तमाशा-ए-बाबा
रामदेव
(संजय तिवारी)
जंतर मंतर पर बाबा
रामदेव के तमाशे का यह उत्तरार्ध है. वैसे तकनीकि तौर पर यह स्थान संसद मार्ग या
पार्लियामेन्ट स्ट्रीट कहा जाता है लेकिन कई बार बड़े आयोजनों के लिए अगर पहले से
अनुमति मांगी जाए तो सरकार संसद मार्ग के एक हिस्से को ब्लाक करके प्रदर्शन करने
की अनुमति दे देता है. रामदेव को जंतर मंतर की जगह संसद मार्ग की सड़क एलॉट कर दी
गई थी. पार्लियामेन्ट थाने से कनाट प्लेस की लालबत्ती (सिग्नल) तक सड़क को आम
परिवहन को रोक दिया गया था. लगभग पूरी सड़क पर रामदेव का विशाल पंडाल लगा था. 4 जून के अपमान का
बदला लेने के लिए मानों 3 जून को रामदेव ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी.
जिस संसद मार्ग पर
बाबा रामदेव का रोड शो हो रहा था उसके बगल में जंतर मंतर खाली पड़ा हो ऐसा नहीं है.
पूरे जंतर मंतर पर सौ से अधिक बसें पार्क थीं. सैकड़ों दूसरे छोटे वाहन भी आड़े
तिरछे खड़े थे जिनमें अधिकांश पर पीली पट्टी वाले नंबर प्लेट लगे थे. वही जो टूर
एण्ड ट्रैवेल्स वाली गाड़ियों को दिये जाते हैं. ज्यादातर गाड़ियों पर पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के जिलों का कोड था जिसका मतलब था कि बाबा रामदेव के इस रोड शो में अधिकांश
लोग पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भरकर लाये गये थे. वहां मौजूद लोगों को देखकर यह बात
और पक्की हो जाती थी उपस्थित लोगों में ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा
के लोग ही शामिल थे. ज्यादातर ऐसे दिख रहे थे जो किसी न किसी रूप में रामदेव की
योग विद्या या आयुर्वेद व्यापार से जुड़े हुए जान पड़ते थे. अधिकांश के कंधों पर
पतंजलि योगपीठ का झोला बता रहा था कि वे बाबा रामदेव के सच्चे अनुयाई हैं. साफ था, बाबा रामदेव अपने
समर्थकों को बसों में भरकर जंतर मंतर पहुंचे थे.
मंच भी क्या भव्य
बनाया गया था. पहली बार किसी आयोजन में मंच के बैकड्रॉप की जगह मंच बराबर एलसीडी
स्क्रीन दिखी. करीब चार ट्रॉली कैमरे, दर्जनों सीसीटीवी कैमरे, सड़क पर अस्थाई रूप
से निर्मित किया गया पांडाल, पांडाल में केवल रामदेव की िवभिन्न भाव भंगिमाओं
वाले पोस्टर और पोस्टरों पर भांति भांति के संदेश. कुछ पोस्टरों में आचार्य
बालकृष्ण भी नजर आ रहे थे. मंच के सामने मीडियावालों को जगह दी गई थी. उनके कैमरे
और तामझाम अलग. पूरे दिन के इस उपवाश में समर्थकों से भूखा रहने की कोई अपील की गई
थी या नहीं, कह नहीं
सकते लेकिन बसों में सबके लिए पूरी सब्जी के पैकेट तैयार थे. हालांकि आज दिल्ली
में बादलों के कारण वैसी तपिश नहीं थी जैसी दो दिन पहले थी लेकिन अनशन स्थल पर कम
से कम लोगों के लिए पैकेटवाला पानी पिलाने की पूरी व्यवस्था थी. रामदेव का अपना
आर्थिक ही नहीं बल्कि सांगठनिक साम्राज्य भी है इसलिए इस एक दिवसीय अनशन या फिर
उपवाश या फिर तमाशा के लिए रामदेव की विभिनन्न संस्थाओं के सेवादार चौकस थे और इस
रोड शो को सफल बनाने की प्राण प्रण से पुरजोर कोशिश कर रहे थे.
और केवल सेवादार ही
क्यों? मंच से
बाबा रामदेव पतंजलि योगपीठ और दिव्य योग फार्मेसी को बंद करवाने की धमकी देनेवालों
को सौ और अधिक कारखाने खोल लेने की नसीहत दे रहे थे तो मंच से नीचे स्वदेशी की टी
शर्म पहने उनके कुछ कारिंदे सफेद धन की खोज में रामदेव की कंपनी के बने धनिया, मिर्चा से लेकर
साबुन तेल तक के प्रचार वाला पर्चा बांट रहे थे. आंदोलन पर जो खर्च आया था उसकी
कीमत वसूलतने के लिए अगर रामदेव की स्वदेशी कंपनी का थोड़ा प्रचार हो जाए और उनके
उत्पादों का प्रसार बढ़ जाए तो इसमें हर्ज ही क्या था?
