गीतिकाओं से पटा
पड़ा है भारत देश
(लिमटी खरे)
जनसेवकों, राजनेताओं को
बैसाखी बनाकर आसमान की बुलंदियों को छूने की कोशिश में देश की ना जाने कितनी
अबलाओं ने अपनी जान गंवाई है। गीतिका के एन पहले अनुराधा के साथ भी कमोबेश एसा ही
हुआ। इतना ही नहीं राजस्थान में भंवरी देवी का हाल क्या हुआ यह जग जाहिर है। कहा
जाता है कि राजनेताओं को पैसा और सेक्स की कभी ना समाप्त होने वाली भूख ने परेशान
कर रखा है। देश के हृदय प्रदेश में सरला मिश्रा का हश्र भी एसा ही हुआ था। यूपी
में मधुमिता हत्याकांड को लोग अभी भूल नहीं पाए होंगे। दरअसल, नेताओं के आसपास के
ग्लेमर की चकाचौंध में महिलाएं राजनैतिक शिखर पर पहुंचने या धन कमाने के लिए
अनैतिक काम करने भी राजी हो जाती हैं। यही हाल निजी क्षेत्र की कंपनियों का है।
अनेक अश्लील वेब साईट्स में अश्लील वीडियो क्लिप्स में कार्पोरेट सेक्टर के इस
घिनौने पहलू को भी आसानी से देखा जा सकता है। वयोवृद्ध राजनेता नारायण दत्त तिवारी
भी अवैध संतान के पिता ही निकले।
कहा जाता है कि आम
आदमी पैसा और ताकत के पीछे भागता है। जिसके पास ये दोनों ही चीजें होती हैं, वह भागता है गरम
गोश्त के पीछे। दूसरों से बेहतर दिखने और बनने की चाहत में युवतियां एक अंधेरी
सुरंग में घुस तो जाती हैं, पर वे इससे बाहर नहीं निकल पाती हैं। उनका
दम इसके अंदर ही अंदर घुट जाता है। हाल ही में गीतिका शर्मा और अनुराधा उर्फ फिजा
की मौत से संस्कारों का देश कहे जाने वाले भारत गणराज्य में यक्ष प्रश्न यह उठकर
खड़ा हो गया है कि राजनीतिज्ञों के इस मकड़जाल से आखिर देश की महिलाएं कब मुक्त हो
पाएंगी।
जुलाई 1995 में दिल्ली में
नैना साहनी हत्याकांड ने सियासी मंच को हिलाकर रख दिया था। कांग्रेस के एक नेता
सुशील शर्मा ने अपनी ही पत्नि नैना साहनी को मारकर दिल्ली के एक मशहूर रेस्तरां
में तंदूर में जला दिया था। फिजा और गीतिका की मौत ने साफ कर दिया है कि सियासी
गलियारे में एक बार घुसने के बाद कम से कम महात्वाकांक्षी महिलाओं के लिए निकलने का
कोई द्वार नहीं है। सियासी गलियारा इनके लिए वनवे ट्रेफिक से कम नहीं है।
गीतिका शर्मा ने
आत्महत्या के पहले यह इबारत लिख दी थी कि गोपाल गोयल कांडा एक धोकेबाज और धूर्त
आदमी है। गीतिका का कहना था कि कांडा एक एसा आदमी है जो संबंधों और भगवान के नाम
की दुहाई देकर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करता है। कांडा झूठा और मक्कार है।
गीतिका का कहना था कि उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल यह थी कि उसने कांडा पर यकीन
किया।
कांडा था तो चालबाज, वरना कैसे इतने कम
समय में एक चप्पल के साधारण व्यवसाई से हरियाणा जैसे संपन्न प्रदेश का गृह मंत्री
बन जाता। कांडा के पास इस वक्त आकूत दौलत बताई जाती है। कांग्रेस की सरकार को
दिल्ली की नाक के एन नीचे हरियाणा में इतनी दौतल रातों रात एकत्र होने की खबर ना
लग पाना आश्चर्यजनक ही है। इसके पहले हरियाणा के फरीदाबाद से सांसद अवतार सिंह
भड़ाना पर भी लोगों को परेशान करने और अवैध उत्खनन के आरोप लग चुके हैं।
सेक्स स्केंडल्स के
बारे में हरियाणा का कोई सानी नहीं है। इसके पहले हरियाणा के उपमुख्यमंत्री चंद्र
मोहन और फिजां के संबंधों का पटाक्षेप भी बेहद दर्दनाक और डरावना ही हुआ है।
अनुराधा बाली उर्फ फिजा एक महत्वपूर्ण ओहदे पर थी। पर, उसके मन में सियासी
बियावान में टहलने की इच्छा जोर मार रही थी। उसकी मंशा चुनाव लड़ने की थी।
चंद्र मोहन ने चांद
मोहम्मद तो अनुराधा को फिजा बना दिया था कथित प्यार ने। दरअसल, मुसलमानों में एक
विवाह से ज्यादा वैध हैं। इसलिए दोनों ने मुस्लिम धर्म अंगीकार किया और फिर कर
लिया निकाह। इनका हनीमून भी समाप्त नहीं हुआ और दोनों में अलगाव हो गया।
जब अलगाव हुआ, तब उसने
फिजा-ए-हिंद नाम से राजनीतिक पार्टी भी बनायी। पर अंततः वह अतिमहात्वाकांक्षा का
शिकार हो गई। कुछ लोगों का मानना हो सकता है कि फिजां की राजनैतिक
