राजदूत के चंद हजार
रूपये न चुकाने वाले हरवंश आज लाखों की पजेरो में घूमते हैं!
(शमीम खान)
सिवनी (साई)।
मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास में ठाकुर हरवंश सिंह जैसा शायद ही कोई नेता हो, जिसने बहुत ही कम
समय में विराट आर्थिक संपन्नता हासिल की हो। बीसवी सदी के अंतिम दो दशकों में
हरवंश सिंह ने प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति के शिखर को छूने के साथ आर्थिक
संपन्नता के नये कीर्तिमान भी स्थापित किया है। उनकी उन्नति अदभुत, चमत्कारिक और
बेमिसाल है। हरवंश सिंह की उन्नति वर्तमान समय में भाजपा और कांग्रेस के अनेक
महत्वाकांक्षी नेताओं के लिये आदर्श बन चुकी है। अनेक नेता उनके जैसा ही सबकुछ
पाना चाहते हैं। बीते लगभग चार दशकों से कांग्रेस की राजनीति करने वाले हरवंश सिंह
की चहुंमुखी उन्नति,
समृद्धि और ताकत से प्रदेश के अच्छे- अच्छे नेताओं को भले ही
रश्क हो परंतु विचारणीय सवाल यह है कि यह चमत्कार कैसे हुआ? ऐसा नहीं है कि ऐसे
चमत्कार देश में नहीं हए हैं या नहीं होते हैं। धीरूभाई अंबानी से लेकर ढेर सारे
ऐसे अनेक उदाहरण है,
जो फर्श से उठकर अर्श तक पहुंचे और बहुत कम समय में अरबों का
व्यवसायिक साम्राज्य खड़ा कर मिसाल कायम कर दिखाया।
धीरूभाई अंबानी
जैसी शख्सियत की आर्थिक कामयाबी के पीछे स्पष्ट तर्क एवं कारण दिखते हैं। ऐसे कारण
हरवंश सिंह के मामले में नहीं दिखते हैं। यदि कृषि कार्य करते- करते उन्होंने इतनी
जबर्दस्त आर्थिक संपन्नता हासिल की है तो देश के आर्थिक सुधार विशेषज्ञों एवं
अर्थशास्त्रियों को उनके ऊपर शोध करना चाहिए ताकि देश के किसानों को हरवंशी कृषि
के नुस्खे बताकर उन्हें भी करोड़पति बनाया जा सके।
छिंदवाड़ा जिले के
बिन्दरई गांव से विस्थापन के बाद छपारा ब्लॉक के बर्रा गांव में स्थापित हुए हरवंश
सिंह के परिवार के पास उस दौरान कितनी एकड़ जमीन थी और आज उनके परिवार के पास कितने
सौ एकड़ जमीन हैं, इसके लिए
भी एक गहन शोध की जरूरत है। सिवनी जिले में ना तो उन्नत कृषि होती है और ना ही इस
जिले का किसान प्रगतिशील है। ऐसे में कृषि कार्य से बहुत ज्यादा समृद्धि और
संपन्नता हासिल करना किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
सिवनी जिले में ऐसे
अनेक प्रतिष्ठित एवं खानदानी परिवार हैं, जिनके पास पचास से ज्यादा वर्षों से तीन सौ, चार सौ और हजार एकड़
तक जमीन रही है, परंतु ऐसे
परिवार भी ठाकुर हरवंश सिंह जैसी आर्थिक संपन्नता हासिल नहीं कर सके।
कृषि कार्य के
अलावा ठाकुर हरवंश सिंह और उनके परिवार के पास शुरूआती दौर में ऐसा कोई व्यवसाय भी
नहीं था, जिससे दिन
दूनी और रात चौगुनी उन्नति की जा सके। हरवश सिंह को वर्षों से जानने वालों की माने
तो हाथकरघा के उपाध्यक्ष बनने के पहले वे आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा संपन्न नहीं
थे। इस बात की पुष्टि हरवंश सिंह को लेकर की जाने वाली उस चर्चित घटना से भी होती
है, जिसका
उल्लेख काली राजदूत काण्ड के नाम से हरवंश सिंह से असंतुष्ट कांग्रेसी नेता और उनके
दिखावे के विरोध वाले भाजपाई नेता समय- समय पर करते हैं।
राजनीति में सफल
होने का मूलमंत्र है आम आदमी से लगातार एवं जीवंत संपर्क। राजनीति के सभी मंत्रों
को आत्मसात कर उनका अनुसरण करने वाले हरवंश सिंह ने भी 90 के दशक में उस समय
की सबसे ज्यादा लोकप्रिय, टिकाऊ, मजबूत राजदूत मोटर सायकिल खरीदा, चूंकि यह मोटर
सायकिल अमूमन काले रंग की आती थी, अतरू यह आमजन के बीच काली राजदूत के नाम से
लोकप्रिय थी।
90 के दशक में हरवंश सिंह की माली हालत का
अंदाज सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उक्त काली राजदूत एक प्रतिष्ठित
बैंक से लोन लेकर खरीदा था, उस जमाने में उक्त राजपूत की कीमत 20 हजार रूपए से
ज्यादा की नहीं थी। मजेदार बात तो यह है कि उक्त काली राजदूत के लिये बैंक से लिये
गये लोन की किस्त हरवंश सिंह आने वाले कई वर्षों तक नहीं चुका पाये।
यह भी शोध का विषय
है कि काली राजदूत की मामूली किस्त पटाने में असमर्थ ठाकुर हरवंश सिंह आज लाखों की
पजेरो गाड़ी में घूमकर लोगों से जीवंत संपर्क बना रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि
हरवंश सिंह को भी बड़ी और महंगी गाड़ी रखने का शौक है एवं पजेरो गाड़ी जैसी कुछ और
गाडिय़ा उनके परिवार एवं व्यवसायिक पार्टनरों के पास है।
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