माहौल में गर्मी, चुनावी बिसात ठण्डी
(लिमटी खरे)
परिसीमन में संसदीय क्षेत्र खोने की
पीड़ा कहीं न कहीं दिखने लगी है। वर्ष 2009 में पहली बार सिवनी लोकसभा के अवसान के
बाद लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे। उस समय घाव ताजा-ताजा था, लोग समझ ही नहीं पाए कि क्या हुआ है। इसके बाद पांच सालों में
लोगों को बेहतर तरीके से इस बात का भान हो गया कि लोकसभा के अवसान के क्या परिणाम
हो सकते हैं। आधा जिला मण्डला तो आधा बालाघाट संसदीय क्षेत्र का अंग बन गया है।
एक जिले को संसदीय क्षेत्र के हिसाब
से दो भागों में बांटा गया है। चार में से लखनादौन और केवलारी को मण्डला संसदीय
क्षेत्र का अंग बना दिया गया है, तो बरघाट और
सिवनी को बालाघाट में शामिल कर दिया गया। पांच सालों में मण्डला संसदीय क्षेत्र के
कांग्रेसी सांसद रहे बसोरी सिंह मसराम ने सिवनी आने की जहमत कम ही उठाई। रही बात
लोकसभा में अपनी बात रखने की तो बताते हैं कि उन्होंने पांच सालों में एक दर्जन से
भी कम प्रश्न पूछे। ये प्रश्न भी ऐसे थे जिनका सिवनी और मण्डला से दूर-दूर तक कोई
लेना देना नहीं था।
वहीं, दूसरी ओर भाजपा के सांसद रहे के.डी.देशमुख अलबत्ता बीच-बीच
में लंबे अंतराल के उपरांत अपनी उपस्थिति अवश्य ही दर्ज कराते रहे हैं। सिवनी के
हितों के बारे में उनके द्वारा भी आवाज न उठाया जाना वाकई शर्मनाक ही माना जा सकता
है। फोरलेन और ब्रॉडगेज को लेकर न जाने कितने आंदोलन हुए, पर सांसदों ने इस दिशा में पहल करने का जतन नहीं किया। यह
अलहदा बात है कि इसके पहले की सांसद रहीं श्रीमति नीता पटेरिया, राम नरेश त्रिपाठी, प्रहलाद पटेल आदि
ने भी इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया है।
अब लगने लगा है कि सिवनी लोकसभा का
अवसान वाकई सिवनी के लिए दुखद ही है। लोकसभा में मतदान 10 अप्रैल को होना है और सिवनी
में चुनाव का माहौल तक नहीं दिख रहा है। अब लग रहा है मानों सिवनी के साथ दोयम
दर्जे का व्यवहार हो रहा है। यह बात दावे के साथ हम इसलिए भी कह सकते हैं, क्योंकि मीडिया को सरकारी स्तर पर जानकारी देने के लिए पाबंद
जिला जनसंपर्क कार्यालय (जो यदा कदा एमसीएमसी से बनी मेल आईडी से भी जनसंपर्क
विभाग की खबरें भेज रहा है) एवं एमसीएमसी ने भी सिवनी के मीडिया को बालाघाट संसदीय
क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से अवगत नही कराया है।
बालाघाट और मण्डला में प्रथम चरण में
चुनाव संपन्न होने हैं। इसके लिए 15 मार्च को अधिसूचना जारी हो चुकी है। नाम
निर्देशन जमा करने की अंतिम तिथि 22 मार्च भी निकल चुकी है। नॉमीनेशन की छंटाई और
परीक्षण की तिथि 24 मार्च भी निकल चुकी है। नाम वापिसी की अंतिम तिथि 26 अपै्रल है, एवं मतदान 10 अपै्रल को है। यह जानकारी पाठकों को मीडिया के
माध्यम से पूर्व में मिल चुकी होगी। इसको दोहराने की आवश्यक्ता इसलिए पड़ रही है कि
बालाघाट और मण्डला संसदीय क्षेत्र में कब कितने नामांकन पत्र जारी हुए? कब कितने जमा हुए? अंतिम दिन क्या
स्थिति रही? नाम वापिसी के समय तक क्या स्थिति
रही? छंटाई के बाद क्या स्थिति बनी? इस बारे में जिला जनसंपर्क कार्यालय मौन ही है।
हो सकता है जिला जनसंपर्क कार्यालय
को भी इसकी जानकारी न हो। हमारी निजि राय में यह आपसी सामंजस्य के अभाव के कारण
उत्पन्न स्थिति ही है। सिवनी जिले की दो विधानसभा मण्डला संसदीय क्षेत्र का अंग
हैं तो दो बालाघाट संसदीय क्षेत्र में आती हैं। क्या नामांकन दाखिल करने वालों के
नामों को जानने का हक सिर्फ मण्डला और बालाघाट जिलों के निवासियों को ही इसलिए है
कि उनके जिलों के नाम से संसदीय क्षेत्र का नाम है? बालाघाट और मण्डला के जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा इसकी
सूचना बाकायदा जिला मुख्यालय के मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाई गई पर सिवनी
में मीडिया को इस तरह की जानकारी से महरूम रखना क्या उचित है?
हमारी निजि राय में होना यह चाहिए था
कि जनसंपर्क विभाग द्वारा बालाघाट और मण्डला के जनसंपर्क कार्यालयों से
को-ऑर्डिनेशन बनाकर वहां से ‘सिर्फ और सिर्फ‘ चुनाव के संबंध में जारी होने वाली विज्ञप्तियों को ही मेल से
बुलवाकर सिवनी के मीडिया में वितरित करवा दिया जाना चाहिए था, वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं। इस आधार पर हमें यह कहने में कोई संकोच
नहीं है कि सिवनी संसदीय क्षेत्र के अवसान का खामियाजा मीडिया और जनता को इसलिए
भुगतना पड़ा क्योंकि वे मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचने वाली इन महत्वपूर्ण
खबरों से अनभिज्ञ रही।
हो सकता है कि इस टिप्पणी के प्रकाशन
के बाद जिला प्रशासन हरकत में आए और नाम वापिसी के उपरांत की चुनावी तस्वीर को
मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का प्रयास किया जाए। पर अगर ऐसा नहीं किया
जाता है तो सिवनी जिले की जनता को चुनाव परिणाम के लिए भी बालाघाट से प्रकाशित
होने वाले अथवा जिनका प्रसार बालाघाट में हो, उन समाचार पत्रों
पर ही निर्भर रहना पड़े।
बहरहाल, सिवनी शहर में तो चुनावी माहौल में अपेक्षाकृत तेजी नहीं ही
प्रतीत हो रही है। न तो जगह-जगह पार्टियों के बैनर पोस्टर्स ही दिख रहे हैं और न
ही अन्य बड़ी गतिविधियां ही दिखाई दे रही हैं, हां, इक्का-दुक्का तस्वीरें और खबरें अवश्य ही मीडिया में आ रही
हैं। चुनाव को लेकर भाजपा की ओर से मनोज मर्दन त्रिवेदी की विज्ञप्तियां तेजी से आ
रहीं हैं पर कांग्रेस की तोपें शांत हैं। आलम देखकर यह कहा जा सकता है कि मौसम का
मिज़ाज तो गर्म दिख रहा है पर चुनावी बिसात में ठण्डक पसरी हुई है. . .।
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