व्यापारी बाबा के चरणों में कारोबारी गडकरी
आखिरकार तो सब कुछ व्यापार ही होता है.
राजनीति करनेवाले नितिन गडकरी भी यही मानते हैं और बाबा रामदेव भी इसी मत
पंथ के हैं. ऐसे में सोमवार को अनशन के बिहान जब बाबा रामदेव भाजपा अध्यक्ष
नितिन गडकरी के पास पहुंचे तो अधीर गड़करी "सन्यासी" रामदेव के चरणों में
उतरने से अपने आपको रोक नहीं पाये. बाद में मीडिया में मुद्दा उछला तो सफाई
दे दी कि हमारे यहां सन्यासियों का पैर छूकर आशिर्वाद लिया जाता है तो
हमने अपनी संस्कृति का पालन किया है. बस.
नितिन गडकरी ऐसे राजनीतिक प्राणी हैं जो राजनीति का इस्तेमाल
कारोबार बढ़ाने में करते हैं. महाराष्ट्र के पूर्ति समूह के अध्यक्ष नितिन
गडकरी ने जब अपनी राजनीतिक यात्रा पर किताब लिखी तो पूर्ति समूह के बारे
में ज्यादा बताया और साथ में कभी कभी दिया अपना भाषण भी बीच में ठेल दिया.
बताते हैं कि पूर्ति समूह का कारोबार हजारों करोड़ में है और वे राजनीतिक
कार्यकर्ताओं को व्यावसायिक संभावनाओं से भरे सेल्समैन के रूप में देखते
हैं.
कुछ कुछ ऐसी ही कहानी बाबा रामदेव की है. बाबा रामदेव भी विशुद्ध
व्यापारी हैं बस बाना संन्यासी का है. अगर अनुमान के अनुसार नितिन गडकरी
हजारों करोड़ के कारोबारी हैं तो बाबा रामदेव भी क्या हजार करोड़ से कम के
आसामी हैं. आयुर्वेदिक दवाईंयां, चटनी, अचार, बिन्दी लाली क्या ऐसी चीज है
जो रामदेव की फैक्टरी में तैयार नहीं होता है. अब अगर सन्यासी का मतलब यही
होता है कि उसके पास कई सौ करोड़ का कोराबार भी होना चाहिए तो निश्चित रूप
से नितिन गडकरी ने महान भारतीय परंपरा का पालन किया है.
दोनों की मुलाकात नितिन गडकरी के घर पर सुबह ही हुई थी. दोनों आज
मिलेंगे इसकी घोषणा कल ही बाबा रामदेव ने कर दी थी. गेट के बाहर चरणवंदना
के इस संक्षिप्त कार्यक्रम के बाद दोनों अंदर चले गये और कालेधन को सफेद
बनाने की योजनाओं पर विचार विमर्श करने लगे. कारोबारियों से ज्यादा काला
सफेद धन के बारे में कौन जान सकता है, इसलिए इन दोनों की कालेधन के मुद्दे
पर मुलाकात और एक दूसरे से मुलाकात अनावश्यक तो बिल्कुल नहीं है. वैसे भी
रामदेव लाल आडवाणी के भी चहेते हैं और आडवाणी जी को इन्हीं रामदेव और
परमार्थ निकेतन के मैनेजरनुमा भ्रष्ट चिदानंद ही महान संन्यासी नजर आते
हैं. इसलिए जब आडवाणी की अवस्था यह है तो गड़करी के बारे में कल्पना ही की
जा सकती है.
खैर, दोनों व्यापारियों की इस सौहार्दपूर्ण मुलाकात के बीच क्या चर्चा
हुई यह तो सार्वजनिक नहीं हुआ लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा पहले भी रामदेव
में राजनीतिक संभावना देख रही थी और अब भी देख रही है. रामदेव कल भी भाजपा
से राजनीतिक संरक्षण चाहते थे और आज भी चाहते हैं. चलिए, इस मुलाकात के
बाद कम से कम दिग्विजय सिंह को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि बाबा चोरी
छिपे आरएसएस के एजंट के बतौर काम कर रहे हैं. अब जो कुछ है वह सब खुल्लम
खुल्ला है.
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