मोबाइल कम्पनियों के इत्ते ज्यादा अपने
मिनट क्यों...?
(भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी)
नई दिल्ली (साई)। अमाँ मियाँ कलमघसीट
मोबाइल कम्पनियों पर कन्ट्रोल नहीं लगता क्या? आज सुलेमान भाई का चेहरा तमतमाया लग रहा
था। मैंने उन्हें बैठने का इशारा किया तो बोल पड़े क्या बैठूं पहले से ही मूड ऑफ
है। मैंने उनसे रिक्वेस्ट किया तो वह बैठे। आज उनके मुँह में पान की गिलौरी नहीं
थी। एक दम से सूखा मुँह। मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने लिखना बन्द कर दिया और घड़े में
से पानी निकालकर एक गिलास सुलेमान भाई को पीने के लिए यिा।
तत्पश्चात् सुलेमान कुछ नार्मल हुए और
मेरी तरफ देखकर कहने लगे डियर कुछ लिखो। आखिर ये मोबाइल कम्पनियाँ नई जेनरेशन को
चौपट करने पर तुली हुई हैं। आज कल नए लड़के लड़कियाँ कानों से मोबाइल लगाए घण्टों
बातें करते रहते हैं। सुलेमान की बात में काफी वजन था। ऐसा मैंने भी महसूस किया
है। मैंने जो अनुभव किया है उसको यहाँ लिखकर आप सभी से शेयर करना चाहूँगा। एक
मोबाइल कम्पनी है जो अपने सिम धारक ग्राहकों को असीमित टाक मिनट देती हे, वह भी कम पैसों में।
युवा पीढ़ी या फिर आशिक मिजाज लोग (उम्र
बाधा नहीं) घण्टों समय-असमय बातें करते हुए देखे जा सकते हैं। जिस-जिस को मोबाइल
सेट कान से लगाए देखा जाए समझिए कि उसके सिम में मिनट हजारों/असीमित पड़ा है, वह भी कम पैसों में। यह तो रही कुछ साधारण
सी जानकारी। कई लोगों के मुँह से सुना है कि युवक-युवतियाँ अपने मोबाइल सेट्स
हमेशा अपने साथ रखते हैं। सोते-जागते और नित्यक्रियाओं के समय भी ये लोग अपने
मोबाइल सेट्स विशेष पॉकेट्स में रखे रहते हैं या फिर कानों से लगाए बातचीत में
व्यस्त ही रहते हैं। यह सब क्या है? कुछ दिनों पहले पढ़ा था कि मोबाइल फोन से निकलने वाली ध्वनि तरंगे कान एवं
मस्तिष्क को हानि पहुँचाती हैं। मुझे तो डर लगने लगा लेकिन यह युवा पीढ़ी क्यों
नहीं डरती?
मैंने इस चिन्ता के विषय को सुलेमान से
शेयर किया तब वह और भी रिलैक्स हो गए। उनके चेहरे का भाव बता रहा था कि उनकी और
मेरी चिन्ता एक ही है। वह पान की पीक मुँह से उगलकर बोले मियाँ कलमघसीट मैं तो
आजिज आ गया हूँ। सुना है एक मिनट देने वाली मोबाइल कम्पनी पर महाराष्ट्र सरकार ने
बैन लगा दिया है, इसकी खबर सुनकर तसल्ली हुई थी कि अब जल्द
ही अपने यहाँ भी पाबन्दी लगेगी और बरबाद हो रही वर्तमान नस्ल तथा पुराने लोगों के
बीच उत्पन्न दरार खत्म होगी। काश! जल्द ही ऐसी कम्पनियाँ अपना मिनट वाला स्पेशल
टैरिफ बाउचर सुविधा समाप्त कर देंती तो...। हाँ-हाँ बोलो मियाँ रूक क्यों गए। यार
कुछ बोलो मत जब देखो घर की महिलाएँ अपने रिश्तेदार महिलाओं से बेवजह की बातें करती
हैं। एकाध मिनट की बातें नहीं एक-एक घण्टे। लड़के-लड़कियाँ अपने कथित दोस्त यार से
बतियाते हैं। ऐसे में खाने-पीने की बात दूर। एक कप चाय या एक गिलास पानी मिलना
मुश्किल है। मैं कहता हूँ यार घरेलू महिलाएँ जब फुर्सत पाती हैं तब अपनी बहने, भाइयों, माँ एवं अन्य दूर-दराज रहने वाले
रिश्तेदारों से घण्टों बातें करके जी हल्का करती है, इसमें बुराई ही क्या है। सुलेमान इस पर
कुछ न बोलकर कहते हैं कि चलो यह बात मान लेते हैं कि ठीक, लेकिन घरों के लाडले-लड़कियाँ इतनी लम्बी
वार्ता क्यों करते हैं, उनके
इस प्रश्न पर मैं निरूत्तर हो जाता है।
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