विधि व्यवसाय पर खतरे के बादल
(ब्यूरो कार्यालय)
मुजफ्फरनगर (साई)। चौधरी चरण सिंह
विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति के निर्णय से विधि डिग्री के व्यवसायिक स्वरूप पर
खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। विश्वविद्यालय से संबंद्ध विधि कालेजों के छात्रों
में चिंता के साथ ही इस बात को लेकर रोष व्याप्त है कि परीक्षा समिति ने
विश्वविद्य़ालय के विधि संकाय अध्यक्ष के तर्को को नजरअंदाज कर एलएलबी पाठ्यक्रम
को व्यवसायिक पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया है। जिस कारण यदि वह विधि डिग्री प्राप्त
कर भी लेते हैं तो भी वह अदालतों में बतौर अधिवक्ता कार्य नहीं कर पायेंगे। ऐसी
आशंकाओं को विश्वविद्यालय के कुलपति यह कहकर खारिज कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं है।
चौधरी चरण सिंह विवि के 29 जनवरी 2013 को प्रशासनिक भवन में हुई परीक्षा
समिति की बैठक में कुलपति वीसी गोयल ने यह निर्णय बहुमत के आधार पर लिया था कि
विश्वविद्यालय में संचालित विभिन्न परम्परागत एवं स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त स्नातकोत्तर
पाठ्यक्रमों की द्वितीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर तथा स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रमों की
अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सत्र 2012-13 वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के आधार पर आयोजित
करायी जायेगी। बैठक में विश्वविद्यालय के विधि विभाग के संकाय अध्यक्ष डा. वाईपी
सिंह ने इस दायरे में एलएलबी तृतीय वर्ष की परीक्षाएं कराए जाने का यह कहकर विरोध
किया था कि एलएलबी एक व्यवसायिक डिग्री है लेकिन परीक्षा समिति ने उनके विरोध को
नजर अंदाज कर दिया था। विवि ने बीए, एलएलबी का पांच वर्षीय पाठ्यक्रम को तो
व्यवसायिक डिग्री मानते हुए पहले की तरह परीक्षा कराने की बात कही लेकिन एलएलबी
अंतिम वर्ष की परीक्षा वस्तुनिष्ठ आधार पर कराने का आदेश भी जारी कर दिया। मार्च
के अंतिम सप्ताह में शुरू होने जा रही विवि की परीक्षाएं जैसे ही निकट आ रही हैं
उससे विधि के हजारों छात्रों को अपने भविष्य की चिंता सताए जा रही हैं। खुद विधि
विभाग के शिक्षक भी छात्रों का यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यदि विवि ने अपना फरमान
वापस नहीं लिया तो वह एलएलबी करने के बावजूद बतौर अधिवक्ता वे व्यवसायिक कार्य
नहीं कर पायेंगे क्योंकि उनकी डिग्री एकेडेमिक मान ली गयी है। इस सम्बन्ध में सभी
विधि कालेजों के विभागाध्यक्ष भी कुलपति से मिले। जिन्होंने दो टूक शब्दों में कह
दिया कि परीक्षा समिति का निर्णय अटल है और वह एलएलबी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं
वस्तुनिष्ठ आधार पर ही करायेंगे। उन्हांेने इस बात का भी कोई जवाब नहीं दिया कि एक
विश्वविद्यालय एक ही डिग्री को बीए, एलएलबी के छात्रों के लिए जहां
व्यवसायिक और तीन वर्षीय पाठ्यक्रम वाले एलएलबी के छात्रों को एकेडमिक डिग्री कैसे
दे सकता है? अब बहुत से छात्र इस मुद्दे पर हाईकोर्ट जाने की तैयारी में है।
गौरतलब बात यह है कि चौधरी चरण सिंह
विश्वविद्यालय ने अब से पूर्व कभी भी कोई परीक्षा वस्तुनिष्ठ आधर पर (ओब्जेक्टिव
पैटर्न) पर नहीं करायी है। विरोध करने वाले छात्रों का यह भी कहना है कि परीक्षा
पैटर्न में यदि परिवर्तन करना था तो प्रथम वर्ष से किया जाना चाहिए। लेकिन
विश्वविद्यालय में उल्टी गंगा बहा रहे कुलपति अंतिम वर्ष के छात्रों से बदलाव लाने
पर आमादा है।
डीएवी कालेज विधि विभाग के पूर्व
विभागाध्यक्ष डा. वीके गर्ग का कहना है कि नये आधार पर अंतिम वर्ष की परीक्षा
कराने का दुष्परिणाम छात्रों का उठाना पडे़गा क्योंकि सब्जेक्टिव और ओब्जेक्टिव
पैटर्न में बहुत अंतर होता है। दो वर्ष तक सब्जेक्टिव परीक्षा देने वाले छात्र
अंतिम वर्ष की परीक्षा ओब्जेक्टिव ढंग से देकर संतुलित अंक नहीं पा पाये। अन्य
विधि शिक्षकों का भी मानना है कि परीक्षा समिति यह निर्णय लेने के लिए अध्किृत
नहीं थी क्योंकि बार काउंसिल ऑपफ इंडिया ने एलएलबी को व्यवसायिक डिग्री माना है और
कोई भी विश्वविद्यालय अपने स्तर से इसमे परिवर्तन नहीं कर सकते। दूसरी ओर कुलपति
डा. वीसी गोयल का कहना है कि निर्णय परीक्षा समिति का है जिसका उद्देश्य शिक्षा की
गुणवत्ता बढाना व छात्रा-छात्राओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना है।
उन्होंने कहा कि मूल्याकंन कम्प्यूटराईज्ड होने से छात्र छात्राओं को उनकी योग्यता
के अनुरूप ही अंक दिये जा सकेंगे वरना अब तक यूनिवर्सिटी में क्या होता आया है यह
कहने की आवश्यकता मुझे नहीं है।
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