चुनाव के चलते तालाबंदी!
(शरद खरे)
मतदान को लोकतंत्र के हवन की बहुत बड़ी आहुती माना गया है। मतदान के पहले
प्रशासनिक स्तर पर माकूल व्यवस्थाएं सुनिश्चित होना बेहद आवश्यक है। यही कारण है
कि चुनाव के एक डेढ़ माह पहले से ही प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद हो जाता है। चुनाव के
दौरान अवकाश प्रतिबंधित ही हो जाता है। सत्तर के दशक के आसपास यह कहा जाता था कि
चुनाव और जंग के मौसम में अवकाश पर जाना टेड़ी खीर होता है।
सिवनी में बीते शनिवार का अवकाश जिला प्रशासन की ओर से निरस्त कर दिया गया
था। इसका कारण शायद होली का बीच में पड़ जाना हो सकता है। सरकारी तौर पर बाकायदा
इसकी विज्ञप्ति भी जारी कर सूचना दी गई थी। बावजूद इसके संवेदनशील जिला कलेक्टर
भरत यादव के आदेशों को धता बताते हुए लखनादौन में लगभग सभी कार्यालयों में ताले
झूलते मिले। इसके छायाचित्र भी समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा प्रमुखता के साथ
प्रसारित किए गए थे।
अब जब गायब अधिकारियों से मीडिया द्वारा पूछताछ की जा रही है तो मीडिया को
संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पा रहा है। वैसे मीडिया में मामला उछलने के बाद यह
जवाबदेही लखनादौन के अनुविभागीय राजस्व अधिकारी की है। पता नहीं उन्होंने इस संबंध
में शोकॉज नोटिस जारी किया है अथवा नहीं।
इस मामले में कुछ का कहना है कि उन्हें शनिवार के अवकाश निरस्त होने की
सूचना नहीं मिली तो कुछ मैदानी कर्मचारी अधिकारियों का कहना है कि वे फील्ड में गए
थे। सवाल यह उठता है कि अगर सूचना नहीं मिली तो सूचना देने की जवाबदेही किसकी थी।
लखनादौन में जिला स्तर के कार्यालय शायद ही हों। इस लिहाज से तहसील स्तर के
कार्यालयों को सूचना देने का कार्य जिला स्तर के कार्यालयों का था। क्या उनके
द्वारा यह सूचना वहां तक नहीं पहुंचाई गई?
वहीं, दूसरी और मैदानी कर्मचारी और अधिकारी
अगर यह दलील दें कि वे फील्ड में गए थे तो किसी को भी बरबस ही हंसी आ जाएगी, क्योंकि कोई भी अधिकारी या कर्मचारी अपने कार्यालय में ताला
लगाकर तो फील्ड में कतई नहीं जाएगा। 15 मार्च शनिवार था
और यह अवकाश निरस्त कर दिया गया था। इस संबंध में जिला या तहसील प्रशासन ने क्या
कार्यवाही की है यह बात भविष्य के गर्भ में ही मानी जा सकती है।
संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव से जनापेक्षा है कि जिला प्रशासन के आदेश
के बाद भी लखनादौन में अगर शासकीय कार्यालयों में शनिवार को तालाबंदी रही और सुदूर
ग्रामीण अंचलों से आए लोग भटकते रहे तो इसकी जांच की जानी चाहिए। चुनाव के चलते
जिला प्रशासन की व्यस्तता को समझा जा सकता है किन्तु इसके लिए किसी स्वतंत्र
एजेंसी से जांच अवश्य करवाई जाए और अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार लोगों के
विरूद्ध कार्यवाही कर एक नजीर पेश की जानी चाहिए।
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