अहंकार छू भी नहीं
सकी रानी सा.को
(लिमटी खरे)
अगर कोई राजघराने
में ब्याहा जाए और आजाद भारत में उसके पति किसी सूबे के निजाम बन जाएं तो क्या एक
भारतीय स्त्री सहज,
सुलभ, पारिवारिक, मिलनसार रह सकती है? जी हां, कांग्रेस महासचिव
राजा दिग्विजय सिंह की धर्मपत्नि श्रीमति आशा सिंह वाकई सादगी की प्रतिमूर्ति थीं।
रानी सा. से ज्यादा मुलाकात का सौभाग्य तो नहीं मिला पर जितनी बार उनसे भेंट हुई
पता नहीं क्यों उनके अंदर मातृत्व की एक अजीब सी अनुभूति हुई हमेशा। जितने लोग भी
राजा दिग्विजय सिंह के मिलने वाले होंगे हर किसी से उनके सीएम रहते यही कहते कि
रानी सा.को अहंकार छू भी नहीं सका है।
कांग्रेस के अगली
पंक्ति के नेता, मध्य
प्रदेश में दस साल तक मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वर्तमान में महासचिव राजा
दिग्विजय सिंह की धर्मपत्नि श्रीमति आशा सिंह का बुधवार को नई दिल्ली के एक
अस्पताल में निधन हो गया। श्रीमति सिंह कई सालों से कैंसर से जूझ रहीं थीं। चार
पुत्री और एक पुत्र की माता श्रीमति सिंह का इलाज अमरीका में भी हो चुका है।
यह बात बिल्कुल
सत्य है कि सियासी चमक धमक आशा सिंह को डिगा नहीं सकी। वे जब भी किसी से मिलतीं
चाहे वह राजनैतिक रसूख वाला हो या पारिवारिक जान पहचान वाला, वे सदा ही उससे
उसके परिवार के हाल चाल ही जानतीं। लोग बताते रहते हैं कि आशा सिंह ने कभी किसी के
मंत्री पद या उसके रसूख के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश नहीं की।
गौरतलब है कि आशा
सिंह का विवाह राघोगढ़ राजघराने में राजा दिग्विजय सिंह के साथ हुआ। राजा दिग्विजय
सिंह बाद में दस साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। दस साल तक हमने सत्ता को
काफी करीब से देखा। उस वक्त भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री निवास पर
लगभग रोजाना ही जाना आना होता था।
यह वह दौर था जब
राजा दिग्विजय सिंह की मंशा के विपरीत राज्य में पत्ता भी नहीं खड़कता था। कांग्रेस
पूरी तरह सुरक्षित स्थिति में थी सरकार में। यही कारण था कि 1993 एवं 1998 में
दुबारा कांग्रेस ने धमाकेदार वापसी की थी सत्ता में। इस समय मुख्यमंत्री की पत्नि
होना अपने आप में एक बहुत सम्मान की बात थी।
मुख्यमंत्री निवास
में काम करने वाले हर किसी कर्मचारी के मुंह से श्रीमति आशा सिंह के बारे में रानी
सा. का संबोधन और उनके मातृत्व वाले गुण का ही बखान सुनने को मिलता था। यहां तक कि
उस वक्त के राजा दिग्विजय सिंह के सरकारी बुजुर्ग वाहन चालक के मन में रानी सा.के
लिए श्रृद्धा देखकर लगता था मानो ये पांच बच्चों की नहीं बल्कि समूचे प्रदेश की
मां हैं। सीएम हाउस में उस वक्त काम करने वालों का कहना था कि अगर सरकारी खर्च पर
सीएम हाउस में कुछ नया करवाने की बात उनके समक्ष की जाती तो तुरंत मना कर देती और
कहतीं कि इससे काम तो चल ही रहा है, क्या जरूरत है सरकारी पैसे को यहां खर्च
करने की।
मुख्यमंत्री निवास
में शायद ही किसी ने आशा सिंह को देखा हो। श्रीमति सिंह ने अपने आप को परिवार के
अंदर ही समेट रखा था। श्रीमति आशा सिंह के बारे में मशहूर था कि वे भले ही
सार्वजनिक जीवन में ना हों पर अगर उन्हें किसी के दुख दर्द के बारे में पता चलता
तो वे उसकी हर संभव मदद करने का प्रयास करतीं। उनकी विनम्रता वाकई लोगों को यहां
तक कि विरोधयों को उनके समझ झुकने पर मजबूर कर देती थी।
बुधवार रात्रि उनके
निधन के उपरांत देश भर से पत्रकार मित्रों के अनेक फोन आए। सभी की चाहत एक ही थी, श्रीमति आशा सिंह
का फोटो मिल जाए। हमने मशविरा दिया कि इंटरनेट से खोज लो, सभी ने कहा -‘‘भईए, इंटरनेट पर होती तो
तुम्हें काहे देते तकलीफ।‘‘ हम भी सोच में ही पड़ गए कि राजघराने की बहू, दस साल हृदय प्रदेश
के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव की अर्धांग्नी, का फोटो इंटरनेट पर
नहीं! निश्चित तौर पर यह आशा सिंह की सादगी और लो प्रोफाईल रहने का ही नतीजा कहा
जाएगा।
वाक्या 2002 का है, एक बार हम अपनी
माता जी के इलाज के लिए उन्हें भोपाल से विमान से दिल्ली ले जा रहे थे। इंडियन एयर
लाईंस के विमान में हमारी सीट के ठीक आगे की तीन सीट आरक्षित होने के कारण पलट कर
रख दी गईं थीं। विमान चलने के एन पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया विमान में आए और
आरक्षित सीट पर बैठ गए।
थोडी ही देर में
श्रीमति आशा सिंह विमान में पहुंची। उन्हें देखकर हमने उठकर उन्हें प्रणाम किया, उन्होंने हमसे
हालचाल जाना और सामने बैठ गईं। हमारी माताजी ने कौतुहलवश हमसे पूछा कि यह सुंदर
महिला कौन हैं? हमने
उन्हें बताया कि ये मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह की अर्धांग्नी हैं। माताजी के
चेहरे पर हैरत के भाव थे, वे बोलीं, इतने बड़े व्यक्तित्व की पत्नि और सादगी की
प्रतिमूर्ति।
एक और वाक्या याद आ
रहा है, बात 2004
की है, जब दिसंबर
2003 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और राजा दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री आवास
छोड़ना था। उस वक्त राजा दिग्विजय सिंह का सामान किसी अन्य बंग्ले में रखा जाना था।
राजा दिग्विजय सिंह,
श्रीमति आशा सिंह, उनके पुत्र और पुत्री एक बंग्ले में पहुंचे।
हम भी वहां मौजूद थे, पूरा घर देखने के बाद एक छोटे से कक्ष जो संभवतः अंग्रेजों के
जमाने में उस भवन की पेंट्री हुआ करती होगी, को देखकर वे अपनी पुत्री से बोलीं -‘‘इसे हम अपनी रसोई
बना लेंगे, जब कुछ
बनाना हो तो यहीं ठीक रहेगा ना!‘‘ हम चौक गए, राजघराने की बहू
खुद संभालतीं हैं रसोई! एसी सादगी की प्रतिमूर्ति को शत शत नमन! (साई फीचर्स)
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