0 घंसौर को झुलसाने
की तैयारी पूरी . . . 96
संरक्षित वन में
कैसे बन रहा थापर का पावर प्लांट!
(एस.के. खरे)
सिवनी (साई)। मशहूर
उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स
झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल मध्य
प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड कें ग्राम बरेला में
प्रस्तावित 1200 मेगावाट का कोल आधारित पावर प्लांट पूरी तरह संरक्षित वनों से न
केवल घिरा हुआ है वरन् यह संरक्षित वन क्षेत्र में ही बन रहा है। संयंत्र प्रबंधन
ने इसके पहले चरण की लोकसुनवाई में संरक्षित वनों के बारे में चुप्पी ही साधी रखी
थी जो अनेक संदेहों को जन्म दे रही है।
आरोपित है कि 22
अगस्त 2009 को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा आहूत लोकसुनवाई के पूर्व
संयंत्र प्रबंधन द्वारा जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में इस संयंत्र के प्रथम चरण
में आसपास कोई भी नेशनल पार्क नहीं होना दर्शाया गया था। उल्लेखनीय होगा कि
संयंत्र स्थल से महज सत्तर किलोमीटर दूर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कान्हा नेशनल
पार्क अवस्थित है। इतना ही नहीं संयंत्र प्रबंधन ने संयंत्र के इर्दगिर्द रक्षित
वनों के मामले में इस संबंध में मौन साध लिया गया था।
यहां एक बात
उल्लेखनीय होगी कि गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर में
डाले जा रहे पावर प्लांट का संयंत्र स्थल लगभग एक दर्जन संरक्षित वनों से ना केवल
घिरा हुआ है वरन् यह संयंत्र भी एक संरक्षित वन में ही स्थापित किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान की मंशा इस बारे में स्पष्ट नहीं हो पा
रही है कि वे वनों के हितैषी होकर उसे बचाने का प्रयास कर रहे हैं या फिर अपनी
कुर्सी बचाने की जुगत में वनों को ही उजाड़ रहे हैं।
बहरहाल, शोर शराबा होने के
बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के
प्रथम चरण को हरी झंडी दे दी गई। इसके उपरांत जब दूसरे चरण की लोकसुनवाई संपन्न
हुई तब मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा एक बार फिर पहले चरण का ही कार्यकारी
सारांश मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंप दिया गया। पीसीबी के सूत्रों
का कहना है कि जब इसमें लिखित खामियों के बारे में हल्ला मचा तब संयंत्र प्रबंधन
ने मण्डल के कारिंदों की मदद से कार्यकारी सारांश ही बदल दिया।
सूत्रों ने कहा कि
नए कार्यकारी सारांश के पांचवें पेज में संयंत्र प्रबंधन ने कहा है कि इस संयंत्र
के इर्द गिर्द एक दो नहीं एक दर्जन संरक्षित वन हैं। इसमें उत्तर से दक्षिण में
तीन किलोमीटर रोटो संरक्षित वन, उत्तर से उत्तर पूर्व में साढ़े सात किलोमीटर
पर बरवाक्चार संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में नौ किलोमीटर पर काटोरी संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में
तीन किलोमीटर पर धूमा संरक्षित वन है।
इसके अलावा दक्षिण
में साढ़े सात किलोमीटर पर घंसौर संरक्षित वन, पश्चिम उत्तर पश्चिम में डेढ़ किलोमीटर पर
भाटेखारी संरक्षित वन, पूर्व दक्षिण पूर्व में साढ़े तीन किलोमीटर पर बिछुआ संरक्षित
वन, दक्षिण
पश्चिम में आठ किलोमीटर पर जेतपुर संरक्षित वन, ग्राम बरेला में
लगने वाले संयंत्र खुद ही संरक्षित वन में स्थापित है। पूर्व दक्षिण पूर्व में आठ
किलोमीटर में प्रतापगढ़ आरक्षित वन है।
संयंत्र प्रबंधन
द्वारा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंपे गए 15 पेज के अपने कार्यकारी
संक्षेप के पांचवें पेज पर स्वयं ही इस बात को स्वीकार किया है कि संयंत्र से
शून्य किलोमीटर दूरी पर बरेला संरक्षित वन है। शून्य किलोमीटर का सीधा तात्पर्य
यही हुआ कि गौतम थापर के स्वामित्व वाला अवंथा समूह का सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स
झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के आदिवासी
बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में लगाए जाने वाले कोल आधारित पावर
प्लांट को संरक्षित वन में ही संस्थापित करने का तानाबाना केंद्र सरकार के वन एवं
पर्यावरण मंत्रालय की देखरेख में मध्य प्रदेश शासन के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के
द्वारा बुना जा रहा है।
यक्ष प्रश्न तो यह
बना हुआ है कि यह सब देखने सुनने के बाद क्या वन विभाग आंखों पर पट्टी बांधे हुए
है, अथवा मध्य
प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, अथवा संयंत्र प्रबंधन द्वारा आनन फानन में
तैयार कर मण्डल की मिलीभगत से घंसौर के गोरखपुर गांव में 22 नवंबर को संपन्न हुई
लोकसुनवाई के एक सप्ताह के बाद जमा करवाए गए कार्यकारी सारांश में जल्दबाजी में यह
ऋुटी कर दी गई है?
अगर संयंत्र
प्रबंधन का कहना सही है कि उक्त संयंत्र संरक्षित वन में स्थापित किया जा रहा है
तब इसके प्रथम चरण के काम को क्या रोका जाएगा? साथ ही साथ जमीनी
हकीकत देखे बिना केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आखिर इसके निर्माण की
अनुमति कैसे दे दी गई है? इस तरह देश में सियासी दलों द्वारा सशक्त लोकपाल लाने का दावा
किया जा रहा है।
(क्रमशः जारी)
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