0 घंसौर को झुलसाने
की तैयारी पूरी . . . 84
असंतोष खदबदा रहा
किसानों में!
शिव के राज में
ठगा महसूस कर रहे आदिवासी किसान
(शिवेश नामदेव)
घंसौर (साई)। देश
के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं सूची में
अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने
वाले 1260 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में संयंत्र प्रबंधन द्वारा खरीदी गई
आदिवासी किसानों की जमीनों के मामले में वे अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
कांग्रेसनीत केंद्र
सरकार और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के राज में छले गए किसान अब ग्राम बरेला में
संयंत्र के सामने धरने पर बैठे हैं। किसानों के अनुसार उनकी जमीनें कांग्रेस और
भाजपा के नेताओं की सरपरस्ती में दलालों ने औने पौने दामों में खरीद ली गई।
किसानों का आरोप है कि संयंत्र प्रबंधन को यह जमीन उंचे दामों पर बेची गई है।
आदिवासी बाहुल्य
घंसौर विकास खण्ड के हालात देखकर लगता है कि अगर शासन प्रशासन ने समय रहते उचित
कदम नहीं उठाया तो इसका अंजाम दिग्विजय सिंह के शासनकाल में बैतूल और हाल ही में
हुए रायसेन के किसान आंदोलन से ज्यादा गंभीर हो सकता है। किसानों के अंदर ही अंदर
असंतोष का लावा जमकर खदबदा रहा है।
इतना सब कुछ देखने
सुनने के बाद भी कांग्रेस और भाजपा के नुमाईंदे इन किसानों के रिसते घावों पर मरहम
लगाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। चर्चा है कि 6800 करोड़ की लागत से लगने वाले इस
संयंत्र में प्रबंधन ने मिस्लेनियस फंड में बड़ी मात्रा में राशि रखी है। इसी राशि
से संयंत्र प्रबध्ंान द्वारा कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के मुंह बंद कर रखे हैं।
इन चर्चाओं में सच्चाई कितनी है यह बात तो कांग्रेस, भाजपा के नुमाईंदे
और संयंत्र प्रबध्ंान जाने किन्तु किसानों के आंदोलन में कांग्रेस भाजपा की बेरूखी
से साफ हो जाता है कि दोनों ही सियासी दल किसान आदिवासियों के हितों की बातें सिर्फ
भाषणों में ही किया करते हैं।
उधर, पुलिस सूत्रों का
कहना है कि अर्धसैनिक बलों की दो टुकड़ियां भी घंसौर पहुंच चुकी हैं। माना जा रहा
है कि इस तरह बल पूर्वक किसानों के आंदोलन के दमन करने की मंशा में सरकार है। अगर
वाकई किसानों के आंदोलन को दमनात्मक तरीके से कुचला गया तो स्थिति और भी विस्फोटक
होने की उम्मीद जताई जा रही है।
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