अंबानीज के
प्रत्याशी!
(विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)। देश
में राष्ट्रपति चुनाव हो और देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने चुपचाप बैठकर तमाशा
देखें यह कैसे हो सकता है? इसलिए इधर दिल्ली में जब राष्ट्रपति के लिए नामों के निर्धारण
की कवायद शुरू हुई तो उधर मुंबई में देश के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों के मालिकान
भी अपनी अपनी ढपली लेकर तान लगाने चल पड़े. मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी ने अपनी
अपनी रणनीति पर काम किया. वैसे प्रणव मुखर्जी का नाम आने पर अनिल अंबानी कुछ खास
कर नहीं सकते थे लेकिन नेताजी ने कुछ पल ममता बनर्जी के साथ बिताकर दोनों भाईयों
के होश तो उड़ा ही दिये थे.
राजनीति में लंबे
अर्से से प्रणव मुखर्जी मुकेश अंबानी के चचा हैं. प्रणव दादा को रायसीना की पहाड़ी
पर सैर कराने के लिए जो कुछ लोग सोनिया गांधी को समझाने में नियुक्त किये गये थे
उसमें मुकेश अंबानी भी थे. मुकेश अंबानी कांग्रेस के अंदर इतने ताकतवर हैं कि दस
जनपथ जब भगवान की बात भी सुनने से इंकार कर देता है तब मुकेश अंबानी की बात मान ली
जाती है. ऐसा संभवतरू इसलिए क्योंकि पार्टी को चलाने का आर्थिक जिम्मा अघोषित रूप
से मुकेश अंबानी उठाते हैं और मुकेश अंबानी का व्यावसायिक साम्राज्य बढ़ाने का
अघोषित जिम्मा सोनिया गांधी की यूपीए सरकार उठाती है.
यह सोनिया, प्रणव और मुकेश का
ऐसा त्रिभुज था जिसे कोई काट नहीं सकता था और प्रणव बाबू को राष्ट्रपति पद का
उम्मीदवार घोषित होना ही था. महीनों पहले से मुकेश के करीबी लोग इस बात का संकेत
दे रहे थे कि देश का अगले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ही होंगे. लेकिन सबकुछ इतना
सीधा सपाट हो जाता तो अनिल अंबानी की अहमियत क्या रहती? वैसे तो उत्तर
प्रदेश में बेशुमार समर्थन लेकर सत्ता में पहुंचे नेताजी के प्रति भी मुकेश भाई की
सहानुभूति पैदा हो गई है लेकिन जब मुलायम सिंह यादव ने ममता बनर्जी के साथ मिलकर
प्रेस कांफ्रेस की तो राजनीतिक हल्कों में हल्की फुल्की चर्चा यह चल पड़ी कि छोटे
भाई ने बड़े भाई की योजनाओं में टांग अड़ा दिया. लेकिन रातोंरात सबकुछ मैनेज हो गया
और नेताजी ने भी प्रणव बाबू को समर्थन दे दिया. तब जाकर यह साफ हुआ कि पंडित प्रणव
मुखर्जी की राह आसान करने के लिए मुकेश अंबानी पूरा जोर लगा रहे हैं और फिलहाल
अनिल अंबानी कोई संकट नहीं बनने जा रहे हैं.
अपने आपको महात्मा
गांधी के ज्यादा करीब माननेवाले मुकेश अंबानी जिस मोढ़ समाज से आते हैं उसमें मोढ़
बनिया और मोढ़ ब्राह्मण पाये जाते हैं. खुद महात्मा गांधी भी मोढ़ बनिया था और मुकेश
अंबानी भी मोढ़ बनिया हैं जो कि खान पान और जीवनशैली में पूरी तरह से सात्विक और
वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी होते हैं. हालांकि मुकेश के कुछ करीबी उनके ब्राह्मण
होने का भी दावा करते हैं. इस दावे में कोई दम हो या न हो लेकिन इतना जरूर है कि
मोढ़ेरा के इस सफल व्यापारी को इतना पता है कि अपने मोढ़ समाज के नरेन्द्र मोदी और
उनके विरोधी सोनिया गांधी को एक साथ कैसे साध कर रखना है. तमाम विरोधियों को एक
साथ साधकर मुकेश अंबानी इतना अहसास तो करा ही रहे हैं कि आजादी के वक्त अगर मोढ़
समाज के एक व्यक्ति महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाई और सभी विरोधी विचारों को
एक साथ लेकर आगे बढ़े तो आजादी के बाद मुकेश अंबानी भी जरा दूसरे तरीके से ही सही, काम वही कर रहे
हैं.
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