बीज निगम कर रहा
किसानों का शोषण
(शिवेश नामदेव)
सिवनी (साई)। बीज
निगम किसानों को उचित कीमत ना देकर किसानों का शोषण कर रहा हैं। पिछले चार सालों
में उपार्जन एवं विक्रय दर के अंतर का अनुपात बिगड़ता ही जा रहा हैं। एक किसान
पुत्र की किसानों की सरकार में एक शासकीय निगम द्वारा ही किसानों का शोषण किया
जाये और पूरी सरकार मूक दर्शक बनी रहें यह अत्यंत शर्मनाक बात हैं। गेहूं की दर
बढ़ाकर 1750 प्रति
क्विंटल कर इसी अनुपात में अन्य फसलों की दरों का भी पुर्ननिर्धारण करने का कष्ट
करें। उक्ताशय की मांग जिले के वरिष्ठ इंका नेता आशुतोष वर्मा ने मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान से फ्ेक्स भेजर की हैं जिसकी प्रति कृषि मंत्री कुसमारिया एवं
नेता प्रति पक्ष अजय सिंह को भी भेजी हैं।
इंका नेता वर्मा ने
प्रेस को जारी विज्ञप्ति में आगे उल्लेख किया है कि पिछले चार सालों से लगातार यह
देखा जा रहा हैं कि निगम द्वारा बीज उत्पादक कृषकों को उचित मूल्य नहीं दिया जा
रहा हैं। किसानों को उनके द्वारा उत्पादित बीज की जो कीमत दी जा रही है और निगम
द्वारा उसी बीज को किसानों को जिस कीमत में बेचा जाता हैं उसका अनुपात हर साल बढ़कर
असंतुलित होता जा रहा हैं। इससे ऐसा प्रमाणित होता है कि निगम को सिर्फ अपना
मुनाफा बढ़ाने की चिंता हैं जिसके लिये वो बीज उत्पादक कृषकों का शोषण करने में भी
कोई संकोच नहीं कर रहा हैं।
अपने पत्र में इंका
नेता आशुतोष वर्मा ने अनुरोध किया है कि आप बीते चार सालों के बीज निगम द्वारा
निर्धारित उपार्जन और विक्रय दरों को देखने का कष्ट करें। इससे यह स्पष्ट हो
जायेगा कि निगम किस तरह से हर वर्ष किसानों को दी जाने वाली कीमत और किसानों से ली
जाने वाली कीमत के बीच में अंतर बढ़ाते जा रहा हैं और किसानों का शोषण कर रहा हैं।
उदाहरण के लिये मैं पिछले चार सालों गेहूं की बोनी जाति 10 वर्ष से अधिक वाली
दरें आपके अवलोकन के लिये दे रहा हूॅं। उपार्जन एवं विक्रय दर वर्ष 2009 में 1295 रु. और 2000 रु., 2010 में 1353 रु. और 2100 रु., 2011 में 1285 रु. और 2050 रु. तथा 2012 में 1425 रु. और 2500 रु. निर्धारित की
गयीं हैं। दोनों दरों के बीच का अंतर क्रमशः हर साल बढ़ते ही जा रहा हैं जो कि
क्रमानुसार 705 रु., 747 रु., 775 रु. और 1075 रु. हो गया हैं।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि बीज उत्पादक किसानों से लिया जाने वाला बीज
ही किसानों को बेचा जाता हैं।
इंका नेता वर्मा ने
पत्र में यह भी लिखा हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं का समर्थन मूल्य 1285 रू. निर्धारित
किया गया था जिसमें राज्य सरकार के बोनस के 100 रु. जुड़ने से किसानों को मिलने वाली कुल
राशि 1385 रू. प्रति
क्विंटल हो गयी थी। समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाला गेहूं एफ.ए.क्यू. (फेयर एवरेज
क्वालिटी) लिया जाता हैं जिसमें बारदाना , हमाली और तुलाई के पैसे भी किसानों को नहीं
लगते हैं। जबकि बीज निगम किसान को टेगड बीज का भुगतान करती हैं जिसमें अंडर साइज
मात्रा,बारदाना,तुलाई,हमाली और सुतली तक
किसान को देना पड़ती हैं। इसके अलावा प्रोसेस लॉस भी किसान ही वहन करता हैं। साथ ही
किसान को परिवहन का खर्च भी लगता हैं।इसके अलावा किसान को अंतिम भुगतान भी काफी
विलंब से मिलता हैैं। इन सब खर्चों को जोड़ा जाये तो किसान को इस किस्म को गेहूं
लगभग 1650 रु. प्रति
क्विंटल पड़ रहा हैं जबकि निगम किसान को 1425 रु. प्रति क्विंटल की दर से भुगतान कर रही
हैं। इसी तरह चने के उपार्जन मूल्य और अनुदान के संबंध सालों से चली आ रही नीति को
बदल कर भी निगम ने किसानों के साथ एक क्रूर मजाक किया है जिससे उसे अनुदान की राशि
के लिये भी भटकना पड़ रहा हें।
पत्र के अंत में
इंका नेता आशुतोष वर्मा ने अनुरोध किया है कि एक किसान पुत्र की किसानों की सरकार
में एक शासकीय निगम द्वारा ही किसानों का शोषण किया जाये और पूरी सरकार मूक दर्शक
बनी रहें यह अत्यंत शर्मनाक बात हैं। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप गेहूं का
उपार्जन मूल्य कम से कम 1750 रु. प्रति क्विंटल निर्धारित करायें तथा इसी अनुपात में अन्य
फसलों के रेट भी निर्धारित करने का कष्ट करें ताकि किसान को उसकी मेहनत का फल मिल
सें।
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