खण्डित हो गई है
राष्ट्रपति भवन की गरिमा! . . . 5
गंभरी त्रुटी की
उम्मीद नहीं थी महामहिम कार्यालय से!
मौत के बाद दयालु महामहिम ने दी माफी!
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
भारत गणराज्य की स्थापना के उपरांत देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति बनने का
गौरव पाने वाली श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के कार्यकाल का सबसे बदनुमा दाग
पांच वर्ष पूर्व देह त्याग चुके कर्नाटक के बंधु बाबू राव तिड़के को जीवन दान देना
ही माना जाएगा। प्रतिभा पाटिल ने 35 मुजरिमों को जीवनदान देकर दयालू महामहिम के
बतौर अपने आप को पेश किया है, अमूमन इसके पहले महामहिम राष्ट्रपतियो
द्वारा इस मामले से पर्याप्त दूरी ही बनाई रही है।
पिछले माह दो जून
को जब चार लोगों की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदलने की बात सामने आई तो लोग
हैरत में इसलिए पड़ गए कि इसमें शामिल कर्नाटक के बंधु बाबूराव तिड़के का नाम था जो
लगभग पांच साल पहले ही पार्थिव देह को त्याग चुका था। एक मृत व्यक्ति की सजा माफ
करने का यह अपने आप में पहला उदहारण ही माना जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के
अनुसार सदाशिव मठ के स्वामी के बतौर तिड़के पर एक सौलह साल की कोमलांगा बाला स्कूली
छात्रा के अपहरण कर बलात्कार करने फिर उसकी हत्या करने का आरोप था। देश की महामहिम
राष्ट्रपति पद की शपथ लेेने के महज तीन माह बाद तिड़की की 18 अक्टूबर 2007 को ही मौत हो गई
थी। इसकी सूचना भी केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के पास भेजी जा चुकी थी।
केंद्रीय गृह
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि तिड़के की मौत की सूचना मिलने के बाद मंत्रालय
द्वारा तिड़के की सजा माफी की फाईल महामहिम राष्ट्रपति के पास भेजना गंभीर त्रुटि
में ही आता है। सूत्रों का कहना है कि देश में शासन प्रशासन नाम की चीज ही नहीं
बची है, संभवतः यही
कारण है कि एक मृत कैदी को जीवन दान देने संबंधी नस्ती को सजा माफी के लिए महामहिम
राष्ट्रपति के कार्यालय भेजा गया था।
महामहिम राष्ट्रपति
के कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि बतौर महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह
पाटिल द्वारा अब तक संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए अधिकारों का प्रयोग कर लगभग 35 संगीन अपराधों
वाले मुजरिमों को जीवनदान दिया है। सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रतिभा देवी सिंह
पाटिल ने अपने कार्यकाल में सबसे पहले तमिलनाडू के गोविंद स्वामी को सबसे पहले
जीवन दान दिया था।
सूत्रों की मानें
तो पूर्व महामहिम राष्ट्रपतियों में शंकर दयाल शर्मा के समक्ष 14 दया याचिकाएं पेश
की गई थीं, जिन पर
विचार कर उन्होंने किसी को भी दया के योग्य नहीं पाया था। इसके अलावा
के.आर.नारायणन के समक्ष दस दया याचिकाएं पेश हुईं पर उन्होंने विलंब की रणनीति
अपनाकर इन्हें लंबित ही रखा था। एपीजे अब्दुल कलाम के समक्ष 25 दया याचिकाएं आईं
जिनमें से एक की फांसी को उम्र कैद में बदला और एक की याचिका खारिज कर शेष
याचिकाएं लौटा दी थीं।
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