रातों रात नहीं
पसारे अराजकता ने पैर!
(लिमटी खरे)
देश में महिलाओं को
पुरूषों के साथ बराबरी का दर्जा दिया जाता है। महिलओं को आगे बढ़ाने के ढकोसले होते
हैं। कहीं बेटी बचाओ अभियान चलता है। नारी के सम्मान की रक्षा के लिए कसमें खाई
जाती हैं। ये सब का सब महज दिखावा है। देश को 2007 में आजादी के साठ सालों बाद
प्रथम नागरिक के रूप में महिला मिली। देश की सत्ता की चाभी परोक्ष तौर पर एक महिला
सोनिया गांधी के हाथ है। लोकसभा अध्यक्ष श्रीमति मीरा कुमार महिला हैं। लोकसभा में
नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज महिला हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला
दीक्षित, पश्चिम
बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडू में जयललिता भी महिला हैं। पूर्व मायावती, वसुंधरा राजे
सिंधिया, उमा भारती
भी महिला हैं। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की प्रधानमंत्री
रही हैं श्रीमति इंदिरा गांधी। बावजूद इसके महिलाओं के सम्मान की रक्षा इक्कीसवीं
सदी तक सुनिश्चित ना हो पाना, महिला आरक्षण विधेयक का ना आ पाना अपने आप
में यह साबित करने के लिए काफी है कि देश की महिला नेत्रियां ही अपनी बिरादरी को
शोषित होने देना चाहती है।
दिल्ली में 16
दिसंबर को हुए गैंगरेप के बाद पीडिता का सिंगापुर में दम तोड़ना, सरकार का मूक दर्शक
बनकर रहना, युवाओं में
आक्रोश आदि देखकर सभी सहम गए। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अब तरह तरह के प्रश्न
कौंध रहे हैं। इन प्रश्नों का आम आदमी के जेहन में उठना स्वाभाविक ही है। इस सबके
लिए गुनाहगार क्या सिर्फ सरकार है? क्या समाज और हम खुद इसके लिए जवाबदेह नहीं
हैं? जिसने
बलात्कार किया या जो करते हैं वे भी किसी के पिता, बेटे या भाई होते
हैं। हम अपनी बेटियों को तो लाज बचाने की हिदायत देते रहते हैं पर कभी हम अपने
बेटों को इसकी नसीहत नहीं देते हैं। यह सब कुछ एकाएक तो निश्चित तौर पर नहीं हुआ
है।
इसके लिए हम एक
उदहारण आपके समक्ष रखते हैं। देश भर में डाक विभाग धीरे धीरे शिथिल हुआ और निजी
कोरियर उन पर हावी हो गए। कोई भी सरकारी डाक विभाग पर ज्यादा यकीन नहीं कर पा रहा
है। इसी तरह मध्य प्रदेश में अस्सी के दशक में अवैध वीडियो कोच टूरिस्ट व्हीकल्स
का आगाज हुआ। यातायात पुलिस, आरटीओ आदि ने अपने निहित स्वार्थों के लिए
इनसे चौथ वसूली, यात्रियों
ने कंफर्टेबल यात्रा के लिए इन पर भरोसा किया, परिणाम सबके सामने
है। मध्य प्रदेश में राज्य सड़क परिवहन निगम ने दम तोड़ दिया। अब प्रदेश भर में अवैध
बसों का कभी ना टूटने वाला साम्राज्य स्थापित हो गया। यह सब एक दिन में तो निश्चित
तौर पर नहीं हुआ।
निश्चित तौर पर घर
का नाम आते ही हर किसी को सुरक्षित और सकुन भरे ठिकाने का अहसास होने लगता है।
आखिर घर और बाहर में चारदीवारी का ही अंतर है। तो एक ईंट गारे की दीवार से ही सारे
मायने बदल कैसे जाते हैं? कैसे घर के अंदर का शांत इंसान चारदीवारी के उस पार जाते ही
हैवान बन जाता है?
आखिर क्या कारण है कि वह इन सारी हैवानियत को घर के अंदर अपने
माता पिता भाई बहन के सामने नहीं दिखाने का साहस कर पाता है?
