सरकारी तीन शेर बने निजी मिल्कियत!
(राजेश सिंह क्षत्री)
रायपुर (साई)। छत्तीसगढ़ शासन के
निर्माणाधीन तेंदूभाठा-मड़वा पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारी देश की भावनाओं के साथ
खिलवाड़ कर रहे हैं। यहां के सुरक्षा अधिकारी शासन और पुलिस अधिकारियों के नाक के
नीचे अपनी वर्दी पर नेशनल प्रतीक तीन शेर सहित अशोक चक्र का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस चिन्ह का इस्तेमाल पुलिस, सेना और पैरामिलिट्री के क्लास वन और
उससे उपर के अधिकारी ही कर सकते हैं। पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारियों और पुलिस
के जवानों की वर्दी में कोई अंतर नजर नहीं आने से भोले भाले ग्रामीण दिगभ्रमित
होते हैं तथा सुरक्षा अधिकारियों की करनी का खामियाजा पुलिस को भुगतना पड़ता है।
मार्च में ही ग्रामीण दो बार पुलिस पर पथराव कर चुकी है।
सुपरहिट फिल्म सिंघम में देश के प्रतीक
चिन्ह अशोक चक्र की महत्ता समझाते हुए एक स्थान पर फिल्म के हीरो अजय देवगन कहते
हैं कि इसे लगाने का अधिकार या तो पुलिस को है या फिर सेना को। देश का
प्रधानमंत्री भी इसे नहीं लगा सकता। अपने राष्ट्रीय प्रतीक तीन सिंह सहित अशोक
चक्र को देखने भर से ही मन में राष्ट्रप्रेम की भावना उमड़ पड़ती है लेकिन छत्तीसगढ़
में शासन की नाक के नीचे ही शासन से जुड़े हुए लोग जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे
हैं। जांजगीर-चांपा जिले में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से तेंदूभाठा-मड़वा में एक हजार
मेगावाट का पावर प्लांट निर्माणाधीन है। उक्त पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारी
एस.आर. रात्रे जो खुलेआम अपने कंधे पर अशोक चक्र लगाकर घुम रहे हैं तथा पूछने पर
उनका जवाब होता है कि अपने कंधे पर देश के सम्मान के प्रतीक अशोक चिन्ह लगाने का
अधिकार उन्हें तत्कालिन मध्यप्रदेश के डीजीपी ने दिया था। उनका कहना है कि प्लांट
के सुरक्षा अधिकारियों को भी इसे लगाने का अधिकार है तथा यहंा कार्यरत सीएसपीसीएल
के सभी अधिकारी इसी तरह अपने पद के अनुसार से मोनो लगाए हुए हैं। उनके कंधे पर इसी
तरह से मेडल शोभायमान है।
जांजगीर-चांपा जिले के पुलिस अधीक्षक
आरिफ शेख स्वयं मानते हैं कि अशोक चक्र इस्तेमाल करने का अधिकारी पुलिस, सेना और पैरामिलिट्री के क्लास वन और
उससे उपर के अधिकारियों को ही है। मड़वा पावर प्लांट छत्तीसगढ़ शासन का पावर प्लांट
है और इसमें के सुरक्षा अधिकारी भी शासकीय है। वो इन प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल
क्यों और किस हैसियत से कर रहे हैं इसे वो जांच का विषय मानते हैं।
भारतीय संविधान में पुलिस और सेना को
देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की जवाबदारी सौंपी गई है तथा देश के स्वाभिमान के
प्रतीक अशोक चक्र के इस्तेमाल की इजाजत भी इन्हें ही दी गई है। पुलिस में भी
एडिसनल एसपी और उससे उपर का अधिकारी तथा सेना में मेजर या उससे उपर का अधिकारी इस
प्रतीक चिन्ह को इस्तेमाल कर सकते हैं। तेंदूभाठा-मड़वा पावर प्लांट छत्तीसगढ़ शासन
का है तथा पुलिस अधीक्षक के अनुसार यहां लगे सुरक्षा गार्ड भी शासकीय है।
निर्माणाधीन मड़वा पावर प्लांट के ग्रामीण नौकरी की मांग को लेकर 2 मार्च से आंदोलन पर बैठे हुए हैं
जिसमें पुलिस और प्रशासन के उच्चाधिकारियों की आवाजाही हमेशा प्लांट में होते रहती
है। मतलब साफ है, पुलिस और प्रशासन के नाक के नीचे ही ये लोग देश के स्वाभिमान के साथ
खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर प्लांट के सुरक्षा अधिकारियेां को इसे लगाने का हक है तो
