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में कैसे बन रहा पावर प्लांट . . . 15
पीसीबी सरकार का या
गौतम थापर का!
(सुरेंद्र
जायस्वाल)
जबलपुर (साई)। मध्य
प्रदेश में प्रदूषण को नियंत्रित रखने के लिए गठित किए गए प्रदूषण नियंत्रण मण्डल
के आला अधिकारी आखिर प्रदूषण नियंत्रित करने का काम कर रहे हैं या देश के मशहूर
उद्योगपति गौतम थापर की देहरी पर कत्थक कर रहे हैं? जी हां, संचार क्रांति के
इस युग में एमपीपीसीबी की आधिकारिक वेबसाईट कुछ यही बयां करती नजर आ रही है।
एमपीपीसीबी की वेब
साईट पर देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी
प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी से महज
सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य ग्राम बरेला में लगाए जा रहे पावर
प्लांट की संस्थापना लगभग आधी हो चुकी है और संयंत्र के पहले और दूसरे चरण की
लोकसुनवाई के बारे में वेब साईट का नजरिया अस्पष्ट ही नजर आ रहा है।
ज्ञातव्य है कि 22
अगस्त 2009 को संपन्न पहली लोकसुनवाई की ना तो मुनादी पीटी गई और ना ही कहीं
प्रचारित किया गया। मजे की बात तो यह है कि इस लोकसुनवाई में पीसीबी की वेब साईट
मौन रही। बाद में हो हल्ला होने पर 17 अगस्त 2009 को इसकी कार्यवाही का विवरण डाला
गया। इस लोकसुनवाई का विवरण आज भी पीसीबी की वेब साईट पर अस्पष्ट और अपठनीय ही
प्रस्तुत किया गया है।
इस लोकसुनवाई में
600 मेगावाट के दो पावर प्लांट यानी कुल 1200 मेगावाट के पावर प्लांट को डालने की
बात कही गई थी। इसके उपरांत दूसरी जनसुनवाई 22 नवंबर 2011 को संपन्न हुई। यह
लोकसुनवाई संपन्न होने तक पीसीबी की वेब साईट पर डले कार्यकारी सारांश में 1200
मेगावाट की ही लोकसुनवाई बताया जा रहा था। बाद में इसे बदलकर 1260 मेगावाट कर दिया
गया।
आज लगभग 16 माह बीत
जाने के बाद भी एमपीपीसीबी की वेब साईट पर 22 नवंबर 2011 को संपन्न लोकसुनवाई में
उठाए गए मामले, मुद्दे, आपत्तियां आदि क्या
आईं और क्या एवं किस रूप में सरकार को प्रेषित की गईं हैं इस बारे में मध्य प्रदेश
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेब साईट मौन है, जिससे लगने लगा है मानो एमपीपीसीबी सरकार के
अधीन ना होकर गौतम थापर की मिल्कियत बन गया है।
(क्रमशः जारी)
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