हर्बल खजाना
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शतावरी: सौ जडों
वाली बूटी
(डॉ दीपक आचार्य)
अहमदाबाद (साई)।
शतावरी की जड उँगलियों की तरह दिखाई देती है जिनकी संख्या लगभग सौ या सौ से अधिक
होती है और इसी वजह से इसे शतावरी कहा जाता है। यह एक बेल है जिसका वानस्पतिक नाम
एस्पेरेगस रेसीमोसस है। इसकी जडों मे सेपोनिन्स और डायोसजेनिन जैसे महत्वपूर्ण
रसायन पाए जाते है।
इसके पत्तों का
सत्व कैंसर में उपयोगी है। पत्तों का रस (लगभग २ चम्मच) दूध में मिलाकर दिन में दो
बार लिया जाए तो यह शक्तिवर्धक होता है। यदि पेशाब के साथ खून आने की शिकायत हो तो, शतावरी की जडों का
एक चम्मच चूर्ण, एक कप दूध
में डालकर उबाला जाए और शक्कर मिलाकर दिन में तीन बार सेवन किया जाए तो तुरंत आराम
मिलना शुरू हो जाता है।
यह फ़ार्मुला
रक्तपित्त जैसी समस्याओं के लिए भी सार्थक है। प्रसूता माता को यदि दूध नही आ रहा
हो या कम आता हो तो शतावरी की जडों के चूर्ण का सेवन दिन में कम से कम ४ बार अवश्य
करना चाहिए। पातालकोट के आदिवासी जडों का चूर्ण पुरूषों मे शारीरिक दुर्बलता, शुक्राणुओं की कमी, वीर्य का पतलापन, और नपुँसकता जैसे
दोषों के लिये देते है। सामान्यतरू इन दोषों में जडों के चूर्ण का सेवन दूध में
उबालकर या गुनगुने पानी के साथ करने की सलाह दी जाती है।
डाँग (गुजरात) के
आदिवासियों का मानना है कि शतावरी की जडों के चूर्ण का सेवन बगैर शक्करयुक्त दूध
के साथ लगातार किया जाए तो मधुमेह के रोगीयों को काफ़ी फ़ायदा होता है। टी. बी. होने
की दशा में मूल का एक चम्मच चूर्ण दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लेने से फ़ायदा मिलता
है। आदिवासियों के अनुसार उत्तम स्वास्थ्य, बुद्धि, शक्ति, शुक्राणुओं की
दुर्बलता आदि के लिये शतावरी से बेहतर कोई जडी-बूटी नहीं है। (साई फीचर्स)
(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ
हैं)
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