शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

गैस में लगी आग बुझी, अब डीजल में आग


गैस में लगी आग बुझी, अब डीजल में आग

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर (साई)। आम जनता से लेकर किसानों व व्यापारियांे को रेल बाढे व आम किराये में हुई बढोत्तरी के बाद अब बसों व अन्य वाहनों में चलना भी दुर्भर वाला है। यहीं नहीं किसानों की जेबे भी जल्द ही डीजल के कारण खाली होने जा रही है। डीजल के दाम बढाये जाने के से खेती बाडी पर सबसे ज्यादा फर्क पडने वाला है। किसानों को डीजल के दाम रूलायेंगे। क्योंकि अब पेट्रोल की तरह डीजल के दाम कंपनियां खुद बढ़ाएंगी। सरकार ने दाम बढ़ाने का बीड़ा खुद नहीं उठाया है। अपनी पावर तेल कंपनियों को सुपुर्द कर दी है कि वे दाम बढ़ाएं। तेल कंपनियों से आ रही खबरों के मुताबिक तेल कम्पनियां प्रति लीटर करीब 9 रुपए घाटे में चल रही हैं। कयास लगाया जा रहा है कि गुरुवार रात कंपनियां डीजल के दाम में 3 रुपए तक की बढ़ोतरी करेंगी वहीं जनता के इस जख्म पर मरहम भी लगाने की कोशिश हुई हैै। सरकार ने रियायती सिलेंडरों की संख्या 6 से 9 करने का ऐलान किया है। अब रियायती सिलेंडर और महंगे डीजल के बीच फंसे आम आदमी के जख्मों पर मरहम कितना असर करेगा।
बढ़े हुए डीजल के दामों की सूचना बड़ी तेल कंपनियों के पते से निकलेंगी, लेकिन इसकी मार दूर-दराज गांवों तक पहुंचने वाली है। हर किसान जो अच्छी फसल उत्पादन की उम्मीद लगाए बैठा है, डीजल के दाम बढ़ने से उनका कलेजा बैठ जाएगा। नई फसलों का मौसम है। बड़ा हो या मझोला, हर किसान अच्छी फसल के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। सबको खेती-बाड़ी के लिए पानी और कृषि उपकरणों की जरूरत है, क्योंकि बेसिक जरूरत के तहत ट्यूबवेल और ट्रैक्टर डीजल से ही संचालित होते हैं. अब ट्यूबवेल और ट्रैक्टर के मालिक दाम बढ़ाकर किसानों को उपयोग के लिए उपकरण देंगंे। किसान अपनी गठरी टटोल सोच रहा है कि फसल अभी हुई भी नहीं, पैसा कहां से लाएं। बैंकों से कर्ज पहले ही ले चुके हैं, अब किस चौखट गुहार लगाए।
मुजफ्फरनगर के ग्राम कटिया निवासी रविन्द्र गांव में खेती-बाड़ी करते है और उनके कंधों पर खेतों व परिवार की समस्त जिम्मेदारी है। रविन्द्र का कहना हैं कि सरकार तेल कंपनियों के बारे में तो सोचती है लेकिन हम किसान परिवारों के बारे में कभी नहीं सोचती, मौजूदा महंगाई इसी का परिणाम है।
लग्न का भी मौसम है। कहीं सगाई, तो कहीं शादी हो रही है. जेनरेटर अभी बिना तेल के खड़े हैं, जो रात से पहले खरीद लेंगे उनका बजट हो सकता है न बिगड़े, लेकिन जो बाद में खरीदेंगे वो अपने बही-खाते का हिसाब देख रहे हैं, डीजल से बिगड़ा बजट कैसे एडजेस्ट करें।
राजीव का कहना है कि धीरे-धीरे सभी चीजों के दाम बढ़ाने से अच्छा है कि सरकार सीधे हमें मार ही दे। वहीं, अजय कहते हैं कि अब सवारी गाड़ी पर बैठने के बजाए जहां तक पैदल चलना संभव होगा चला जाएगा, क्योंकि बढ़ा हुआ किराया हमारा बजट बिगाड़ने के लिए काफी है।
डीजल के दाम बढ़ने से कुछ तो असर तुरंत दिखेगा कुछ महीने बाद पता चलेगा, जब दाल-चावल से लेकर सभी चीजों के दाम डीजल की वजह से बढ़ेंगे। फिलहाल किराए में बढ़ोतरी तय हो रही है, मीडियम क्लास का कहीं आना-जाना दूभर हो जाएगा। सब जेब टटोलते दिखेंगे, क्योंकि डीजल के बढ़े दामों का सभी पर प्रत्यक्ष और  परोक्ष रूप से असर दिखेगा। सरकारी फैसलों से बेअसर और बेपरवाह रहने वाले लोग भी डीजल के बढ़े दामों से घबरा रहे हैं। अतिशयोक्ति नहीं, कुछ का कहना है कि डीजल के दाम बढ़ने की खबर से उन्हें एसी में पसीना आ गया है।

कोई टिप्पणी नहीं: