भाजपा की प्राथमिकता सत्ता है या
मोदी?
(श्वेता यादव)
बंग्लुरू (साई)। नरेन्द्र मोदी जब से
प्रधानमंत्री की रेस में शामिल हुए है तब
से हंगामा सा बरपा हुआ है। हैरानी की बात तो यह है कि यह हंगामा न केवल पार्टी के
बाहर है बल्कि भाजपा के अंदर भी है। हालात कुछ इस कदर गरमाएँ हुए हैं कि अब तो
शंका होने लगी है कि कहीं भाजपा जो कि कांग्रेस मुक्त भारत का मिशन चला रही है वो
मोदी के कारण भाजपा मुक्त भारत में न तब्दील हो जाए।
अभी तक अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी त्रिमूर्ति की तरह भाजपा का
प्रतिनिधित्व करते आए हैं पर मौजुदा हालात में जो भाजपा की छवि है वो ऐसी लगती है
जैसे भाजपा मतलब नरेन्द्र मोदी. आज पार्टी के अदंर बड़़ा बदलाव देखने को मिल रहा है
कुछ ऐसा जिसने त्रिमूर्ति की अहमियत को कम कर दिया है।
आखिर बीजेपी को क्यों नहीं दिख रहे हैं आडवाणी, जोशी, टंडन और जसवंत के आंसू? खैर अटल जी तो पहले ही इस चुनावी रेस से बाहर है पर
आडवाणी जी, जोशी
जी या फिर बात हम जसवंत जी की ही क्यों न करें इनकी अहमियत में कमी साफ दिख रही
है। अगर ऐसा न होता तो जसवंत सिंह जो कि अटल जी के शासन काल में एक कुशाग्र
राजनेता के रुप में उभरे, जिन्होंने
वाजपेयी युग में विदेश नीति और अर्थशास्त्र की नसों को बखुबी नियंत्रित किया, जिन्होंने अपने आप को भाजपा को पूर्ण रुप से समर्पित
किया आज स्थिति ऐसी है कि उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट के लिए रोना पड़ रहा है।
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