शनिवार, 13 अप्रैल 2013

खौफ का पर्याय बन गए थे प्राण


खौफ का पर्याय बन गए थे प्राण

(लिमटी खरे)

रूपहले पर्दे के अदाकार प्राण का नाम आते ही घरों की स्त्रीयों में एक दहशत छा जाती थी। सिनेमाघरों में प्राण को देखकर महिलाएं अपने बच्चों को अपने आंचल में छिपा लेती थीं। उस दौर में महिलाओं को लगता था कि पर्दे पर जो हो रहा है वह हकीकत में हो रहा है। प्राण इतना जीवंत अभिनय करते थे थे कि उनका विलेन का स्वरूप जी उठता था, इसलिए महिलाओ में उनके इमेज बेहद खराब बनी हुई थी। वास्तव में प्राण बेहद जिंदादिल इंसान थे। समय के साथ उन्होंने केरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में अपने आप को स्थापित किया। पहले वे विलेन के रूप में जबर्दस्त तरीके से स्थापित हो चुके थे।

बालीवुड के प्रसिद्ध विलेन और चरित्र अभिनेता प्राण सिकंद को फिल्मों में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है। यह सम्मान भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के के नाम पर दिया जाता है। प्राण को तीन मई को विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में सम्मान दिया जायेगा. अपने छह दशक के कैरियर में 400 से अधिक फिल्में कर चुके प्राण ने 1998 में अभिनय को अलविदा कह दिया था। प्राण की हालत नाजुक है इसलिए वे शायद ही पुरूस्कार लेने जा पाएं।
12 फरवरी 1920 को दिल्ली में जन्म लेने वाले प्राण आज 93 वर्ष के हैं। प्राण का वास्तविक नाम प्राण किशन सिकन्द है। प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आम तौर पर सड़क और पुल का निर्माण करते थे। देहरादून के पास कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है। अपने काम के सिलसिले में इधर-उधर रहने वाले लाला केवल कृष्ण सिकंद के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई।
प्राण ने अपना कैरियर फोटोग्राफर के बतौर लाहौर में आरंभ किया था। प्राण एक्टर नहीं फोटोग्राफर बनना चाहते थे। प्राण ने आरंभ में महिलाओं का किरदार भी निभाया। उन्होंने सबसे पहले अपने शहर की रामलीला में सीता का किरदार निभाया था। प्राण को 1940 में यमला जटनामक फिल्म में पहली बार काम करने का अवसर मिला।
जब मुंबई आए प्राण तब उन्होनें फिल्मों में काम करना आरंभ किया ओर प्राण की पहली सबसे बड़ी हिट फिल्म थी बीआर चोपड़ा की अफसाना (1951) रही। एक अनुमान के अनुसार प्राण ने आधी सदी तक रूपहले पर्दे पर अपनी जानदार शानदार अदाकारी का जलवा दिखाया और चार सौ से अधिक फिल्मों में काम किया।
प्राण ने अपनी अधिकांश फिल्मों में बरखुरदार शब्द का इस्तेमाल किया। उनकी लटकती जुल्फें और बरखुरदार उनकी पहचान बन गई थी। आजादी के उपरांत सन 1948 में रिलीज जिद्दी और बड़ी बहन से उनकी पहचान खलनायक के रूप में बननी शुरू हुई और यही से शुरू हुआ प्राण का नया सफर। जिसमे राम और श्याम में उनकी भूमिका दमदार रही। प्राण विलेन ही नहीं रहे उन्होंने उपकार में मंगल चाचा का किरदार निभाकर अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया।
जिस तरह पचहत्तर में आई अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र अभिनीत शोले में गब्बर सिंह का किरदार अमजद खान ने निभाकर महिलाओं के दिल में दहशत पैदा कर दी थी, उसी तरह सत्तर के दशक के पहले प्राण को देखकर ही महिलाओं के मन से उन्हें बद्दुआ देना आरंभ कर देती थीं। प्राण की अदाकारी में इतना दम था कि वे महिलाओं और बच्चों के खासे दुश्मन बन बैठे थे।
निजी जिंदगी में प्राण अपनी इस इमेज से हटकर ही हैं। उनको खेलों का बड़ा शौक है। खिलाड़ियों की मदद को तो वह हरदम तैयार रहते हैं। बताया जाता है कि उन्होंने एक बार क्रिकेट अधिकारियों से कहा था कि वह कपिल देव की ऑस्ट्रेलिया में ट्रेनिंग का पूरा खर्चा उठाने के लिए तैयार हैं। प्राण चौरिटी के लिए क्रिकेट मैच भी खूब कराते थे। प्राण ने फुटबॉल टीम बॉम्बे डायनमॉस को भी मदद की थी।
माना जाता है कि इंडियन सोसायटी में प्राण का नाम इतना बदनाम था कि साठ से सत्तर के दशक के बीच किसी ने भी अपने बच्चे का नाम प्राण नहीं रखा। एक्टिंग प्राण की पूजा थी। उनके करीबी बताते हैं कि फिल्म जंजीर में यारी है ईमान मेरा की शूटिंग के दौरान उनकी पीठ में जबर्दस्त दर्द था, पर उन्होंने इस दर्द के बाद भी जमकर नाचा।
वैसे प्राण का पूरा नाम प्राण किशन सिकंद है। उनकी शादी 1945 में शुक्ला अहलूवालिया से हुई। उनसे उनके दो बेटे अरविंद, सुनील व एक बेटी पिंकी है। प्राण को कुत्ते बहुत पसंद हैं। साथ ही उन्हें पाइप कलेक्ट करने का भी बड़ा शौक है। उन्होंने कई देशों के पाइप इकट्ठे किए हुए हैं। एसे अदाकार को उम्र के इस पड़ाव में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजना फक्र की बात है पर अगर यह सम्मान उन्हें दस बीस साल पहले मिल जाता तो वे अपनी खुशी का इजहार बेहतर तरीके से कर सकते थे। (साई फीचर्स)

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