उत्तर साफ है कि
भारतीय परंपराओं में घर के अंदर की स्थिति या अनुशासन वाकई गजब का होता है। घर के
अंदर सभी की जवाबदेही निर्धारित है। सभी अपनी अपनी जवाबदेहियों का पालन बहुत ही
बारीकी और सफाई के साथ कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर घर के बाहर कानून का शासन होता
है, समाज का डर
होता है। सामाजिक व्यवस्थाओं में पश्चिमी सभ्यता इस कदर हावी हो चुकी है कि अब
किसी को सामाजिक मान्यताओं और बाध्यताओं से लेना देना नहीं है। रही कानून की बात
तो कानून का डर समाप्त ही हो चुका है अपराधियों के मानस पटल से।
बच्चों के मामले
में ही अगर देखा जाए तो वर्ष 2011 साल 33 हजार 98 मामले बच्चों के खिलाफ अपराधों
के दर्ज हुए हैं। बच्चों के खिलाफ किए गए अपराधों का ग्राफ तेजी से उपर आया है
जहां वर्ष 2010 और 2011 की तुलना की जाए तो 2011 में बच्चों के खिलाफ हुए अपराधों
में 24 फीसदी की बढोत्तरी दर्ज की गई है। नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों
पर अगर गौर किया जाए तो 2010 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों में 7.1 फीसदी की
बढ़ोत्तरी के साथ आंकड़ा दो लाख 28 हजार तक पहुंच गया था 2011 में। महिलाओं के
अपराधों के मामले में पश्चिम बंगाल शिरोमणि रहा जहां 29 हजार 133 अपराध दर्ज हुए
हैं महिलाओं के खिलाफ।
गर्भ में लिंग
परीक्षण को अपराध का दर्जा दिया गया है, किन्तु फिर भी गर्भ में ही आखिर बालिकाओं को
मार कैसे दिया जाता है? जाहिर है लिंग परीक्षण का काम धड़ल्ले से चल रहा है। वरना लिंग
भेद या असुंतलन का कारण क्या है? आखिर क्या वजह है कि देश में एक हजार
पुरूषों पर महिलाओं का आंकड़ा 940 पर ही सिमट जाता है? आखिर क्या कारण है
कि जन्म से छः साल के आयु समूह में यह अनुपात घटकर 914 ही बचता है। कारण साफ है कि
अवैध तरीके से लिंग परीक्षण कर या बेटी के जन्म पर ही उसे मार दिया जा रहा है।
महिलाओं पर
बलात्कारों के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। बलात्कार के मामलों में बढोत्तरी दर से
देश के हाकिम भले ही चिंतित ना हों पर आम आदमी तो बुरी तरह हिल चुका है। अन्य
संगीन अपराधों की तुलना में बलात्कार के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से तीन गुना से
ज्यादा बढोत्तरी दर्ज की गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर गौर
फरमाया जाए तो महिलाओं पर ज्यादती के मामलों में 1971 से 2011 के बीच चालीस सालों
में 837 फीसदी की रिकार्ड बढोत्तरी दर्ज की गई है।
बलात्कार के मामले
में तो सारे रिकार्ड ही ध्वस्त हो चुके हैं। बलात्कार के मामलों पर एनसीआरबी का
रिकार्ड बतलाता है कि 2011 में देश में 24 हजार 206 बलात्कार के मामले प्रकाश में
आए। इनमें से सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले सुशासन का दावा करने वाले देश के हृदय
प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। एमपी में 2011
में 3406 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए इस राज्य में। विपक्ष में बैठी कांग्रेस
भी अपनी राजनैतिक रोटियां सेंककर खामोश हो जाती है।
देश की राजनैतिक
राजधानी दिल्ली में पिछले पांच सालों में बलात्कार के 2620 मामले दर्ज किए गए। देश
की आर्थिक राजधानी मुंबई में इस अवधि में 1033, बंग्लुरू में 383, चेन्नई में 293 तो
कोलकता में 200 मामले दर्ज किए गए। अब आप ही अंदाजा लगाईए कि देश की राजनैतिक
राजधानी जो किसी ना किसी वजह से साल में कमोबेश 365 दिन ही हाई एलर्ट पर रहती हो
वहां बलात्कार की मार सबसे ज्यादा है।
एक आम आंकलन के
अनुसार देश में जंगलराज की स्थापना हो चुकी है। यह जंगलराज रातोंरात नहीं आया है।
देश में कानून का भय समाप्त हो गया है। अपराध करने से लोग इसलिए नहीं डरते क्योंकि
उन्हें पता है कि सामाजिक वर्जनाएं तो कभी की तार तार हो चुकी हैं, अब समाज उनका
बहिष्कार कर भी देगा तो उन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। रही सही कसर निकाल दी कानून
का भय समाप्त करके। लोगों को पता है कि अगर आपके पास धन है तो कानून आप अपनी जेब
में रखकर चल सकते हैं। किसी भी मामले को इतना लंबा खिचवा सकते हैं कि आपकी उम्र
आराम से कट सकती है।
हमें जागना ही होगा, यह समूचा सागर
विषाक्त हो चुका है,
इसका मंथन कर विष और अमृत को अलग अलग करना ही होगा, वरना आने वाले समय
की भयावह तस्वीर की कल्पना मात्र ही हार्ट अटेक का कारण बन सकती है। हमें देश की
प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को देश के आदर्श, इतिहास और संस्कार के हिसाब से समृद्ध करना
ही होगा। अगर शिक्षा को लेकर प्रयोग चलते रहे तो आने वाले समय में हमारी पीढ़ी को
अधकचरे इतिहास और ज्ञान के कारण उपहास का पात्र बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
क्या संस्कार विहीन युवाओं के दम पर देश के सियासी तंबुओं में बैठे लोग आदर्श और
अभिनव भारत के निर्माण का सपना देख रहे हैं? (साई फीचर्स)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें