बुधवार, 22 अगस्त 2012

मुंबई हिंसा की आड में राज ‘नीति’


मुंबई हिंसा की आड में राज नीति

(लिमटी खरे)

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सुप्रीमो राज ठाकरे को जब भी मौका मिलता है वे उसका बेहतरीन इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में मुंबई हिंसा पर राजनैतिक रोटियां सेंककर उन्होंने दिखा दिया है कि वे ही असली शेर हैं। शर्मीले उद्धव ठाकरे बेहतरीन मौकों पर चुप्पी ही साधे रहते हैं। गिरीगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक रैली निकालकर राज ठाकरे ने अंततः साबित कर ही दिया है कि मुंबई पुलिस का खुफिया तंत्र जर्जर होकर सडांध मार रहा है। या तो राज्य सरकार ठाकरे ब्रदर्स के कदमों में कत्थक कर रही है या फिर अंडर वर्ल्ड के निशाने पर रहने वाली मुंबई का गुप्तचर सिस्टम समाप्त हो चुका है। ठाकरे ब्रदर्स जब चाहे तब शेर की तरह दहाड़ते हैं और कांग्रेस भीगी बिल्ली बनकर म्याउं म्याउं करती नजर आती है। ठाकरे ब्रदर्स की हरकतों को देखकर लगता है मानो मुंबई देश का हिस्सा ही नहीं है। देश का कानून यहां लागू ही नहीं होता है।


