सारे जहां से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा . . .
(जाकिया ज़रीन)
हैदराबाद (साई)।
उर्दू अदब में मीर और गालिब के बाद सबसे बड़ा नाम जो लिया जाता है, वह अल्लामा इकबाल
का है. उन्होंने उर्दू कविता को न केवल दर्शन की गहराई में उतारा बल्कि कई ऐसे गीत
लिखे जो भारत और पाकिस्तान में आज भी लोगों की जुबान पर खुद ब खुद चले आते हैं.
इकबाल के तराने जहां भारत की आजादी के आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों में जोश
भरते थे वहीं कई लोग मानते हैं कि उन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत और पाकिस्तान के
गठन को वैचारिक आधार प्रदान किया था.
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा, अली जावेद ने कहा ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां
हमारा.. जैसा गीत लिखने वाला शायर हिंदुस्तान के बंटवारे की आवाज कभी नहीं
उठायेगा. उन्होंने सिर्फ अलग राज्य बनाने की मांग रखी थी, जिसे बाद में
तोड़-मरोड़ कर पाकिस्तान का मांग करनेवाला शायर कहा जाने लगा.’ प्रोफेसर अली जावेद
ने कहा कि अल्लामा इकबाल को किसी मजहब या जुबान के खांचे से नहीं देखा जा सकता.
मुहम्मद इकबाल का
जन्म नौ नवंबर 1877 को
अविभाजित हिन्दुस्तान में हुआ था. इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे, जो बाद में
सियालकोट में बस गये. उनकी प्रमुख रचनाओं में असरार-ए-खुदी, रुमुज ए बेखुदी और
बंग-ए-दारा शामिल है. 21 अप्रैल 1938 को इकबाल की मृत्यु हो गयी.
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