शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

बेलगाम जुबानें फड़कते बाजू!


बेलगाम जुबानें फड़कते बाजू!

(लिमटी खरे)

नेताओं को अपना मुंह खोलने के पहले संयंम बरतना बेहद जरूरी है। नेताओं के मुंह से निकली वाणी उनके समर्थकों, अनुयाईयों के लिए पत्थर की लकीर होती है। नेताओं द्वारा कही गई बात से बवाल मच सकता है। भारत पाकिस्तान की सीमा पर भारतीय सैनिक के सर काटे जाने के उपरांत देश में जमकर हंगामा मचा। इसके पहले गेंग रेप के मामले में भी हंगामा हुआ था। गेंग रेप के समय देश में युवाओं का गुस्सा सड़कों पर था, इसलिए किसी भी दल के नेता ने कुछ बोलने का साहस नहीं जुटाया। अब जब मृत सेनिक की बेवा अपने पति के सर को लाने के लिए अनशन पर बैठी तब नेताओं की तंद्रा टूटी और बयानबाजी आरंभ हुई। सुषमा स्वराज ने पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना बयान देकर ठहरे हुए पानी में हलचल मचा दी। उधर, सहिष्णु का लबादा ओढ़े भारत की छवि नपुंसक की बनती जा रही है। इंटरनेशनल मंच पर पाकिस्तान की हरकतें जग जाहिर हैं इसलिए भारत बचा हुआ है, वरना हिना रब्बानी ने तो सुषमा स्वराज के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देकर भारत पर उकसाने का आरोप मढ़ ही दिया था।

