फटाके नहीं बम फूट
रहे हैं मनमोहन जी!
(लिमटी खरे)
हैदराबाद बम धमाकों
से दहल गया है। देश की सुरक्षा व्यवस्था में बुरी तरह सेंध लगी हुई है और
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह आज भी वैसे ही मौन धारण किए हुए हैं। एक के बाद एक
गृह मंत्री बदलते जा रहे हैं पर देश की आंतरिक सुरक्षा बुरी तरह हांफ रही है इसका
कारण सियासी लाभ हानि का गणित ही माना जा सकता है। कोई हिन्दु आतंकवाद को दोषी
मानत है कोई अल्पसंख्यकों के कारण उपजी परिस्थितियां मान रहा है। सही मायने में
देखा जाए तो आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता है। आतंकवाद के मायने ही येन केन
प्रकारणेन दहशत फैलाना है। इन पूरे मामलों में सबसे निराशाजनक तो यह है कि
दहशतगर्दी के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देनें में भी सियासी पार्टियां अपना अपना
उल्लू सीधा करने से नहीं चूकती हैं।
हैदराबाद को
चारमीनार का शहर कहा जाता है। हैदराबाद दक्षिण भारत का बहुत ही खूबसूरत शहर है, पर पिछले लगभग एक
दशक से यह चर्चाओं में है। पिछले पांच सालों में तीसरी मर्तबा हैदराबाद को बमों के
धमकों ने दहल दिया है। लोगों के जेहन से अभी यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी कि 2007 में 18 मई को मक्का
मस्जिद और इसके उपरांत 25 अगस्त को गोकुल चाट और लुबिनी पार्क के धमाकों ने दहला दिया
था।
बृहस्पतिवार की शाम
7 बजे
हैदराबाद शहर के दिलखुश नगर इलाके में हुए दोहरे धमाके में लोगों के चीथड़े उड़ गये।
आरंभिक जांच बता रही है कि धमाकों के लिए टिफिन बाक्स का प्रयोग किया गया है। इसका
सबसे दुखद पहलू यह है कि वहां के सीसीटीवी केमरों के तार ही काट दिए गए थे। यह है
भारत गणराज्य के अति संवेदनशील इलाकों के सुरक्षा हालात। अगर सीसीटीवी केमरे के
तार कटे थे तो कंट्रोल रूम जहां से इन कैमरों के जरिए बाजार पर नजर रखी जाती है
वहां के सरकारी वेतन पाने वाले नुमाईंदे क्या अपनी नौकरी बजाने के बजाए चौसर खेल
रहे थे?
कहा तो यह भी जा
रहा है कि अगर हैदराबाद पुलिस ने गृह मंत्रालय के अलर्ट और दिल्ली पुलिस की ओर से
दी गई जानकारी को संजीदगी के साथ लिया होता तो शहर में गुरुवार शाम हुए सीरियल
ब्लास्ट की घटना को रोका जा सकता था। दिल्ली पुलिस ने लोकल पुलिस को आतंकी हमले
होने से संबंधित जानकारी कई बार दी, लेकिन हैदराबाद पुलिस ने उसे नजरंदाज कर
दिया और इसका नतीजा गुरुवार शाम ब्लास्ट के रूप में देखने को मिला।
वहीं चौबीसों घंटे
खबरों को रूमाल से तानकर चादर बनाने में माहिर समाचार चेनल्स भी इसमें अपने अपने
स्तर पर कयास लगा रहे हैं। कोई इसमें इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) का हाथ होने की बात
कह रहा है तो कोई अफजल गुरू की फांसी का बदला।
कहीं से खबर आ रही है कि पुणे में पिछले साल हुए धमाकों के सिलसिले में
दिल्ली पुलिस ने जिन आतंकियों को पकड़ा था, उन्होंने पिछली जुलाई में हैदराबाद में रेकी
की थी।
देश के नए गृह
मंत्री बनते ही सुशील कुमार शिंदे का स्वागत इन बर्बर आताताईयों ने 01 अगस्त को पुणे में
धमाके कर किया था। देश में सत्ता की मलाई चखने के आदी हो चुके जनसेवकों के लिए अब
नैतिकता मानो बची ही नहीं है। एक समय था जब नैतिकता के आधार पर नेता त्यागपत्र दे
दिया करते थे, आज नैतिकता
के मायने ही बदल गए हैं। जब तक संभव हो बेशर्मी के साथ कुर्सी से चिपके रहो और
ज्यादा शोर शराबा हो तो बस विभाग बदल दो, यानी लाल बत्ती जस की तस! इस तरह बेशर्म
राजनेताओं के भरोसे आम आदमी अपनी सुरक्षा की चिंता आखिर किस आधार पर करे?
पुणे के हादसे के
बाद दिल्ली पुलिस ने जिन आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था, उसमें से एक मकबूल
के पास हैदराबाद शहर के बारे में खासी जानकारी थी। वैसे मकबूल महाराष्ट्र के
नांदेड़ का रहने वाला था और उसने ही यह जानकारी आईएम के लोगों को दी थी। उसी की
सहायता से आईएम के सदस्य मोटरसाइकल पर बैठकर शहर के दिलसुख नगर और बेगम बाजार की
रेकी की थी। मकबूल ने पुलिस को कहा था कि हमारी योजना हैदराबाद को निशाना बनाने की
है और यह सॉफ्ट टारगेट है। दिल्ली पुलिस के एक आला अधिकारी ने नाम उजागर ना करने
की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि आधिकारिक स्तर पर हैदराबाद पुलिस
को यह जानकारी दे दी गई थी और शहर की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कहा गया था। लेकिन
हैदराबाद पुलिस ने उसे रूटीन जानकारी कहकर नजरंदाज कर दिया।
वहीं, राज्य के पुलिस
महानिदेशक दिनेश रेड्डी ने बताया कि ये विस्फोट निश्चित रूप से किसी आतंकवादी
संगठन की करतूत है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी-एन आई ए ने इन विस्फोटों की जांच शुरू
कर दी है। केन्द्रीय गृह सचिव आर. के. सिंह ने कहा कि एक ही समय पर दो शक्तिशाली
विस्फोटों से संकेत मिलता है कि ये आतंकी हमला था। अब अधिकारी अपनी खाल बचाने चाहे
जो कहें पर दहशतगर्द तो अपना खेल खेलकर जा चुके हैं।
आश्चर्य तो इस बात
पर होता है कि जब उड़न खटोला या सुख सुविधाओं की बात आती है तब हमारे देश के शासक
अपने आप को दुनिया के चौधरी अमरीका से कमतर नहीं आंकते हैं। चौपर वैसा ही चाहिए
जैसा ओबामा के पास है, पर जब देश की आंतरिक सुरक्षा की बात आती है तो वे बगलें
झांकने पर मजबूर हो जाते हैं। रही बात सत्ता पक्ष से पूरी तरह सेट विपक्ष की तो वह
भी इस मामले में दिखावटी चिल्लपों और विरोध के बाद शांत ही नजर आए तो किसी को
आश्चर्य नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को चाहिए कि इस मामले को
गंभीरता से लेकर खुद संज्ञान लेते हुए उचित कार्यवाही करें ताकि आम जनता के अमन
चेन में खलल ना डाला जा सके। (साई फीचर्स)
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