ओला पीड़ितों को क्या भूल गए दिनेश!
दिनेश का भाजपा को समर्थन. . .
(अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। सिवनी के निर्दलीय विधायक दिनेश राय द्वारा गत दिवस बालाघाट
में नरेंद्र मोदी का मंच साझा करना और भाजपा के साथ कदम मिलाने की बात कहने की
व्यापक प्रतिक्रयाएं सामने आ रही हैं। इस संबंध में सोशल मीडिया पर ‘क्या कहते हैं मित्रों‘ वाली पोस्ट वायरल
हो रही है।
इस पोस्ट में कहा गया है कि सिवनी के निर्दलीय विधायक दिनेश राय जिन्होंने
किसी पार्टी का झंडा नहीं उठाने का वायदा जनता से विधान सभा चुनाव के पहले किया था, अब लोकसभा में भाजपा का सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं। सिवनी
विधानसभा में ओलावृष्टि से फसलें तबाह हई हैं। किसानों के घर चूल्हे नहीं जल पा
रहे हैं। दिनेश राय अगर नरेंद्र मोदी के सामने ही शिवराज सिंह चौहान से सिवनी विधानसभा
के किसानों को तत्काल राहत दिए जाने की शर्त पर सपोर्ट देते तो सिवनी विधानसभा के
लोग उनके ऋणी रहते, इस तरह का कोई
वाक्या नहीं हुआ।
पोस्ट में आगे कहा गया है कि लगता है दिनेश भाई भी अब मंझे हुए राजनेता हो
गए हैं। मुख्यमंत्री चाहे किसी दल का हो उसका साथ देने का वायदा करने वाले दिनेश
भाई ने अच्छा काम किया है पर किसानों के लिए वे क्या कर रहे हैं इस बारे में जनता
को अगर बता देते तो बेहतर होता। क्या अब उम्मीद की जाए कि लोकसभा चुनावों में
सिवनी विधानसभा में उत्साह का संचार करने के लिए जिम्मेदार नगर पालिका अध्यक्ष
राजेश त्रिवेदी और दिनेश राय साथ-साथ चुनाव प्रचार पर निकलेंगे. . .।
इस पोस्ट के संबंध में लोगों की प्रतिक्रियाएं मिलीजुली सामने आ रही हैं।
इसके पहले भाजपा के कुछ नेता नरेंद्र मोदी की सभा में दिनेश राय के द्वारा
शुक्रवारी बाजार में घोषणा पत्र जारी किए जाते समय किसी दल का झंडा नहीं उठाने की
बात कही गई थी को भी चर्चाओं का मुद्दा बनाया गया था।
वहीं, एक नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त
पर कहा कि दिनेश राय अपना सियासी नफा नुकसान खुद जानें, पर कम से कम गरीब किसानों की तबाह हुई फसल के बारे में
नरेंद्र मोदी के सामने तो इस बात को रख देते।
किसानों से लेना देना नहीं कांग्रेस भाजपा को!
गौरतलब है कि मण्डला में चुनावी सभा को संबोधित करने आए कांग्रेस के
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मण्डला व बालाघाट में चुनावी सभा करने आए भाजपा के पीएम
उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा सिवनी जिले के किसानों की ओलावृष्टि में तबाह हुई
फसल का जिकर करना भी मुनासिब नहीं समझा गया, जिससे लगने लगा
है कि दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं को या तो यहां की जमीनी हालात के बारे में
बताया नहीं गया है, या बताया गया है
तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया है।