भ्रष्टाचार रोकने
के बजाए उसके प्रचार प्रसार रोकने की अपील हास्यास्पद!
(लिमटी खरे)
संप्रग की दूसरी
पारी ने देश को शर्मसार किया है यह बात किसी से छिपी नही है। यूपीए वन के कार्यकाल
के घोटालों को यूपीए टू में हवा मिली और देश भर में छा गया भ्रष्टाचार का मुद्दा।
कहा जाता है कि जैसे ही कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में
कांग्रेस के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह को घर बिठाया वैसे ही यूपीए के भ्रष्टाचार
के मामले सामने आना आरंभ हो गए। दक्षिण भारत की एक वेब साईट ने तो बाकायदा कुंवर
अर्जुन सिंह के नाम का उल्लेख कर यह लिखा था कि ये सारे मामले अर्जुन सिंह को नजर
अंदाज करने का ही परिणाम है। भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर
बैठे मनमोहन सिंह से यह उम्मीद तो कतई नहीं की जाती है कि वे भ्रष्टाचार पर अंकुश
लगाने के बजाए भ्रष्टाचार और नकारात्मक बातें ना करने की अपील करें। दरअसल, मीडिया पर तो सरकार
विज्ञापन का डर बताकर अंकुश लगा सकती है पर सोशल मीडिया अर्थात सोशल नेटवर्किंग
वेबसाईट्स पर लोगों को भावनाएं व्यक्त करने से रोकना दुष्कर उस वक्त है जब ट्विटर
जैसी साईट पर खुद मनमोहन सिंह अपने अपडेट्स देते हों। भारतवासी खुद फैसला करें कि
क्या भारत गणराज्य इतना कमजोर हो गया है कि देश का प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार रोकने
की बजाए उसके प्रचार प्रसार को रोकने की अपील करे!
भ्रष्टाचार के
ईमानदार संरक्षक की अघोषित उपाधि पाने वाले भारत गणराज्य के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन
सिंह इस समय खुद एवं यूपीए सरकार पर होने वाले भ्रष्टाचार के हमलों से बुरी तरह
आहत और घबराए हुए हैं। विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में उनकी जुबान कुछ इस
तरह फिसली कि वह देश में चर्चा का विषय बन गई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का
कहना है कि बिना सोचे समझे नकारात्मकता और निराशावादी दुष्प्रचार से कुछ नहीं होने
वाला है। पीएम का कहना है कि भ्रष्टाचार की वजहों की तह में जाए बिना उसका प्रचार
प्रसार विश्व भर में भारत की छवि को धूमिल कर रहा है।
विज्ञान भवन में
आयोजित सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो के 19वें सम्मेलन में को प्रधानमंत्री ने कहा कि
भ्रष्टाचार निरोधक कानून में सिर्फ भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के मकसद से
संशोधन नहीं किया जा रहा। बल्कि इसका मकसद कानून में मौजूद उन कमियों को भी दूर
करना है जिसका फायदा उठाकर भ्रष्टाचारी नए-नए हथकंडे अपनाते हैं। उन्होंने कहा कि
वैश्वीकरण के इस दौर में देश को ऐसे कानूनी प्रावधानों की जरूरत है जिससे
भ्रष्टाचार के अंतरराष्ट्रीय फैलाव को भी रोका जा सके। इसके लिए कॉरपोरेट कंपनियों
को भी कानूनी तौर पर जिम्मेदार ठहराने की दिशा में भी काम चल रहा है। मनमोहन सिंह
ने कहा कि घूस लेने-देने के मामले में घूस देने वाला अक्सर बच कर निकल जाता है।
मनमोहन सिंह के
मुताबिक खुली बाजार व्यवस्था के आने के बाद देश में कई नई तरह के भ्रष्टाचार पनपे
हैं। सरकार मौजूदा कानून में संशोधन कर भ्रष्टाचार की सभी संभावनाओं को खत्म करने
की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रही है। अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल
जैसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के बीच प्रधानमंत्री ने
यह भी साफ किया कि भ्रष्टाचार के नकारात्मक प्रचार से काम करने वाले ईमानदार लोग
बुरी तरह हतोत्साहित होते हैं। ऐसे में प्रचार के बजाए भ्रष्टाचार की वजहों पर चोट
करना ज्यादा जरूरी है और सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री के
मीडिया एडवाईजर पंकज पचौरी देश के शीर्ष मीडिया को साधने में असफल ही साबित हो रहे
हैं, वहीं दूसरी
ओर सोशल मीडिया (सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स) पर प्रधानमंत्री की ईमानदारी की उड़ती
धज्जियों से वे बेहद घबराए दिख रहे हैं। इन वेब साईट्स पर मनमोहन सिंह को परोक्ष
तौर पर ईमानदार के बजाए ‘भ्रष्टाचार का ईमानदार संरक्षक‘ ही बताया जा रहा
है।
मनमोहन सिंह भूल
जाते हैं कि देश के चुनिंदा संपादकों की टोली के साथ बैठकर उन्होंने अपने आपको
मजबूर बताया था। उस वक्त प्रधानमंत्री ने राष्ट्र धर्म से बड़ा गठबंधन धर्म का
सिद्धांत प्रतिपादित किया था, जिसे संपादकों की टोली ने परोक्ष तौर पर एक
चाय के एहसान तले दबकर सराहा था।
मनमोहन सिंह की
