने दोस्त से कहा भाई और
कितना पिटेगा अंदर आ जा तब तक उसे एक डंडा और पड़ चुका था। मैने अपने दोस्त का हाथ
पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया और उसने अंदर आते ही कहा - भाई बाल-बाल बचे। मैं ये
सोच रहा था कि इतने डंडे खाने के बाद भी ये ऐसा क्यों कह रहा है कि बाल-बाल बचे।
खैर जो भी हो सच तो यह है कि हमे खुशी इस बात की थी कि अब हमे और डंडे नहीं पड़ने
वाले। मैं ये नहीं जानता था कि वो एक कप चाय मुझे और मेरे दोस्त को इतनी मार
पड़वाने वाली है। मैं शुक्रगुज़ार हूं उन पुलिस वालों का क्योंकि जो काम मैं कभी
नहीं कर पाया (अपने दोस्त की पिटाई ) वो काम पुलिस वालों ने फ्री में कर दिया।
जब आपको मार पड़ती
है तो आपको बहुत बुरा लगता है और जिल्लत महसूस होती है। लेकिन वही मार जब अपने
दोस्त को पड़ती है तो ये तसल्ली हो जाती है कि ये अब मुझ पर हँसेगा नहीं। मुझे इस बात का दुख कम था कि मुझे डंडे पड़े
बल्की इसकी खुशी ज्यादा थी कि मेरे दोस्त को मुझसे भी ज्यादा पीटाई पड़ी। इस समय
मेरे दर्द के लिए मेरी तसल्ली का यही एक सहारा था। मैं ये वाक्या कभी नहीं भूल
पाऊंगा। साथ ही यह?भी कहना
चाहुँगा कि भाई किसी को मारना है तो हिसाब से मारो अगर मेरे दोस्त को कुछ हो जाता
तो मैं कभी खुद को मांफ नहीं कर पाता। अंत
में मैं यही लिखना चाहूँँगा - ङ्गपुलिस प्रशासन जिन्दाबाद।।ङ्घ भाई इसे
पढ़ने के बाद अब मत मारना वैसे ही तीन दिन से शरीर बहुत दुख रहा है।
जय हिंद
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