नई दवा नीति सस्ती
होंगी दवाएं पर दर्द की दवा होगी मंहगी
(महेंद देशमुख)
नई दिल्ली (साई)।
केंद्र सरकार ने दवा मूल्य नीति को मंजूरी दे दी। इससे 348 जरूरी दवाएं कीमत
कंट्रोल के दायरे में आ जाएंगी, जिससे इनकी कीमतों में कमी होगी। सरकारी
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राष्ट्रीय दवा मूल्य नीति को
मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। इसका मकसद दवाओं के मूल्य के लिए नियामक ढांचे को
लागू करना है, जिसकी इनकी
उपलब्धता सस्ते दाम पर सुनिश्चित हो सकेगी। वहीं पेनकिलर्स के दामों में बढोत्तरी
की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं।
फिलहाल सरकार
राष्ट्रीय दवा मूल्य प्राधिकरण (एनपीपीए) के जरिए 74 बल्क दवाओं और
उनके फॉर्म्युलेशन का मूल्य नियंत्रित करती है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार
कल्याण मंत्रालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सरकार भारतीय
फार्मा उद्योग के विकास के लिए उचित नवप्रवर्तन और प्रतिस्पर्धा के अवसर उपलब्ध
कराने पर विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस नीति को अंतिम रूप देने के लिए
पिछले महीने 27 नवंबर की
समयसीमा तय की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह मौजूदा लागत आधारित दवा
मूल्य व्यवस्था में बदलाव न करे।
इससे पहले कृषि
मंत्री शरद पवार की अगुवाई वाले मंत्री समूह ने दवाओं का मूल्य विभिन्न ब्रैंडों
के औसत मूल्य के आधार पर तय करने का प्रस्ताव किया था। पर इसके लिए किसी भी ब्रैंड
की बाजार हिस्सेदारी एक फीसदी से ज्यादा की होनी चाहिए।
मंत्रिमंडल ने
वित्त मंत्रालय की आपत्तियों के मद्देनजर इस पर फैसला टाल दिया था। उसके बाद
मंत्री समूह की बुधवार को बैठक हुई थी। 348 दवाओं को कीमत कंट्रोल के दायरे में लाने
वाली नीति को इससे पहले मंत्री समूह ने 27 सितंबर को मंजूरी दी थी और बाद में इसे
मंत्रिमंडल को भेज दिया गया था।
अपने पिछले
कार्यकाल के दौरान यूपीए सरकार आवश्यक दवाओं के लिए मूल्य नीति तैयार नहीं कर पाई
थी। यूपीए-2 सरकार ने
पिछले साल औषध विभाग के जरिये राष्ट्रीय दवा मूल्य नीति, 2011 का मसौदा जारी
किया था। हालांकि स्वास्थ्य और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालयों के बीच मतभेदों के
चलते इस नीति को अंतिम रूप देने में काफी समय लगा। बाकी अंशधारकों मसलन उद्योग और
गैर सरकारी संगठनों ने भी इस तरह के मूल्य मॉडल को लेकर चिंता जताई थी। वित्त वर्ष
2010-11 में
भारतीय फार्मा क्षेत्र का उत्पादन कारोबार 1।05 लाख करोड़ रुपये रहा था। मात्रा के हिसाब से
दवा उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है। यहां से करीब 200 देशों को दवाएं
एक्सपोर्ट की जाती हैं।
उधर, केंद्र सरकार ने
डायबिटीज के मरीजों को बड़ी राहत दी है। उसने इसकी दवा ग्लिपिजाइड के दामों में
भारी कमी की है। दूसरी तरफ उसने दर्द कम करने की दवा आइबूप्रोफेन और पार्किंसंस
डिजीज की दवा मैडोपार के साथ ही चार बल्क ड्रग्स और 92 ड्रग फॉर्म्यूलेशन
के दामों में बढ़ोतरी करके महंगाई की मार से बेहाल लोगों का दर्द भी बढ़ा दिया है।
ये सभी दवाएं मूल्य
नियंत्रण के दायरे में आती हैं और नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी समय -
समय पर इनके दाम तय करती है। अथॉरिटी ने अपने आदेश के जरिये एक किलो ग्लिपिजाइड के
मूल्य को 26,114 रुपये से
घटाकर 15,946 रुपये कर
दिया है। डायबिटीज के मरीज बड़ी तादाद में इस दवा का इस्तेमाल करते हैं। कई भारतीय
और मल्टिनैशनल दवाएं इस जेनरिक दवा का निर्माण करती हैं। इससे पहले अप्रैल 2009 में इसके दाम तय
किए गए थे।
अथॉरिटी ने इसके
दाम कम करने के साथ ही दर्द कम करने की दवा आइबूप्रोफेन के रेट 498 से 527 रुपये प्रति किलो
कर दिए हैं। इसे कोल्ड और फ्लू के लक्षणों में भी दिया जाता है। 1960 के दशक में खोजी
गई रिफाम्पिसन टीबी की दवा है। इसके रेट 4,111 रुपये से बढ़ाकर 4485 रुपये प्रति किलो
कर दिए गए हैं। भारत में टीबी से हर साल करीब साढ़े तीन लाख लोगों की मौत हो जाती
है और दुनिया में टीबी के 20 फीसदी मरीज भारत में हैं। इन मरीजों को अब
बढ़े हुए रेट पर यह दवा खरीदनी होगी।
कई तरह के
बैक्टीरियल और पैरासाइटिक इन्फेक्शन का इलाज करने के लिए मेट्रोनिडाजोल का
इस्तेमाल किया जाता है। इसके रेट 514 रुपये किलो से बढ़ाकर 588 रुपये प्रति किलो
कर दिए गए हैं। बल्क ड्रग मेट्रोनिडाजोल बेंजोएट के दाम भी 75 रुपये प्रति किलो
बढ़ा दिए गए हैं। अथॉरिटी ने इसके अलावा मल्टिविटामिन्स , ह्युमन इंसुलिन , मूत्र मार्ग के
संक्रमण की दवा जेंटामाइसिन और पार्किंसंस डिजीज की दवा मैडोपार के साथ ही 92 दवाओं के दामों
में बढ़ोतरी की है। सभी दवाओं के दामों में बढ़ोतरी इनकी लागत बढ़ने का तर्क देते हुए
की गई है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें