वे और उनके बालकिशन
नई दिल्ली
(साई)।पत्रकारिता पढ़ते सीखते वक्त कई बार अनुभवी लोग बोलते हैं कि खबर वह नहीं है
जो आपको बताई या दिखाई जा रही है. खबर वह होती है जो आपसे छिपाई जाती है. कल बाबा
रामदेव का तमाशे को देखने के बाद आज अखबारों को देखते हुए बार बार यही लगा कि
तथाकथित राष्ट्रीय अखबारों के लिए भी खबर वही है जो बाबा रामदेव बताएं. कल के
तमाशे की आज तराशी हुई रिपोर्टिंग जो कहानी सुना रही है उसमें कोई दम नहीं है. दम
हो भी तो उसका कोई उपयोग नहीं है. सिवाय इकोनॉमिक टाइम्स को छोड़कर किसी ने भी
सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश नहीं की है.
ईटी भी दो घटनाओं
को एक साथ जोड़ने में कामयाब तो नहीं हुआ है लेकिन उसने जो जानकारी दी है और खुद
बाबा रामदेव ने जो कहा है उन दोनों को आपस में जोड़ दें तो कहानी आल क्लीयर हो जाती
है. ईटी ने आध्यात्मिक गुरुओं के भौतिक साम्राज्य पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है
जिसमें बाबा रामदेव के हवाले से कहा है कि आगामी अगस्त महीने तक बाबा रामदेव देशभर
में स्वदेशी सेवा केन्द्र खोलने की योजना पर काम कर रहे हैं. इन स्वदेशी सेवा
केन्द्रों के जरिए बाबा के कारखानों में बन रहे विभिन्न खाद्य अखाद्य वस्तुओं की
मार्केटिंग और बिक्री की जाएगी. अब जरा कल वाली बाबा रामदेव की घोषणा को इस खबर के
साथ मिला लीजिए जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके कार्यकर्ता अगस्त महीने तक देश के
हर हिस्से में जाएंगे और कालेधन के खिलाफ लोगों को लामबंद करेंगे. तो रामदेव के
हवाले से ईटी जो कह रहा है और खुद बाबा रामदेव जो बोल रहे हैं उन दोनों को मिला
देने पर खबर यह बनती है कि कालेधन के खिलाफ मुहिम में उनके सेल्समैन अगले कुछ
महीनों तक देशभर का दौरा करेंगे और स्वदेशी केन्द्र खोलेंगे. कालाधन स्वदेश वापस
आये न आये बाबा रामदेव के सफेद धन का इंतजाम पुख्ता हो जाएगा. अगर ऐसा न होता तो
सैकड़ों बसों में भरकर उनके समर्थकों को कल संसद मार्ग पर क्यों लाया जाता? संदेश क्लीयर है.
लेकिन इस आल क्लीयर
कहानी को हमारे अखबार वाले क्यों नहीं पकड़ पा रहे हैं? शायद जन आंदोलन
शब्द आते ही हमारे अखबारों के संपादक समूह गाफिल हो जाते हैं और भीड़, जनता और संगठित
समूह में फर्क करना भूल जाते हैं. जो लोग कभी एमवे की मार्केटिंग मीटिंग में गये
हों उन्हें ज्यादा अच्छे से यह बात समझ में आ सकती है कि बाबा रामदेव से ज्यादा
मार्केटिंयरों की टीम एमवे की मीटिंग में होती है तो क्या उसे जनज्वार कह दिया
जाना चाहिए? अगर रामदेव
देश के महान क्रांतिकारी हैं तो एमवे के मैनेजरों को शूरवीर और अवतारों की उपाधि
देने में क्या हर्ज है?
खैर, अखबार वाले इसी बात
की रिपोर्टिंग करके प्रसन्न हैं कि उनके रिपोर्टर वहां थे जहां बाबा रामदेव और
अन्ना हजारे का सार्वजनिक मिलन हुआ. संसद मार्ग के हवाले से देश का सबसे बड़ा अखबार
दैनिक जागरण लिखता है कि अन्ना बाबा की साझा हुंकार. इस साझा हुंकार में दोनों की
साथ साथ फोटो भी छापी है और कालेधन पर रामदेव का और लोकपाल पर रामदेव के
मुखारबिन्द से कही गई बातों को कोट अनकोट कर दिया है. बड़े भाई की यह लाइन है तो
छोटा भाई दैनिक भास्कर क्यों पीछे रहता? आखिरकार भास्कर देश का दूसरा सबसे बड़ा अखबार
है. इसलिए उसने भी लीड स्टोरी तो यही लिखी है कि कालेधन और लोकपाल की लड़ाई एक मंच
से लेकिन साथ में एक छोटा सा स्लग भी लगाया है कि हालांकि मतभेद और साफ सफाई का
दौर भी चला. ऐसा लगता है कि मंच पर मौजूद वैदिक जी के आभामंडल में अखबार इससे आगे
जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. अमर उजाला ने तो हद ही कर दी. जरा हेडिंग देखिए-
अगस्त तक आरपार का अल्टीमेटम. अरे काहे का अल्टीमेटम. स्वेदशी सेवा केन्द्र खोलने
का या फिर कालाधन की वापसी का मुहिम चलाने का. खैर, अगर स्वदेशी सेवा
केन्द्र खोलने से कुछ विज्ञापन वगैरह रिलीज होता है तो कौन जाने अमर उजाला का नंबर
सबसे पहले आये, भले ही वह
देश का तीसरा सबसे बड़ा अखबार क्यों न हो.
पंजाब केशरी को
आंदोलन में नई धार भी दिखी और अनशन में दरार भी नजर आ गई. साथ में अश्विनी कुमार
जी का विशेष संपादकीय भी है ष्कबीरा खड़ा बाजार में.ष् अश्विनी जी ने बिल्कुल सही
फरमाया है. बस कबीरा की जगह अगर वे रामदेव लिख देते तो बात बन जाती. अपने आलोक
मेहता का नेशनल दुनिया अमर उजाला और पंजाब केसरी से भी आगे निकल गया है. ष्भारत
छोड़ो जैसा होगा आंदोलन.ष् इस लीड स्टोरी के साथ संदेश है कि काला धन वापस लाने की
मुहिम चलाएंगे. और जो नहीं लिखा गया है वह रामदेव भी समझ लें कि जब वापस आ जाए तो
कुछ धन ष्इधरष् भी लगवाएंगे क्योंकि नया अखबार शुरू किया है. थोड़ी कड़की दूर हो
जाएगी.
चलिए बड़े अखबारों
की गलतबयानियों और तराशी हुई रिपोर्टिंग को दिल्ली के एक दो छोटे अखबारों ने जरूर
दूर करने की कोशिश की है जो सर्कुलेशन में इन भीमकाय अखबारों से भले ही कम हों
लेकिन समझ में ज्यादा बेहतर नजर आते हैं. दिल्ली के दो अखबार राष्ट्रीय सहारा और
नया इंडिया ने वह रिपोर्ट करने की कोशिश की है जो वास्तव में घटित हुआ है.
राष्ट्रीय सहारा ने लिखा है कि रामदेव के हाथ मिले दिल नहीं. नया इंडिया और करीब
पहुंचा है और लाइन ली है कि बड़बोले बाबा के राग में दबा अनशन. साथ में संपादकीय भी
है कि ष्रामदेव फिर भड़भड़ाए.ष् संपादकीय लिखता है कि रविवार को मैं और मेरे
बालकृष्ण का भाव भी मुखर था. अन्ना और रामदेव के मिलन को नौटंकी बताता यह संपादकीय
लिखता है कि -अन्ना हजारे बालकृष्ण के बीच अपनी तस्वीर बनवाई. कई संकेत दिये.
बालकृष्ण को बैधता दिलवाई. सो फिर जाहिर हुआ कि रामदेव सिर्फ और सिर्फ बालकृष्ण के
आसरे हैं.‘ ऐसा क्यों
है?
कारण कुछ और नहीं
बल्कि वही है जो ईटी ने लिखा है. बालकृष्ण उन सभी कंपनियों के मालिक हैं जहां बाबा
रामदेव ने सफेद काला धन लगा रखा है. अब ऐसे में रामदेव के बालकिशन के अलावा किसी
और की चिंता क्यों होगी? क्यों अखबार वालों तुम्हें भी छठी इंद्रिय को भी कुछ दिखाई
सुनाई देता है या रिपोर्टिंग के वक्त उन्होंने काम करना बंद कर दिया है?
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