शनिवार, 24 नवंबर 2012

भ्रष्ट अफसरों के शिकंजे में जनसंपर्क विभाग


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 18

भ्रष्ट अफसरों के शिकंजे में जनसंपर्क विभाग

(डेविड विनय)

भोपाल (साई)। बस यहीं से इस दलाल की राजनीति चमक गई। तभी से इसका पूरा परिवार जनसंपर्क विभाग में होने वाली लूट के टुकड़ों पर पल रहा है। बाद के अफसरों ने सहज कमाई की ये कहानी सुनी तो उन्होंने भी इस प्रथा को सहज की अपना लिया। सरकारी खजाने से बिल आहरित करने के लिए बनाए गए इस कमीशनखोर के संगठन ने जहां जनसंपर्क विभाग के चंद भ्रष्ट अफसरों के लिए कमाई के नए स्रोत विकसित किए वहीं इस भड़ुए ने पत्रकारों के शोषण के नए तरीके विकसित कर लिए। इसने पत्रकारों की आर्थिक सहायता के बजट पर अपने जहरीले दांत गड़ा दिए। अपने दौरों में ये दलाल पत्रकारों की संख्या के आधार पर सदस्यता राशि सबसे पहले वसूलता है। इसके बाद पत्रकारों को आर्थिक सहायता दिलवाने का प्रलोभन देता है। खासतौर पर कमजोर आर्थिक हालत वाले पत्रकारों को इसका शिकार बनाया जाता है। इसके संगठन के इलाकाई दलाल उन सदस्यों को शारदा के पास भिजवाते हैं। उनके आर्थिक सहायता के फर्जी प्रकरण तैयार कराए जाते हैं फिर उन्हें जनसंपर्क विभाग से पास करा लिया जाता है।
अपने इस कारोबार को विस्तार देने के लिए इस शातिर बदमाश ने भोपाल के जय प्रकाश चिकित्सालय में पूर्व सांसद प्रफुल्ल माहेश्वरी की सांसद निधि से एक वार्ड विकसित करवाया था। इस वार्ड के बहाने ये दलाल जेपी अस्पताल के डाक्टरों को अपने हित साधने में इस्तेमाल करता रहता है। ये डाक्टर इस दलाल के कहने पर प्रदेश भर के उन पत्रकारों के चिकित्सा देयक तैयार करवा देते हैं। डाक्टरों को ये दलीलें देता है कि फलां साथी जरूरत मंद है कृपया उसकी मदद कर दें। डाक्टर इसे पत्रकारों का सेवक समझते हैं और वे फर्जी बिलों पर बगैर कोई विचार किए दस्तखत कर देते हैं। जनसंपर्क विभाग में लगे बिलों से इस तथ्य की पुष्टि की जा सकती है। पत्रकारों की आर्थिक सहायता के प्रकरणों की पैरवी करते करते ये दलाल अपने भी फर्जी चिकित्सा देयकों को पारित करवाने की जुगत भिड़ाता रहता है। कुछ दिनों पहले इसने इंदौर के एक अस्पताल के फर्जी चिकित्सा देयक लगाकर मोटी रकम का भुगतान करवाने की योजना बनाई थी . इस राशि का चौक भी तैयार हो चुका था। बस केवल भुगतान होना था। तभी किसी जानकार ने इस मामले की शिकायत कर दी। जनसंपर्क विभाग के अधिकारी ने उन बिलों की जांच करवाने के लिए इंदौर के उस अस्पताल से संपर्क किया। वहां के चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि इस नाम के किसी भी मरीज का इलाज उनके असपताल में नहीं हुआ है। उस बिल क्रमांक पर किसी दूसरे मरीज का नाम दर्ज था। इसलिए जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने बिल का भुगतान तो रोक दिया पर जालसाजी करने वाले शारदा को दया करके छोड़ दिया।
(विस्फोट डॉट काम से साभार)

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