तो, जिस जंतर मंतर पर
बाबा रामदेव सालभर पहले आना चाहते थे उस जंतर मंतर तक पहुंचने में बाबा रामदेव को
सालभर लग गये. इस एक साल में बाबा रामदेव ने करीब 56 दफा कोशिश की और 16 बार सरकार को
चिट्ठियां लिखीं तब जाकर बाबा रामदेव को जंतर मंतर तक जाने का रास्ता दिया गया. वह
भी महज आठ घण्टों के लिए. सुबह दस से शाम छह बजे तक. जब बाबा रामदेव उत्तरार्ध के
बीच शाम करीब सवा पांच बजे भाषण करने आये तो उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि कुछ
लोग उन्हें मजाक कर रहे हैं तो छह बजे के बाद एक मिनट भी और अधिक हुआ तो कौन जाने
पुलिस फिर से रामलीला कर दे. रामदेव ने दहाड़ते हुए कहा कि तो क्या हुआ? हम छह बजे से पहले
अपना अनशन समाप्त कर देंगे. यह मजाक नहीं था. यह बाबा रामदेव की व्यवहार बुद्धि
थी. करीब साल भर में आयकर और सीबीआई की जांच ने कम से कम उनकी अकल इतनी तो ठिकाने
ला दी है कि औकात के बाहर जाकर दावे करना कई बार आत्मघाती साबित होता है. इसलिए
बाबा रामदेव ने राजनीतिज्ञों में लालू का भी नाम लिया और सोनिया गांधी का जिक्र
करते हुए पूज्य सोनिया गांधी का सम्मानित संबोधन दिया.
जब शाम को बाबा
रामदेव बोलने के लिए खड़े हुए तब तक अन्ना हजारे बोल चुके थे और अरविन्द केजरीवाल
से बाबा रामदेव का झगड़ा हो चुका था. इसलिए जब बाबा रामदेव बोलने के लिए खड़े हुए तो
जो कुछ बोला उससे इतना अंदाज तो लग गया कि दोनों के बीच मतभेद बहुत गहरे हैं. कारण
क्या है इसका भी संकेत बाबा रामदेव के भाषण में ही सुनादे दे गया. बाबा रामदेव ने
कालेधन के सवाल पर जो सात सूत्रीय मांग पत्र सार्वजनिक किया उसमें उन्होंने जनप्रतिनिधियों
से मिलने के कार्यक्रमों का खुलासा किया. इसमें ग्राम प्रधान से लेकर सांसद और
मंत्री तक सभी शामिल हैं. यह भला अरविन्द केजरीवाल को क्यों रास आयेगा कि वे उन
बाबा रामदेव के साथ उन जनप्रतिनिधियों से कालेधन के सवाल पर मिलें जिनसे कल तक
लोकपाल के मुद्दे पर मिलते रहे हैं. वैसे भी सांसदों के घर के आगे धरना प्रदर्शन
यह अरविन्द केजरीवाल के इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का सफल कार्यक्रम था. अब क्या यह
संभव है कि अरविन्द केजरीवाल सहित टीम अन्ना के अन्य सदस्य जनप्रतिनिधियों से बाबा
रामदेव के एजंट के बतौर मिलने जाएं? फिर लोकपाल का क्या होगा? सीधे तौर पर बाबा
रामदेव ने टीम अन्ना के वर्चस्व को चुनौती दे दी थी, जिसका परिणाम यह
हुआ कि अरविन्द केजरीवाल मंच छोड़कर चले गये.
अरविन्द के जाने के
बाद हालांकि अन्ना हजारे शेष बचे रहे लेकिन बोलने का वक्त आया तो वे भी चरित्र
निर्माण की दुहाई देने लगे. जैसे जैसे अन्ना हजारे चरित्र निर्माण और व्यक्तिगत
चरित्र का बखान करते रहे बाबा रामदेव उचक उचक कर उन्हें देखते रहे. मानों वे यह
उम्मीद कर रहे थे कि अन्ना हजारे कुछ ऐसा बोलें कि इस गर्मी में सर्दी का अहसास
हो. अन्ना हजारे बोले लेकिन बहुत चतुराई से. उन्होंने दो तीन बातें ऐसी कहीं जो
रामदेव के लिए राहतभरी हो सकती थीं. उन्होंने कहा हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है.
कुछ लोग है जो मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने बड़ी चालाकी से
खुद बाबा रामदेव के साथ जाने की बजाय यह कहा कि अब बाबा रामदेव हमारे साथ आ गये
हैं इसलिए हम अपनी लड़ाई बहुत ताकतवर तरीके से आगे लेकर जाएंगे. गांव गांव लेकर
जाएंगे. यह सब वे तब बोल रहे थे जब अरविन्द केजरीवाल मंच छोड़कर जा चुके थे.
तो, सवाल यह है कि बाबा
रामदेव आखिर 3 जून को
दिल्ली क्यों आये?
क्या सिर्फ यह बताने के लिए वे नौ अगस्त को दोबारा दिल्ली
आयेंगे आंदोलन करने या फिर इच्छाएं कुछ और थीं? संसद मार्ग पर
रामदेव का तामझाम देखकर साफ लगता था कि वे शक्ति प्रदर्शन करने आये हैं. योगमाया
से उनके पास अब इतना जन और धन उपलब्ध है कि वे जम जहां चाहें तंबू गाड़ सकते हैं. 4 जून 2011 की आधीरात को
दिल्ली के रामलीला मैदान ने बाबा रामदेव को जनाना कपड़े पहनने पर मजबूर कर दिया था.
उस वक्त अगर सब ठीक रहता तो बाबा रामदेव रामलीला मैदान की बजाय जंतर मंतर पर अनशन
करते. रामदेव जंतर मंतर आये लेकिन साल भर बाद. मर्दाना कपड़ों में. मुस्कुराते हुए.
दल बल के साथ. 100 से अधिक
बसों में भरकर लाये गये अपने समर्थकों के सहारे. 56 कोशिशों के बाद जब
दिल्ली सरकार ने उन्हें जंतर मंतर तक जाने और दिनभर का अनशन करने की इजाजत दे दी
तो रामदेव ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. दिनभर पूरा जंतर मंतर तमाशा ए बाबा रामदेव
का गवाह बना रहा. इस प्रायोजित तमाशा ए बाबा रामदेव से किसी को कुछ हासिल हो या न
हो लेकिन इतना साबित हो गया है कि रामदेव को न तो कल जन समर्थन हासिल था और न आज
हासिल है.
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)
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