बॉलीवुड में नहीं, सेना में जाना चाहती थीं नंदा
(निधि गुप्ता)
मुंबई (साई)। अपनी रूमानी अदाओं से
दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली नंदा का 25 मार्च की सुबह निधन हो गया। वह 75
वर्ष की थीं। नंदा ने अपने फिल्मी करियर में 70 के करीब फिल्मों में काम किया।
साल 1972 में आई मनोज कुमार की फिल्म
‘शोर‘ बतौर अभिनेत्री
नंदा की अंतिम हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने मनोज कुमार की पत्नी की
भूमिका निभाई, जो अपने बच्चे को ट्रेन से बचाने के
क्रम में अपनी जान से हाथ धो बैठती है। इस फिल्म में अपनी छोटी सी भूमिका में नंदा
ने सिने दर्शकों का मन मोह लिया था।
‘शोर‘ फिल्म में काम
करने के बाद अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए नंदा ने फिल्मों में काम करना कुछ कम कर
दिया। इस दौरान उनकी ‘परिणीता‘, ‘प्रायश्चित‘, ‘कौन कातिल‘, ‘असलियत‘ और ‘नया नशा‘ जैसी फिल्में आईं, लेकिन ये सभी फिल्में टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुईँ। लगातार
फिल्मों की असफलता को देखते हुए नंदा ने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया।
साल 1981 में नंदा ने ‘आहिस्ता आहिस्ता‘ से बतौर चरित्र
अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में दोबारा वापसी की। इस फिल्म में काम करने के बाद, उन्होंने राजकपूर की फिल्म ‘प्रेमरोग‘ और ‘मजदूर‘ में अभिनय किया।
वैसे, इसमें दिलचस्प बात है कि इन तीनो फिल्मों मे नंदा ने फिल्म
अभिनेत्री पदमिनी कोल्हापुरे की मां का किरदार निभाया था।
नंदा ने अपने चार दशक लंबे सिने
करियर में कई फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीता, लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी फिल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
के फिल्मफेयर से सम्मानित नहीं की गईं। हालांकि, साल 1960 में आई ‘आंचल‘ के लिये बतौर सहायक अभिनेत्री उन्हें फिल्मफेयर का अवॉर्ड
दिया गया था। वह फिल्म ‘भाभी‘ (1957), ‘आहिस्ता आहिस्ता‘ (1981) और ‘प्रेमरोग‘ (1982) के लिये सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और ‘इत्तेफाक‘ 1969 के
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए नामांकित की गईं।
नंदा ने लगभग चार दशक तक लोगों को
मंत्रमुग्ध किया, लेकिन यह बात कम लोगों को ही पता
होगी कि वह फिल्म अभिनेत्री न बनकर सेना में काम करना चाहती थीं। मुंबई में 08
जनवरी 1939 को जन्मी नंदा के घर में फिल्मी माहौल था। उनके पिता मास्टर विनायक
मराठी रंगमंच के जाने-माने हास्य कलाकार थे। इसके अलावा उन्होंने कई फिल्मों का
निर्माण भी किया था। नंदा के पिता चाहते थे कि वह अभिनेत्री बनें, लेकिन इसके बावजूद नंदा की अभिनय में कोई खास दिलचस्पी नहीं
थी।
नंदा महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष
चंद्र बोस से काफी प्रभावित थीं और उनकी ही तरह सेना से जुड़कर देश की सेवा करना
चाहती थीं। एक दिन का वाकया है कि जब नंदा पढ़ाई में व्यस्त थीं, तब उनकी मां ने उनके पास आकर कहा, ‘तुम्हें अपने बाल कटवाने होंगे, क्योंकि तुम्हारे पापा चाहते हैं कि तुम उनकी फिल्म में लड़के
का किरदार निभाओ‘।
मां की इस बात को सुनकर नंदा को काफी गुस्सा आया।
पहले तो उन्होंने बाल कटवाने से साफ तौर से मना कर दिया, लेकिन मां के समझाने पर वह इस बात के लिये तैयार हो
गईं। फिल्म के निर्माण के दौरान नंदा के सिर से पिता का साया उठ गया, साथ ही फिल्म भी अधूरी रह गई। धीरे-धीरे परिवार की
आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। उनके घर की स्थिति इतनी खराब हो गई कि उन्हें अपना
बंगला और कार बेचने के लिये विवश होना पड़ा।
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