वर्ष २०११ में अर्थजगत की हलचल पर विशेष रिपोर्ट।
(राजीव सक्सेना)
नई दिल्ली (साई)। वर्ष २०११ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए उथल-पुथल और अनिश्चितता के लिए याद किया जाएगा। यूरोजोन में जारी ऋण संकट और दोहरी मंदी की आशंका से बाजार लगातार हिचकोले खाता रहा और निवेशक चिंतित बने रहे। देश में साल के शुरुआती महीनों में निर्यात में तो वृद्धि हुई लेकिन बाद के महीनों में कमी देखी गई।
देश में मुद्रास्फीति दर लगतार ऊंची बनी रही जिसकी वजह से रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कई बार बढ़ोतरी करनी पड़ी। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर घटकर छह दशमलव नौ प्रतिशत पर आ गई और एक डॉलर की तुलना में रूपया घटकर ५३ रूपये ७२ पैसे के रिकार्ड न्यूनतम स्तर पर आ गया। दिसम्बर में खाद्य मुद्रास्फीति चार वर्षों के न्यूनतम स्तर एक दशमलव आठ एक प्रतिशत पर आ गई।
सोना २९ हजार रूपये प्रति दस ग्राम से ऊपर पहुंच गया। हालांकि मुम्बई शेयर बाजार का सेंसक्स इस साल लगभग २५ प्रतिशत घाटे में रहा। लेकिन अर्थशास्त्री रूपा नितसुरै मानती हैं कि वर्ष २०१२ उम्मीदों से भरा रहेगा। २०११ में काफी इकनॉमिक वरीज थे, जो अब हमें लगता है कि इतने इंटेसिटी से २०१२ में नहीं दिखेंगे। एग्रीकल्चर प्रोड्क्शन हेल्दी है, रूरल डिमांड्स स्ट्रॉंग है।
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