महात्वाकांक्षाएं थीं। किसी नेता के संपर्क में आकर उसका जलजला देखकर इस तरह की
महात्वाकांक्षाएं पलना स्वाभाविक ही है। इस जोड़े की इस प्रेमकथा का अंत फिजा का
सड़ा गला शव उसके निवास पर मिलना ही था।
राजनैतिक भंवर में
राजस्थान की भंवरी देवी फंसी और अपनी देह त्यागना पड़ा। कहते हैं बला की खूबसूरत एक
नर्स पर आ गया राजस्थान सरकार के एक मंत्री का दिल। फिर क्या था कुछ समय चला
शारीरिक दोहन का मामला। राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा और
कांग्रेसी विधायक मलखान बिश्नोई ने भी भंवरी देवी के साथ वही किया।
अपने तबादले के
चक्कर में भंवरी की मुलाकात मलखान से हुई। चूंकि चुनाव जीतने में साम, दाम, दण्ड भेद की नीति
अपनाई जाती है। अतः यह मान लिया जाता है कि जो जीता है वह चलता पुर्जा होगा ही।
अपनी बातों में मलखान ने भंवरी को फंसा लिया। फिर धीरे धीरे मलखान ने भंवरी का यौन
शोषण आरंभ किया, और यह
सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा।
यहां एक बात गौरतलब
है कि भंवरी कुछ चालाक थी। उसने अपने यौन शोषण का वीडियो बना लिया और फिर उसने
ब्लेक मेल आरंभ किया। यही वीडियो भंवरी की मौत का कारण बना। इस संबंध में वाम
सांसद वृंदा करात काफी आहत हैं और वे कहती हैं कि क्या नेताओं, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को भारतीय
संविधान से कुछ खास छूट मिली हुई है कि वे महिलाओं के साथ उन्मुक्त होकर संबंध
बनाएं और जब मन भर जाए तो फिर उनकी हत्या कर दें या आत्महत्या के लिए प्रेरित कर
दें।
मध्य प्रदेश में
राजा दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में कांग्रेस की युवा नेत्री सरला मिश्रा
ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। सरला मिश्रा भी खूबसूरत और समझदार व्यक्तित्व
की स्वामी थीं। उस समय काफी हो हल्ला मचा पर समय के साथ ही सारी की सारी बातें
गर्त में दब गईं।
मध्य प्रदेश में ही
बालाघाट जिले में हाल ही में एक बड़ा सेक्स स्केंडल हुआ है। जिसमें आकाशवाणी, दूरदर्शन से संबद्ध
एक पत्रकार, पुलिस के
कर्मचारी और उसकी पत्नि शामिल थी। यह सेक्स रेकिट लोगों को फंसाता फिर वीडियो
बनाकर उसे लूटता था। कहा जाता है कि इसमें भी काफी नेताओं के वीडिया मिले थे, जिसे पुलिस ने शायद
दबा दिया है।
प्रेम प्रसंग जब तक
छुपा रहे तब तक सब कुछ ठीक ठाक रहता है। सार्वजनिक होने पर इसका अंत बेहद डरावना
ही होता है। वैसे कहते हैं इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। मधुमिता हत्याकांड ने
इस बात को साबित ही किया है। आपराधिक चरित्र वाले राजनेता अमरमणि त्रिपाठी के साथ
अपने संबंधों के लिए मधुमिता खासी चर्चित हुई थीं।
मई 2003 में मधुमिता को
गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया गया। वह भी तब जब मधुमिता के पेट में
अमरमणि का बच्चा पल रहा था। हत्या के आरोप में त्रिपाठी और उसकी पत्नी जेल में हैं।
इसके पांच साल बाद उत्तर प्रदेश में ही पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव को फैजाबाद की
एक दलित लड़की शशि के अपहरण और हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया। शशि की बहन
अनिता ने बताया कि उसकी बहन गर्भवती थी और उसने यादव को शादी करने के लिए कहा था।
राजनैतिक रसूख वाले
लोगों का प्रिय शगल बन चुका है अबला हो या सबला सभी का यौन शोषण। दरअसल, राजनैतिक रसूख
वालों के पास पावर और पैसा दोनों ही होते हैं। इन्ही दोनों अस्त्रों के सहारे
धनपति लोग बालाओं को अपनी ओर आकर्षित कर ग्लेमर में फांसते हैं, फिर उनका दैहिक
शोषण कर कूडे में डाल देते हैं। अगर बात उछलती भी है तो अपने प्रभाव के बल पर उसे
दफन करवा देते हैं। कुछ ही मामले एसे होते होंगे जो ज्यादा बढ़ जाने पर जनता के
सामने आते हों, वरना तो सब
कुछ दफन, और रही बात
मीडिया की तो वह भी दूध का धुला नहीं बचा है अब। (साई फीचर्स)
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