0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 40
जमीन के मामले में भी गफलत है पावर प्लांट के
पहले छः सौ अब 812 एकड़ की हो गई दरकार!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर के ग्राम बरेला में डाले जा रहे कोल आधारित पावर प्लांट के लिए कितनी जमीन चाहिए यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। कभी संयंत्र प्रबंधन इसके लिए छः सौ एकड़ भूमि की आवश्यक्ता दर्शाता है तो कभी भूमि की दरकार बढ़कर लगभग सवा आठ सौ एकड़ हो जाती है।
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा पहले चरण के 600 मेगावाट के पावर प्लांट को डालने के लिए जो कार्यकारी सारांश जमा करवाया गया था उसके चौथे सफे पर साफ उल्लेखित था कि जेपीएल द्वारा प्रस्थापित परियोजना के लिए 36.7 फीसदी यानी 220 एकड़ सरकारी जमीन, 60 फीसदी यानी 360 एकड़ बंजर यानी खेती न होने वाली जमीन और 3.3 फीसदी यानी 20 एकड़ खेती वाली जमीन जहां नहर नहीं है की आवश्यक्ता है। इस तरह प्रथम चरण के दौरान जेपीएल ने कुल छः सौ एकड़ भूमि की आवश्यक्ता दर्शाई गई थी।
इस परियोजना के द्वितीय चरण की लोकसुनवाई तक जमीन की दरकार छः सौ एकड़ ही थी। 22 नवंबर 2011 को हुई लोकसुनवाई के बाद अचानक ही मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की मिली भगत से बदले गए कार्यकारी सारांश में जमीन की दरकार एकाएक बढ़ जाना आश्चर्यजनक ही है।
नए कार्यकारी सारांश में प्रथम चरण के लिए 406 एकड़ एवं द्वितीय चरण के लिए 406.5 एकड़ इस तरह दोनों चरणों के लिए 812.5 एकड़ भूमि की आवश्यक्ता दर्शाई गई है। बताया जाता है कि 22 नवंबर 2011 को हुई लोकसुनवाई में संयंत्र के जीएम श्री मिश्रा ने कहा था कि संयंत्र के लिए आठ सौ एकड़ भूमि खरीदी जा चुकी है और अभी सवा सौ एकड़ भूमि और खरीदा जाना शेष है।
केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर भी गौतम थापर या संयंत्र प्रबध्ंान से यह पूछने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं कि आखिर संयंत्र प्रबंधन को कितने भूभाग की इस संयंत्र के लिए दरकार है।
(क्रमशः जारी)
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