गर्मी में खून के आंसू रूलाती
नगर पालिका
(शरद खरे)
अप्रैल महीने का पहला सप्ताह
बीतने को है। सदा की भांति शहर में पानी का संकट सर चढ़कर बोल रहा है। दशकों बीत गए
पर नगर पालिका प्रशासन द्वारा जिला मुख्यालय के निवासियों को शुद्ध पेयजल मुहैया
करवाने की योजना अब तक न तो बनाई गई है और न ही किसी योजना को पूरी तरह मूर्तरूप
ही दिया गया। नब्बे के दशक में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा सुआखेड़ा
जलावर्धन योजना का श्रीगणेश किया गया था। इसमें यह बात प्रमुख थी कि इसके आरंभ
होते ही जिला मुख्यालय के निवासियों को दिन में दो बार पर्याप्त पानी मिल सकेगा।
इस योजना के आरंभ हुए सालों बीत
गए पर दो तो क्या एक वक्त भी पर्याप्त पानी लोगों को मयस्सर नहीं हो पा रहा है।
पालिका हर बार बिजली के बिल, तो कभी जलकर की कम दरों का रोना
रोकर अपना पल्ला झाड़ने का असफल प्रयास करती है। कहते हैं कि जब राजेश त्रिवेदी ने
वर्तमान नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष की आसनी संभाली थी, उस वक्त उन्होंने शहर भर के सार्वजनिक नलों की सूची बुलवाई थी और
मातहतों को निर्देश दिए थे कि सार्वजनिक नलों को जिन्होंने अपने-अपने घरों के अंदर
कर लिया है, उनके नलों को काट दिया जाए। इस
पर अमल भी हुआ किन्तु चुन-चुनकर। उस वक्त जिन्होंने चुनाव में अध्यक्ष की मुखालफत
की थी उनके नलों को काट दिया गया था।
आज पानी के मामले में आज़ाद भारत में ब्रितानी
हुकूमत की यादें ताजा हो रही हैं। वयोवृद्ध हो चुकी पीढ़ी बताती है कि गुलामी के
दौर में घोड़ों पर बैठकर आने वाले ब्रितानी गोरों द्वारा साफ तौर पर कहा जाता था कि
पानी पिलाने की जवाबदेही गोरी सरकार की नहीं है। इसके परिणाम स्वरूप उस समय
घरों-घर, मोहल्ले-मोहल्ले कुएं बावली अस्तित्व में आई थीं। आज़ादी के बाद यह
व्यवस्था बदली। नगर पालिकाओं के जिम्मे नागरिकों को स्वच्छ पेयजल मुहैया करवाने की
जवाबदेही आहूत हुई।
वर्तमान में नगर पालिका परिषद
पूरी तरह निकम्मी ही साबित होती दिख रही है। नगर में पानी की त्राहि-त्राहि मची
हुई है और पालिका प्रशासन कुंभकर्णीय निंद्रा में सो रहा है। न तो अध्यक्ष को
चिंता है, न उपाध्यक्ष को और न ही चुने हुए पार्षदों को। विवेकानंद वार्ड में
पानी की दिक्कत को समझा जा सकता है। यहां पानी की सप्लाई फिल्टर प्लांट वाली टंकी
से होती है। पालिका के कारिंदों का कहना है कि यहां की टंकी से, पहले अध्यक्ष के निवास स्थान वाले वार्ड में पानी का प्रदाय होता है
उसके बाद विवेकांनद वार्ड में बचे खुचे पानी को भेज दिया जाता है। जाहिर है यहां
पानी की किल्लत होना ही है।
शहर में चार बड़े और दो छोटे
तालाब हैं। पालिका का ध्यान इस ओर कतई नहीं है। पालिका में तो निर्माण कार्य का
काम मुस्तैदी से संपन्न होता है। कहा जाता है कि कमीशन के ‘गंदे धंधे‘ के कारण यह होता है। वस्तुतः शहर
वासियों को पानी वह भी साफ पानी मुहैया करवाना पालिका की जवाबदेही है। बेहतर होगा
कि तालाबों के पास बोरिंग करवाई जाए जिससे यहां के नलकूप तालाब के पानी से रीचार्ज
हों एवं नागरिकों को टैंकर या ट्यूब वेल के माध्यम से साफ पानी मुहैया हो सके।
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