भारत पाक सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन अनेकों बार हुआ है। एक दशक में यह तीसरी बार हुआ है कि भारतीय जवानों के सर काटकर ले गए पाकिस्तान के जवान। कठोर कार्यवाही के आदेश ना दिए जाने पर जवानों का मनोबल टूटा और खबरों के अनुसार उन्होंने सौ घंटे तक बिना भोजन लिए ही अपनी ड्यूटी पूरी की। भारत सरकार इस बात पर ही अपनी पीठ थपथपाती रही कि उसने पाकिस्तान को चेता दिया, उसने पाकिस्तान के राजदूत को तलब कर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया।
यह स्वीकार्य मान्यता है कि भारत देश सहिष्णु, सभी धर्मों का आदर करने वाला, सहनशील, पडोसी धर्म निभाने वाला, सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला, सत्य का साथी है। अब यह भी कहा जाने लगा है कि सहिष्णुता की आड में हमने नपुंसकता को ओढ़ लिया है। दुनिया को दिखाने के चक्कर में हम अपनी असली पहचान खोते जा रहे हैं। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के पास सैकड़ों सबूत हैं जिनसे साबित किया जा सकता है कि पाकिस्तान द्वारा ही भारत के अंदर आतंकवाद फैलाकर अस्थिरता की कोशिशें जारी हैं।
बावजूद इसके भारत बार बार कभी क्रिकेट के बहाने, कभी उदार वीजा नीति के बहाने, कभी सड़क, कभी रेल मार्ग के बहाने पाकिस्तान से दोस्ती की पहल करता ही आ रहा है। प्रचीन किंवदंती का जिकर यहां लाजिमी होगा। एक साधु नदी किनारे से गुजर रहे थे। नदी में उन्होंने एक बिच्छू को बहाव में संघर्ष करते देखा। उनसे नहीं रहा गया। उन्होंने बिच्छू को हाथ में उठाकर बाहर निकालना चाहा।
बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया। फिर वह पानी में गिर पड़ा। साधु ने दोबारा उठाया फिर वही हुआ। पांच सात बार डंक के असर से साधू का हाथ शून्य पडने लगा तो उन्होंने दूसरे हाथ का प्रयोग किया। अंततः वे काफी देर बाद बिच्छू को नदी से बाहर निकालने में सफल हो ही गए। यह सब कुछ एक व्यक्ति देख रहा था। उसने साधू से पूछा -‘‘भंते, बिच्छू आपको बार बार डंक मार रहा था। आप उसे पानी में ही छोड़ देते ना मरने के लिए, क्यों बार बार आपने कष्ट सहा।‘‘
साधु ने मुस्कुराकर जवाब दिया -‘‘पुत्र, दरअसल, डंक मारना बिच्छू की फितरत है और बचाना हमारा धर्म।‘‘ तातपर्य यह कि हम बार बार दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं और पाकिस्तान बार बार डंक मारने से बाज नहीं आता है। जब स्थिति यह है तो आखिर हम ही क्यों बार बार दोस्ती का हाथ बढ़ाएं। इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का स्टेंड सही है कि पाकिस्तान को वे गुजरात में ना तो खेलने देंगे और ना ही व्यापारिक गतिविधियों में भागीदार बनने देंगे।
इस मामले में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज का बयान आश्चर्यजनक ही माना जाएगा कि भारतीय जवान का सर नहीं ला सकते तो कम से कम दस पाकिस्तानियों के सर ले आओ। सुषमा स्वराज दिल्ली की सीएम रही हैं। सांसद हैं उनका संसदीय जीवन लंबा है। सुषमा स्वराज को गंभीर नेताओं की श्रेणी में गिना जाता है। सबसे बड़ी बात वे महिला हैं।
पकिस्तान की इस बर्बरता पर उनका उद्वेलित होना स्वाभाविक है, किन्तु उनसे इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती। सुषमा स्वराज के इस तरह की बयानबाजी से भाजपा के युवाओं के बाजू फड़कने लगेंगे और वे कुछ कर गुजरने के लिए कुछ भी कर डालेंगे। इसकी जवाबदेही किसकी होगी? क्या पाकिस्तान सीमा में घुसना हंसी खेल है, कि वहां से लोगों के सर काटकर लाए जाएंगे।
वहीं, दूसरी ओर सुषमा स्वराज के बयान के बाद ही पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने भी अपना मुंह खोला और कह ही दिया कि भारत युद्ध भड़काने का प्रयास कर रहा है। सुषमा के बयान के कारण ही पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चढ़ने का मौका मिल गया। हिना रब्बानी खार ने यह तक कह डाला कि पाकिस्तानी हुकूमत किसी भी तरह के युद्ध ना करने की नीति पर कायम है।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर खार ने कहा कि अगर कोई ठेठ पाकिस्तानी सरकार होती तो इसका जवाब वह जैसे को तैसा की तर्ज पर देती। लेकिन हमारी सरकार ने पिछले कुछ दिनों में भारत द्वारा दिए आक्रमक बयानों पर शांतिपूर्वक प्रतिक्रिया दी है। पाकिस्तान के दो सैनिक मरे और भारत का कहना है कि उनके भी दो सैनिक मरे हैं। पाकिस्तान सरकार युद्ध की स्थिति को रोकने का हर संभव प्रयास कर रही है।
यह तो वैश्विक स्तर पर सभी पाकिस्तान को अच्छी तरह से जानते हैं वरना खार के बयान से तो भारत को बैकफुट पर आने पर मजबूर होना ही पड़ता। नरेंद्र मोदी के तल्ख रवैए और सरकार के कुछ हद तक सख्त हुए तेवरों से पाकिस्तान ने अपने आप को पीछे कर बातचीत की पेशकश की है।
इस संबंध में जनरल विक्रम सिंह का बयान तारीफे काबिल रहा। जनरल ने दो टूक शब्दों में कमोबेश यही बात कही कि पाकिस्तान अगर अपनी हरकतें बंद नहीं करता है तो भारत को अपने तरीके से कदम उठाने का पूरा हक है। माना जा रहा है कि जनरल का यह बयान हुक्मरानों की सहमति के उपरांत ही मीडिया में आया है।
वैसे देखा जाए तो मंच से बोलते समय तालियों की गड़गड़हाट सुनने को बेचेन राजनेता अक्सर अपना संयम तोड़ देते हैं। कभी कभी तो सुर्खियों में बने रहने भी नेताओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है। मामला चाहे उत्तर भारतीयों को लेकर मनसे प्रमुख राज ठाकरे का हो या फिर शिवसेना प्रमुख स्व.बाला साहब ठाकरे का। दोनों ही नेताओं ने जात पात और क्षेत्रवाद की बात कहकर लोगों के मन मस्तिष्क में जहर बो दिया है। कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि किसी भी बारे में बयान देने के पहले नेताओं को कम से कम यह तो सोच लेना चाहिए कि उनके बयानों की प्रासंगिकता क्या है और सभ्य समाज पर उनकी बयानबाजी का क्या असर पडने वाला है।

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