शनिवार, 28 जुलाई 2012

रमजान में रोजा रखें पर बरतें सावधानी


रमजान में रोजा रखें पर बरतें सावधानी

(ज़ाकिया ज़रीन)

हैदाराबाद (साई)। मुसलमानों के पवित्र माह रमजान में दिल के रोग और मधुमेह का शिकार मरीज खास सतर्क रहें क्योंकि इस दौरान रमजान के खास पकवानों कुल्चा ,नहारी, शीरमाल ,कबाब और बिरयानी आदि, के प्रति उनकी दीवानगी और उनकी दवाओं के प्रति जरा भी लापरवाही उनके रोग को बढा सकती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर कर सकती है।
डाक्टरों का कहना है कि यूं तो ऐसे मरीज रोजा रख सकते हैं लेकिन इस दौरान वे अपने डाक्टर से लगातार सलाह मश्विरा करते रहें और खाने पीने के प्रति थोडी सावधानी बरतें। चिकित्सकों के अनुसार रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह पीडित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिये? चिकित्सकों ने बताया कि जो रोगी पहले दिल के हल्के दौरे के शिकार हो चुके हैं, वह रोजा रख सकते हैं क्योंकि तमाम शोध में देखा गया है कि रमजान में रोजा रखने के दौरान भी ऐसे रोगियों को उतना ही जोखिम रहता है जितना आम दिनों में। बस उन्हें अपने डाक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्र में थोडा सामंजस्य बिठा लेना चाहिये और खाने पीने में सावधानी बरतनी चाहिये।
चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ कहते है कि लेकिन जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड चुका है और उनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है, उन्हें रमजान के दौरान रोजे से परहेज रखना चाहिये क्योंकि ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पडती है साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरुरी है। लेकिन फिर भी अगर ऐसे रोगी रोजा रखना चाहते है तो वह बिना अपने डाक्टर की सलाह के कतई रोजा न रखें।
चिकित्सकों के अनुसार दिल के रोगियों को उनका डाक्टर उनकी पूरी जांच करने के बाद अगर रोजा रखने की इजाजत दे तो ही वह रोजा रखें। बिना डाक्टर की सलाह के रोजा रखना उन मरीजों के लिये खतरनाक हो सकता है जिनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है। चिकित्सक कहते हैं कि जो जन्म से मधुमेह, टाइप वन, के रोगी हैं और इंसुलिन लेते हैं उन्हें रोजा रखने से बचना चाहिये क्योंकि अगर वह इंसुलिन नही लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर, ब्लड शुगर लेवल, बढ जायेगा और उनकी हालत खराब हो सकती है।
एक चिकित्सक ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि इसी तरह जिन लोगों को उनके रहन सहन के कारण मधुमेह, टाइप टू, हुआ है वे रोजा रख सकते हैं लेकिन इसके लिये उन्हें काफी सावधानी बरतनी होगी। उन्हें अपने खाने पीने का तरीका बदलना होगा। ऐसे लोगों को सुबह सहरी में पर्याप्त खाना खा लेना चाहिये और उसके साथ अपनी दवायें ले लेनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिये कि ऐसे रोगी जो भी खाना खायें वह ज्यादा तला भुना न हो और अगर मांसाहार लेते हैं तो वह बहुत कम मात्र में लेना चाहिये तथा काफी कम तेल मसाले में बना हुआ होना चाहिये।
एक अन्य चिकित्सक ने कहा कि इफ्तार के समय भी ऐसे रोगियों को एकसाथ पूरा खाना नहीं खा लेना चाहिये बल्कि थोडे बहुत फल और फलों का जूस लेना चाहिये और कुछ और हल्की फुल्की खाने की चीजें ले कर तुरंत दवा ले लेनी चाहिये। इसके एक घंटे बाद ही ऐसे रोगी पूरा खाना खाएं लेकिन वह भी ज्यादा तला भुना न हो, जहां तक हो सके वे सादा खाना ही खाएं।
माना जाता है कि रमजान के दौरान दिल की बीमारी और मधुमेह से पीडित रोगियों को अपने खान पान पर थोडा नियंत्रण रखना चाहिये। रमजान के दिनों में चूंकि कुल्चा नहारी से लेकर कबाब पराठा,शीरमाल और बिरयानी जैसे अनेक पकवान बनते हैं इसलिये खास तौर पर ध्यान रखना चाहिये।
देखा गया है कि लोग रमजान में दिन भर रोजा रखते हैं और शाम को ये पकवान खाते हैं जिससे उनका कोलेस्ट्रोल और रक्तचाप के साथ साथ खून में शर्करा का स्तर ( ब्लड शुगर लेवल ) बढने की आशंका बनी रहती है जो उनके दिल के लिये फायदेमंद नही है। वह कहते हैं कि अगर दिन में रोजा रखने के दौरान कमजोरी महसूस हो तो तुरंत लेट कर आराम कर लेना चाहिये।
जानकारों का कहना है कि जिन लोगो को दिल के रोगों के साथ मधुमेह भी है उन्हें इस तरह के तेल और रोगन वाले कुल्चा नहारी, कवाब बिरयानी और चिकन करी जैसे खादय पदार्थाे से बिलकुल बचना चाहिये क्योंकि यह आपके रक्त में शर्करा का स्तर तो बढा ही देते है साथ ही कोलेस्ट्रोल का स्तर भी बढा देते हैं।

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