क्या भारत के वीर सपूतों के कंधे पर चमचमाने वाले इस प्रतीक चिन्ह को उन्हें लगाने
देना चाहिए और अगर नहीं है तो अब अपने ही अधिनस्थों पर देश के स्वाभिमान का मजाक उड़ाने
के लिए शासन किसी प्रकार की कार्यवाही करने का साहस दिखा पाती है अथवा नहीं यह
देखने वाली बात होगी।
0 मीडिया के सवाल-जवाब के बाद भाग खड़े
हुए सुरक्षा अधिकारी
माना जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका
है, ऐसा ही कुछ अहसास सुरक्षा अधिकारी को अपने पकड़े जाने पर हुआ।
तेंदूभाठा-मड़वा पावर प्लांट के भूविस्थापित नौकरी की मांग को लेकर 2 मार्च से आंदोलन कर रहे है जिनको
समर्थन देने के लिए शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र
अमित जोगी मड़वा पंहुचे। उनके कार्यक्रम को देखते हुए वहां भारी संख्या में पुलिस
बल की तैनात थे। उन्हीं जवानों के साथ प्लांट की सुरक्षा में लगे सीएसपीसीएल के
अधिकारी भी घूम रहे थे। मीडिया के लोगों ने जब उनके सुरक्षा इंचार्ज एस.आर. रात्रे
से सवाल-जवाब प्रारंभ किया तो पुलिस की तरह कांधे पर स्टार लगाए घूम रहे प्लांट के
अधिकारी धीरे-धीरे वहां से खिसकने लगे तथा मौका देखकर एस.आर. रात्रे भी वहां से नौ
दो ग्यारह हो लिए उसके बाद सीएसपीसीएल के सुरक्षा अधिकारी अपने कांधे पर मौजूद
तमगे को निकालकर ही वहां फिर से पंहुचे।
0 ग्रामीण हो रहे दिगभ्रमित, पुलिस और ग्रामीणों के संबंध हो रहे
खराब
मड़वा पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारी का
ड्रेस पूरी तरह से पुलिस के ड्रेस से मिलता जुलता है। पैर के जूते से लेकर सिर में
लगाने वाली टोपी ओर शरीर में पहनने वाला ड्रेस सभी चीजें पुलिस से मिलती जुलती है।
इसका सबसे बड़ा खामियाजा स्थानीय पुलिस को भुगतना पड़ रहा। यही वजह है कि यहां के
भोले भाले ग्रामीणों के लिए पुलिस और पावर प्लांट के सुरक्षा कर्मचारियों में भेद
कर पाना नामुमकिन होता है। प्लांट का कोई कर्मचारी गांव में जाकर ग्रामीणों से
दुर्व्यवहार करता है तो लोगों को लगता है कि पुलिस ने उसके साथ ज्यादती की है तथा
पुलिस उसके साथ कुछ गलत करती है तो ग्रामीणों को लगता है कि प्लांट के सुरक्षा
अधिकारियों ने उनके साथ गलत किया है। पुलिस की माने तो सिर्फ मार्च माह में ही
ग्रामीण पुलिस पर दो बार पथराव कर चुकी है इसी महीने पहली बार ग्रामीणों ने 2 मार्च को आंदोलन पर बैठने के तीन-चार
दिनों के बाद तब पथराव किया था जब उसे लगा था कि पुलिस वाले प्लांट के लोगों को
अपने सुरक्षा घेरे में प्लांट में पंहुचाने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी बार
बीते सप्ताह में ही पावर प्लांट के दो समर्थकों के परिवारों पर अनशनकारियों का
गुस्सा फूट पड़ा था तो उन्हें बचानें गई पुलिस पर भी ग्रामीणों ने पथराव किया था
जिसके बाद पुलिस 17 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है। वहीं मार्च में ही पुलिस पर
ग्रामीणों के साथ लाठीचार्ज किए जाने का आरोप लगाते हुए ग्रामीणों के द्वारा
कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया जा चुका है।
0 बढ़ रही नाराजगी, हो रही कार्यवाही की मांग
पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारियों के
द्वारा अशोक चक्र के इस्तेमाल को लेकर अब लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। पूर्व
विधायक मोती लाल देंवागन का मानना है कि क्षेत्र के भोले भाले गरीब किसानों को
भयभीत करने के लिए ही शासकीय पावर प्लांट के सुरक्षा अधिकारी इस तरह से प्रतीक
चिन्ह का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही किए
जाने की मांग की है।
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