बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

पोप से लें भारतीय नेता प्रेरणा


पोप से लें भारतीय नेता प्रेरणा

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य में सेवानिवृति की आयु सरकारी तौर पर निर्धारित है पर हुक्मरानों के लिए यह आयु सीमा मायने नहीं रखती है। सरकारी तंत्र में पहले 58 फिर 60 और कई स्थानों पर 62 वर्ष की आयु सीमा सेवानिवृति के लिए निर्धारित है। राजनीति में यह आयुसीमा अंतिम समय तक ही मानी जाती है। राजनीति में युवा का तातपर्य 45 से 65 ही माना जाता है। सरकारी नियमों के हिसाब से ना जाने कितने सांसद विधायक आज सेवानिवृति के उपरांत का जीवन जी रहे हैं। इनमें मंत्री भी शामिल हैं। ईसाई धर्मगुरू पोप बेनडिक्ट सोलहवें ने जो किया है वह निश्चित तौर पर अनुकरणीय है, भारतीय राजनेताओं को पदलिप्सा छोड़कर पोप से सबक लेकर युवाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

मसीही समाज के धर्मगुरू जोसफ एलोयसियस वाकई में एक सादगी पसंद, विनम्र और नेकदिल इंसान हैं। उनकी सादगी और साफगोई पर कौन ना मर मिटे। पोप बेनडिक्ट सोलहवें बनने के उपरांत भी उन्होने कमोबेश साफगोई का प्रदर्शन किया है। याद पड़ता है कि एक मर्तबा उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि उनमें संगठन और एडमिनिस्ट्रेश की आवश्यक क्षमताओं का अभावा है। कोई अपना आंकलन इस तरह करे तो उसे क्या कहा जाएगा! निश्चित तौर पर लोगों के दिलों में उनके प्रति श्रृद्धा कई गुना बढ़ गई होगी जब उन्होंने इस तरह की बात कही थी।
धर्मगुरूओं का काम समाज को दिशा देना है। 2005 में पोप बनने के उपरांत 2013 में 28 फरवरी को अपना पद छोड़ने की घोषणा कर उन्होंने दुनिया भर के लोगों को एक संदेश दिया है कि आने वाली पीढ़ी को मौका दिया जाना अत्यावश्यक है। स्वेच्छा से पद त्याग करने वाले वे पहले कैथलिक धर्मगुरू होंगे, वरना यह पद तो जीवन पर्यंत ही रहता है। इसके पहले 1415 के उपरांत देह त्याग के साथ ही पोप का पद छूटा है।
खबरों के अनुसार पोप बेनडिक्ट सोहलवें ने आत्म मंथन किया और पाया कि वे अब इस पद को संभालने की शक्तियों से खुद को विरत पा रहे थे अतः उन्होंने यह कदम उठाया। इस पद को छोड़ना वैसे पोप के लिए कोई मजबूरी कतई नहीं था। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पोप का पद आजीवन के लिए ही होता है।
भारत गणराज्य में भी मसीही धर्मावलंबियों की तादाद कम नहीं है। हर धर्म को मानने वाला अपने धर्म गुरू से सदा ही दिशा की उम्मीद रखता है। पोप ने पद त्याग की घोषणा के साथ यह संदेश भी दिया है कि अगर मस्तिष्क और शरीर साथ ना दे तो पद से चिपके रहना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
वैसे धर्मगुरू चाहे वह किसी भी धर्म या पंथ का हो, वह निर्विकार, निस्वार्थ भाव से देश दुनिया को अपने चाल चलन, आचार विचार, व्यवहार आदि से संदेश देते रहता है। कमोबेश इसी आधार पर भारत गणराज्य में प्रजातंत्र या गणतंत्र की स्थापना की गई थी। जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए की अवधारणा पर बना था भारत गणराज्य।
इस देश के लोकतंत्र में केंद्रीय स्तर पर संसद सदस्य और सूबाई स्तर पर विधानसभा सदस्यों का काम जनता की सेवा करना ही निर्धारित किया गया था। सरकारी मुलाजिम और जनप्रतिनिध दोनों ही को जनसेवक का दर्जा दिया गया था, जिनका काम रियाया की सेवा करना ही प्रमुख था।
आज भारत गणराज्य में स्थितियां पूरी तरह उलट गई हैं। आज भारत में जनता के सेवक हुक्मरान की भूमिका में हैं और रियाया बेबस कराह रही है। आज देश में राजनेताओं की औसत आयु सत्तर साल के लगभग है। देश के महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री डॉ।मनमोहन सिंह अस्सी के पेटे में हैं। एल।के।आड़वाणी भी इसी दौर के हैं और आज भी प्रधानमंत्री बनने की लालसा रखते हैं।
एक बार कांग्रेस के एक सम्मेेलन में कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अब समय आ गया है कि साठ से उपर वाले राजनेता सेवानिवृत्ति ले लें। उस समय मीडिया में यह बात काफी हद तक उछली भी थी, पर नेताओं की कथनी और करनी का साफ अंतर दिख ही जाता है। आज केंद्रीय मंत्रीमण्डल के सदस्यों में साठ से ज्यादा आयु के नेताओं की तादाद ज्यादा ही है।
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भी मसीही धर्मावलंबी हैं। उन्हें चाहिए कि पोप बेनडिक्ट सोलहवें की इस नायाब पेशकश में छिपे संदेश को पहचानें और सबसे पहले खुद उमरदराज होने के कारण कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ें और कांग्रेस के नेताओं को यह आदेश दें कि साठ या पेंसठ साल से अधिक के नेता चुनाव ना लड़ें।
अगर सोनिया गांधी इस तरह की नजीर पेश करती हैं तो मजबूरी में अन्य दलों के नेताओं को इस बात को अपनाना ही होगा, और तब बनेगा नेहरू गांधी के सपनों का असली युवा और सशक्त भारत। बहरहाल पोप बेनडिक्ट सोलहवें ने जो नजीर पेश की है उसे देखकर सुनकर हर इंसान चाहे वह किसी भी मजहब, जात, पंथ आदि का हो यही कहेगा - पोप वी मस्ट सैल्यूट यू! (साई फीचर्स)

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