0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 17
महाकौशल के केद्र में होगा जबलपुर
नए राज्य के सारे कारक मौजूद हैं महाकौशल में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। प्रथक महाकौशल प्रांत के प्रस्तावित भौगोलिक क्षेत्र को अगर देखा जाए तो जबलपुर इस प्रांत का केंद्र ही साबित हो रहा है। नवीन सूबे या राज्य के लिए जिन कारकों की आवश्यक्ता होती है वे सभी जबलपुर प्रांत में मौजूद हैं। राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में प्रथक महाकौशल प्रांत का सपना अब तक साकार नहीं हो सका है।
देखा जाए तो जब भी सत्ताधारी दल की ओर से कहा जाता हो कि भूगोल व आवागमन प्राथमिकता नहीं होगी, भाषा प्राथमिकता होगी, तब वह दल कमजोर हो जाता है। इसके साथ ही साथ राज्य बनने की ताकत के अनेक कारक हैं। महाकौशल प्रांत में भी ये लागू होते हैं। भारत के भौगोलिक मध्य में होना, तीन अभयारण (कान्हा, पेंच, बांधवगढ) पौध-भिन्नता, जैव-विविधता, भाषाई- विविधता, संस्कृतिक-विविधता, सतपुडा -विंध्याचल व नर्मदा, उच्च न्यायालय, पर हानि पहुंचाने वाले कारक इनमें प्रमुख हैं।
महाकौशल का केंद्र जबलपुर है, जिसके चारों ओर राज्य व राज्य बनने की मांग है। जबलपुर से रायपुर-छत्तीसगढ की राजधानी। जबलपुर से भोपाल-मध्यप्रदेश की राजधानी। जबलपुर से नागपुर-विदर्भ की संभावित राजधानी है। जबलपुर से इलाहाबाद-पूर्वांचल की संभावित राजधानी है। जबलपुर से झांसी-बुंदेलखंड की संभावित राजधानी। सभी की दूरी लगभग 3॰॰ किलोमीटर है, 10 प्रतिशत ज्यादा या कम।
इन परिस्थितियों में जबलपुर केंद्र बिंदु के रूप में ताकतवर है, पर बंटवारा हो जाने पर सबसे कमजोर भी, क्योंकि सबके पास भाषा एवं क्षेत्र की ताकत है, जो महाकौशल के पास नहीं है। सागर यदि राज्य के अंदर रहे और महाकौशल का हिस्सा बने, तब विदिशा जिलेवासी मध्यभारत में रहना चाहेंगे, न कि महाकौशल में और यदि राज्य पुनर्गठन में वह बुंदेलखंड में जाता है, तब भी विदिशा जिलेवासी सहमत नहीं होंगे।
इस परिस्थिति में लोकसभा सीट दो राज्यों में हो नहीं सकती। ऐसी स्थिति में विषमता, दुविधा, असहमति एवं असंतुष्टि बनी रहेगी। इसी प्रकार खजुराहो, जो उत्तरप्रदेश की सीमा से जबलपुर जिले की सीमा तक है, तो कटनी जिलेवासियों के साथ भी दुविधा रहेगी। वे कहां जाएंगे? लोकसभा का क्षेत्र बंट नहीं सकता।
(क्रमशः जारी)
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