गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

वेलेंटाईन-डे बनाम दो प्रेमियों के प्यार का इजहार करने का दिन


वेलेंटाईन-डे बनाम दो प्रेमियों के प्यार का इजहार करने का दिन

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर (साई)। 14 फरवरी वैलेंटाईन-डे यानी दो प्रेमियों के प्यार कर इजहार करने का दिन। दरअसल प्रेम कोई प्रायोजित कार्यक्रम नहीं है, जो चाहे से हो जाए और न चाहने से रूक जाये। प्रेम और स्टॉप वॉच में बहुत फर्क है। गालिब ने सही कहा है कि प्रेम ऐसा आतिशी जजबात है, जो सप्रयास लगता नहीं है और सप्रयास बुझता नहीं है। यह तो बस, होता है ओर होता ही जाता है। नहीं होता है तो नहीं हो पाता है। प्रेम का इतिहास भी इसी बात का गवाह है। रामू की छोरी ने नंद के छोरे को देखा, नंद के छोरे ने रामू की छोरी को देखा और हो गया प्यार, ऐतिहासिक प्यार। राध की जगह तो रूकमणी भी नहीं ले सकी। पंजाब के हीर-रांझा और मरूभूमि के लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद ने चौपडिया देखकर शुभ मुहुर्त में प्रेम प्रसंग नहीं किया था। मीरा भी पूर्व नियोजित कार्यक्रमानुसार कृष्णा दीवानी नहीं हुई थी। प्रेम प्रसंग का घटित होना किसी भवन के लिए भूमिपूजन या किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान का शुभारम्भ नहीं है। प्रेम का संबंध अगर दिल से हो, तो वह दुनिया के सारे प्रतिबंधों, सारी वर्जनाओं को ध्वस्त कर देता है। प्रेम ही वह तूफान है जिसमें देश, धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, परम्परा और संस्कृति के किनारे टूट जाते है। प्रेम में सिर्फ प्रेम ही प्रेम होता है। जैसे जल प्लावन के पश्चात चहुंदिशी जल ही जल होता है। प्रेम करने वाले सिर्फ मन देखते है। मन की भाषा समझते है मन का भाषा बोलते है प्रेम में केवल मन को देखने की भावना की अभिव्यक्ति इस पंक्ति में कितने सुंदर ढंग से की गई है, , ‘‘उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन’’ प्रेम केवल मन देखता है, तभी तो राजरानी रजिया सुलतान गुलाम याकूब को अपना दिलदार बना लेती है। दूसरी ओर अरेंज मैरिज अर्थात प्रायोजित विवाह होते है। जिनमें परम्परावादी माता पिता खुद सामने वालों का घर बार देख लेते है। लेन देन के सौदे हो जाते है। लडके लडकी तो एक  दूसरे को तभी देख पाते है, जब वे सात फेरों के बंधन में बंधकर पति-पत्नि बन जाते है। दरअसल पारंपारिक प्रायोजित विवाह लडके लडकी की कम, समधियों समधानों की अपनी पसंद होती है। यह लडके लडकी का नहीं माता पिता की पंसद का विवाह होता है। लडके लडकियों के लिए तो यह विवाह एक लॉटरी है एक सट्टा है, एक जुआ है, अनुकूल पात्र मिल गया, तो ठीक वरना जिंदगी भर एक दूसरे को तमाम नापसंदगी, ना इतफाकी के साथ कुत्ते बिल्लियों की तरह लडते झगडते किचकिच करते झेलते रहते है। साफतौर पर कहा जाये तो ‘‘प्रेम विवाहों में प्रेम पहले हो जाता है विवाह बाद में, तो विवाह के बाद प्रेम करने की गुंजाइश ही हनीं रहती है’’ प्रेम विवाह में पहले प्रेम होता है विवाहोपरांत प्रेम परवान चढता है। प्रेमी युगल के प्रेम विवाह को माता-पिता की नाक कट जाना समझते है। हमें हमारी संस्कृति पर खतरा नजर आता है समाज व्यवस्था धसकती नजर आती है। इस हाय-तौबा पर कई बार तो ऐसा लगता है कि जो हम नही कर पाते हैं वह दूसरों को करते देखते हैं। तो हमारी ईर्ष्या विरोध बनकर प्रकट होती है, प्रेम विवाह असफल इसलिए होते हैं, क्योंकि समाज उन्हें हेय दृष्टि से देखता है। माता पिता अपनी उस संतान की उपेक्षा करते है, जिसने प्रेम विवाह किया है। पारंपरिक प्रायोजित विवाह इसलिए सफल हो जाते है। क्योंकि उसे सामाजिक मान्यता मिलती है एक परिवार दूसरे परिवार के प्रति उत्तरदायित्व समझता है ओर अलग होने पर लोक निंदा का भय होता है। गरज यह कि प्रेम सहज है, इसे कैसे रोका जा सकता है? ढाई अक्षर प्यार के जहां एक ओर दो प्रेमियों की जिंदगी बनाता है वहीं दो परिवारों को भी एक दूसरे का दुश्मन बना देता है। 

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