सरपरस्ती में देश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को हवा में उड़ाया जाता रहा है। ना
जाने कितने घपले घोटाले सामने आए। कामन वेल्थ, टूजी, सीएजी, के बाद अब तो
जीजाजी यानी राबर्ट वढेरा का घोटाला भी छाया हुआ है। सलमान खुर्शीद पर विकलांग
बच्चों के पैसे खाने का आरोप है।
लाखों करोड़ रूपयों
के घोटाले हो गए, फिर मनमोहन
सिंह ने आठ सालों में पहली बार (स्वतंत्रता दिवस को छोड़कर) देश को संबोधित कर डीजल, पेट्रोल रसोई गैस
आदि की कीमतें बढ़ाने को मजबूरी बताया। मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री हैं, वे जानते हैं कि
जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से अर्जित राजस्व ही सरकार का कोष होता है। इसी कोष से
सरकार खर्च चलाती है। अब सरकार के कोष में मनमोहन सिंह के दमादों (कांग्रेस और
सहयोगी दलों के नेताओं) ने आग लगा दी। कोष खाली हो गया तो फिर उसे भरने के लिए
करारोपण कहां तक उचित है।
पहले मीडिया को
साधकर सरकार अपनी मुगलई चला लेती थी, किन्तु अब सोशल नेटवर्किंग बेव साईट्स के
कारण सरकार एसा किसी काम को चुपचाप अंजाम नहीं दे पाती है। जनता के सामने सच्चाई
आई तो जनता का आक्रोश उबलना स्वाभाविक ही है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स पट गईं
मनमोहन सिंह, सोनिया और
इनकी मण्डली के भ्रष्टाचार के कारनामों से।
वेश्विक स्तर पर
भ्रष्टाचार की गूंज और इसके लिए सीधे सीधे मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और
कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। यह देखकर मनमोहन सिंह छटपटा गए। इस बार
उनकी जुबान फिसल गई और उन्होंने भ्रष्टचार के खिलाफ प्रचार प्रसार के बजाए उसकी
वजहों की तह में जाने का मशविरा दे डाला।
मनमोहन सिंह भूल
जाते हैं कि वे प्रधानमंत्री हैं। भ्रष्टाचार अगर हो रहा है तो मुखिया होने के
नाते वे ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसकी क्या वजह है इसकी तह में भी वे ही जाएं। जनता
इसकी तह में जाकर क्या करेगी? वजह चाहे जो भी हो जनता की तो आखिर जेब ही
खाली हो रही है। जनता क्या इसकी वजह जानकर अपना सौ ग्राम खून और जलवाए?
दरअसल, अब नैतिकता ही नहीं
बची है। अस्सी के दशक के आरंभ तक सरकारी कार्यालयों में ‘घूस (रिश्वत) लेना
और देना अपराध है,
दोनों पाप के भागी हैं‘‘ का जुमला अक्सर लिखा दिख जाता था। याद पड़ता
है 84 - 85 की बात है
एक परिचित ने फ्रिज खरीदा और रात को तीन बजे अपने घर के अंदर रखवाया वह भी पूजन
कक्ष में क्योंकि वहां नौकर चाकर नहीं जाया करते थे। कारण पूछने पर उसने बताया कि
बाबू आदमी हूं यार,
कहीं किसी ने देख लिया तो शिकायत हो जाएगी फिर नौकरी भी जा
सकती है। एक अन्य उदहारण हमारे एक परिचित बुजुर्गवार बताते हैं कि जब वे नौकरी में
थे तो 65 या 66 के सन में
उन्होंने एक पालीस्टर की शर्ट सिलवाई पर पहन नहीं सके। रात के अंधेरे में घर पर
पहनते और सुबह होने पर उतार देते। इसका कारण यह था कि कहीं किसी को पता चल गया कि
पालीस्टर की शर्ट सिलवाई है तो कहीं विभागीय जांच आरंभ ना हो जाए।
इन उदहारणों के
उल्लेख का तातपर्य महज इतना है कि पहले भ्रष्टाचारी समाज से डरता था, अब तो समाज
भ्रष्टाचारी से डरने लगा है। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या किसी भी नेता पर लगे
भ्रष्टाचार के आरोप में अब तक न्यायालय से सजा हुई है। सुखराम का मामला इसमें
अपवाद माना जा सकता है। अपने प्रभावों का उपयोग कर नेता जांच को लंबित करवाते जाते
हैं, फिर क्या
लोग आरोपों को भूल ही जाते हैं।
हम प्रधानमंत्री
डॉ.मनमोहन सिंह से यह पूछना चाहते हैं कि क्या उनके कार्यकाल में हुए घपले घोटाले, भ्रष्टाचार के
मामलों में वे किसी को दोषी मानते हैं या नहीं। अंतरात्मा (जो शायद मर चुकी है) की
आवाज पर अगर वे कह देते हैं कि देश में कलमाडी राबर्ट वढेरा, प्रथ्वीराज चव्हारण, शरद पंवार, रामविलास पासवान, लालू यादव, सलमान खुर्शीद, पी.चिदम्बरम आदि ने
भ्रष्टाचार नहीं किया है तो क्या देश की जनता मान लेगी।
प्रधानमंत्री जी
बहुत पुरानी कहावत है बिना आग के धुंआ नहीं निकलता आप देश के मुखिया होने के बाद
अपने आप को कभी निरीह बताते हैं तो कभी भ्रष्टाचार का प्रचार प्रसार करने से रोकते
हैं तो कभी नकारात्मक बातें ना करने की अपील करते हैं। भारतवासी खुद फैसला करें कि
क्या भारत गणराज्य इतना कमजोर हो गया है कि देश का प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार रोकने
की बजाए उसके प्रचार प्रसार को रोकने की अपील करे!
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