दवाओं की कीमतें ना बढ़े:
सुको
(महेंद्र देशमुख)
नई दिल्ली (साई)। उच्चतम
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केन्द्र को ऐसी औषधि नीति नहीं बनानी चाहिए जिससे आवश्वयक
दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी हो। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस. जे.
मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि मरीजों के लिए डॉक्टर जो दवायें लिखते हैं वे आम
आदमी की पहुंच से बाहर हो रही हैं। अदालत ने कहा कि आम जनता के हितों के खिलाफ
जाने वाले किसी भी मूल्य निर्धारण फार्मूले को रद्द कर देना चाहिए।
अतिरिक्त सोलीसीटर जनरल ने
न्यायालय को भरोसा दिलाया कि नई नीति २५ नवम्बर तक अधिसूचित कर दी जाएगी। मामले की
अगली सुनवाई २७ नवम्बर को होगी। सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सिद्धार्थ
लूथरा ने अदालत को सरकार के फैसले की जानकारी दी। सर्वाेच्च न्यायालय के
न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति एस.जे. मुखोपाध्याय की पीठ ने सरकार को
नई दवा मूल्य निर्धारण नीति के कार्यान्वयन की समय सीमा के बारे में बताने का
निर्देश दिया था।
पीठ ने सरकार से कहा कि वह
1995 की कीमत निर्धारण फार्मूला को प्रभावित नहीं करे। पीठ ने कहा कि क्या आप
लिखित गारंटी दे सकते हैं कि दवाओं की कीमत वर्तमान कीमत से नहीं बढ़ेगी। पीठ ने
कहा कि हम कीमत को लेकर अधिक संजीदा हैं। निर्माताओं के गणित को समझा जा सकता है।
लेकिन अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा वाजिब मूल्य पर दवाओं की उपलब्धता है।
अदालत ने कहा कि हमने यह कहा
है कि सरकार को ऐसी नीतियां लानी चाहिए जो आम आदमी के लिए लाभदायक हो और जिसके
कारण कीमत नहीं बढ़े। अदालत ने तीन अक्टूबर को जनहित सुरक्षा के लिए सरकार से कहा
था कि आवश्यक दवाओं की सूची तैयार करते वक्त मूल्य नियंत्रण निर्देश के तहत दवाओं
की मौजूदा कीमत को प्रभावित नहीं करे।
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