यह पहला मौका नहीं है कि जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मुंबई में दहाड़ लगाई हो। उत्तर भारतियों के प्रति अपने मन में भरे जहर को निकालकर राज ठाकरे द्वारा ना जाने कितनी बार माहौल में गंदगी घोलने का कुत्सित प्रयास किया है। ना जाने कितनी बार उत्तर भारत के निवासियों को मुंबई से भागकर वापस घरों में दुबकना पड़ा। बाला साहेब ठाकरे के बाद चीखने चिल्लाने का जिम्मा उनके भतीजे राज के उपर आ गया लगता है। हालत देखकर लगता है मानो मुंबई भारत गणराज्य का अंग ना हो, यहां ठाकरे ब्रदर्स की मिल्कियत चलती हो।
आमची मंबईके नारे के साथ पहले शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे तो अब उनके वंशज राज ठाकरे द्वारा अखंड भारत में क्षेत्रीयता और जात पात का ज़हर बोया जा रहा है, जो निश्चित रूप से निंदनीय कहा जाएगा। उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय की जंग के बीच अब उत्तर भारतीय बनाम मुंबई के झगड़े का सूत्रपात डेढ़ दशक पहले उस समय हो गया था, जब शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे ने मराठियों को एकत्र करने का अव्हान किया था।
मुंबई महानगर पालिका पर शिवसेना का कब्जा हुआ फिर राज्य सरकार में भागीदारी। एक के बाद एक सधे कदमों से चलते शिवसेना के सुप्रीमो वाकई महानायक बन गए। उस समय तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों की अनदेखी ही कही जाएगी कि क्षेत्र वाद का वह बीज आज बट वृक्ष में तब्दील हो चुका है, जिसकी शाखाएं चारों और फैलकर समूचे महाराष्ट्र को झुलसा रही हैं।
अपने आप को राष्ट्र के प्रति समर्पित बताने वाले राज ठाकरे यह भूल जाते हैं कि उनकी सोच ही पूरी तरह गलत है। जो व्यक्ति जात पात या क्षेत्रवाद में विश्वास रखता हो वह राष्ट्रभक्त कैसे हो सकता है। यहां शाहरूख खान अभिनीत चलचित्र चक दे इंडियाके उस दृश्य का जिकर लाजिमी होगा जिसमें महिला हाकी टीम से परिचय के दौरान कोच के किरदार में शाहरूख द्वारा टीम के सदस्योें द्वारा अपने अपने नाम पर अपत्ति जताते हुए उन्हें सिर्फ भारतीय होने की समझाईश दी जाती है। कहने का तात्पर्य महज इतना ही है कि सबसे पहले देश फिर प्रांत या जात पात का नंबर आता है।
कितने आश्चर्य की बात है कि एक प्रांत का रहने वाला दूसरे प्रांत में जाकर रोजी रोजगार के लिए जतन नहीं कर सकता है। आजादी के दीवानों ने भी आजाद भारत की इतनी घिनौनी तस्वीर की कल्पना नहीं की होगी, जो राज एण्ड कम्पनी ने केनवास पर उकेरी है। राज से ज्यादा दोषी तो राज्य और केंद्र सरकार है। सरकारों के लिए जान माल की सुरक्षा अहम मुद्दा है, किन्तु शिवसेना को किनारे करने की गरज से परोक्ष रूप से सरकारों द्वारा राज को खुला संरक्षण दिया जा रहा है।
बहरहाल जिन शिवाजी महराज के नाम को लेकर इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया गया है, उनके यृद्ध के केंद्र मुंबई न होकर रायगढ़ हुआ करते थे। इसी तरह पेशवाओं की गतिविधियों का केंद्र भी पूना रहा है। फिर किस आधार पर मुंबई को राज अपनी बपौती बता रहे हैं। वैसे भी मुंबई पर पहले पुर्तगालियों का कब्जा था, बाद में 17वीं सदी में यह अंग्रेजों के कब्जे में आई थी।
वैसे भी मुंबई के मूल निवासी कोली समुदाय के लोग थे, जिनके सरनेम सांधे, नाखवा, तांदले, भान्जी, भोईरे आदि थे। उत्तर भारतियों को निशाना बनाने के पहले शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे और मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे शायद यह भूल जाते हैं कि उत्तर भारतियों के कड़े श्रम के चलते ही मुंबई औद्योगिक मानचित्र में स्थान पा सकी है। आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो मुंबई की लगभग दो करोड़ की आबादी में पेंतीस फीसदी अर्था सत्तर लाख की आबादी उत्तर भारतियों की है।
यहां एक बात का जिकर लाजिमी होगा कि बकौल राजा दिग्विजय सिंह, बाला साहेब ठाकरे मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के मूल निवासी हैं। इस लिहाज से वे मंुबईकर नहीं हैं। दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश पर दस साल लगातार राज किया है, इस लिहाज से उनकी जानकारी गलत नहीं मानी जा सकती है।
यह बात सच है कि मंुबई के बाहर वालों पर आतंक बरपाने वाले ठाकरे ब्रदर्स ही अगर मंुबई के मूल निवासी नहीं हैं, तो वे किस अधिकार से मुंबई को आपली मुंबई कहकर मराठा मानुष को भडका रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो ठाकरे ब्रदर्स मुंबई के लिए उसी तरह के प्रवासी हैं, जिस तरह अन्य लोग बाहर से जाकर मुंबई में बसे हैं।
मराठी मूल के ठाकरे ब्रदर्स अगर वाकई अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने कृत संकल्पित हैं, तो उन्हें सबसे पहले मध्य प्रदेश और बालाघाट जिले के लिए कुछ करना चाहिए। वस्तुतः ठाकरे ब्रदर्स एसा करेंगे नहीं क्योंकि एसा करने से उन्हें राजनैतिक तौर पर कुछ लाभ होने वाला नहीं है।
मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित मछुआरों के सम्मेलन में दिग्विजय सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया। वैसे देखा जाए तो मुंबई मूलतः कोलियों और मछली पकडकर जीवन यापन करने वाले मछुआरों का शहर है, जिस पर बाद में पारसी और गुजरातियों ने अपना वर्चस्व बना लिया था।
नब्बे के दशक में शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने मराठा कार्ड चलकर आतंक बरपाया और मुंबई पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस ने अपने नफा नुकसान को देखते हुए बाला साहेब को आतंक बरपाने की पूरी छूट दी थी, जिसका नतीजा है ठाकरे ब्रदर्स का जातीवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर होने वाला तांडव।
राज ठाकरे जब बाला साहेब ठाकरे के मातोश्री की मांद से बाहर निकले तब बाला साहेब को कमजोर करने के लिए सियासतदारों ने एक बार फिर वही पुरानी चाल चली और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जनक राज ठाकरे को आतंक बरपाने की पूरी छूट दे दी। ठाकरे ब्रदर्स ने मुंबई में उत्तर भारतीयों का जीना मुहाल कर रखा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।
यह सच है कि धन दौलत और शोहरत उगलने वाले क्रिकेट पर मुंबई का कब्जा रहा है, पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि शेष भारत के खिलाडियों को इस खेल को खेलने का कोई हक नहीं है। बाला साहेब ठाकरे एण्ड कंपनी सचिन को मराठों को आगे नहीं बढाने पर लानत मलानत भेज रहे हैं, जिसकी चहुंओर तीखी प्रतिक्रिया है। ठाकरे का अगर बस चले तो वे क्रिकेट जेसे लोकप्रिय खेल को मुंबई की बपौती बना डालें।
समूचे महाराष्ट्र में वेमनस्य फैलाने का काम करने वाले ठाकरे ब्रदर्स का ‘‘सामना‘‘ का प्रकाशन प्रतिबंधित कर देना चाहिए। शिवसेना और मनसे का आतंक इतना अधिक है कि सामना में छपे आलेखों को महाराष्ट्र में किसी निजाम के फरमान से कम नहीं माना जाता है।
मुंबई के हालात देखकर लगता है मानो 1947 में भारत देश आजाद हुआ है पर इस अखण्ड भारत के नक्शे में मुंबई नहंी है। भारत गणराज्य का कानून देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में लागू नहीं होता है। मुंबई में चलता है ठाकरे ब्रदर्स का अपना कानून। यह है पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा और राजीव गांधी के सपनों का इक्कीसवीं सदी का भारत, जिस पर नेहरू गांधी खानदान की चौथी और पांचवीं पीढी राज कर रही है।
बहरहाल अगर दिग्विजय सिंह सच कह रहे हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले का मूल निवासी है तो निश्चित तौर पर बालाघाट के निवासी फक्र के बजाए अपने आप को शर्मसार पा रहे होंगे कि महाराष्ट्र प्रदेश को अलगाववाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद की आग में झोंकने वाले ठाकरे ब्रदर्स बालाघाट की भूमि पर पैदा हुए हैं।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के राज में राजनीति सब पर हावी हो चुकी है। मनसे के आताताईयों के चलते मुंबई और आसपास जिंदगी थम सी गई है। उत्तर भारतीय मंबई में अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। विडम्बना देखिए अपने ही घर में अपने ही वतन में एक प्रांत का निवासी दूसरे प्रांत में रहकर खौफज़दा है, और कांग्रेस नीत कंेद्र और प्रदेश सरकार नीरो की ही मानिंद चैन की बंसी बजा रही है। (साई फीचर्स)

कोई टिप्पणी नहीं: