ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
राजा ने फेंका पांस सोनिया को फांसा!
कांग्रेस में उपरी स्तर पर सब कुछ
सामान्य नहीं है। सत्ता का हस्तांतरण सोनिया गांधी से राहुल गांधी की ओर हो रहा है।
राहुल के नवरत्नों में नए लोगों की आमद ने पुराने चावलों को नाराज कर दिया है। कांग्रेस
के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (सोनिया का आवास) के सूत्रों
ने इस बात के संकेत दिए हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार से सोनिया गांधी राजा
दिग्जिवय सिंह से इस कदर नाराज थीं कि वे उन्हें वापस मध्य प्रदेश भेजने पर आमदा थीं।
सोनिया के विरोध के बाद भी राहुल गांधी ने अपने अघोषित राजनैतिक गुरू रहे राजा को अपनी
अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समीति में तो स्थान दे दिया पर वे उनकी किचिन कैबनेट में
स्थान नहीं पा सके। हाल ही में एक निजी चेनल के साथ चर्चा के दौरान राजा ने सोनिया
के दो पावर सेंटर को फेल्युअर बताकर बगावत का बिगुल फूंक दिया है। अब सोनिया बैकफुट
पर हैं, राजा जो अर्जुन सिंह के बाद के कांग्रेसी चाणक्य ठहरे!
बाजपेयी की विरासत पर नाज करते कांग्रेसी!
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार
2004 में सत्ता में आई। इसके उपरांत कांग्रेस ने विकास की आधारशिला रखकर देश को आगे
बढ़ाने का दावा किया जाने लगा। वस्तुतः विकास की सारी योजनाओं की आधारशिला पूर्व में
राजग के शासनकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने रखी थी। सड़क और रेल
कारीडोर से संपूर्ण भारत को जोड़ने की अभिनव योजना का श्रीगणेश बाजपेयी के शासनकाल में
ही हुआ था। देश की योजनाओं में भ्रष्टाचार का पलीता अवश्य लगाया है कांग्रेसनीत संप्रग
सरकार ने। संप्रग और कांग्रेस के खिलाफ लोगों का गुस्सा अब सतह पर है। अण्णा हजारे
और बाबा रामदेव केे आंदोलनों ने कांग्रेस को हिलाकर रख दिया है। अब कांग्रेस के नुमाईंदों
को चुनाव जीतने तक की चिंता सताने लगी है। उधर, हालातों से डरे राहुल गांधी ने भी
पीएम बनने से इंकार कर दिया है, तब मनमोहन सिंह तीसरी पारी का सपना देखकर खुश अवश्य हो
सकते हैं।
पीहर पर मेहरबान मनमोहन
देश के सियासी गलियारों में एक बात
घुमड़ रही है कि आखिर भारत सरकार आखिर इतालवी नागरिकों पर इतनी मेहरबानी क्यों दिखा
रही है? इसका सीधा सा उत्तर दिया जा रहा है क्योंकि इटली देश में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति
सोनिया गांधी का पीहर जो ठहरा। एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानना चाहा है कि देश में बंद
किसी नागरिक को क्या ईद या दीवाली मनाने उसके देश भेजा जा सकता है? जिस तरह क्रिसमस मनाने इतालवी
नागरिकों को भेजा गया था। इसके बाद उन दोनों को वोट डालने कैसे भेजा गया? क्या दोनों चुनाव लड़ रहे
थे। अगर मताधिकार की इतनी चिंता थी तो पोस्टल वैलेट से काम चलाया जा सकता था?
दो देशों के
बीच संधि क्या है इस बारे में भी भारत सरकार मौन है। लगता है मानो देश के संविधान को
एक तरफ रखकर अघोषित संविधान बनाकर उस पर देश चलाया जा रहा है।
उत्तर भारत में कांग्रेसी सांसदों
की बगावत!
उत्तर भारत के कांग्रेसी सांसद अब
सदन में अपनी अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की गरिमा का भी ध्यान नहीं रख पा रहे हैं।
रेल बजट पेश किया कांग्रेस के मंत्री पवन बंसल ने 17 साल बाद। बावजूद इसके अपने क्षेत्र
की उपेक्षा से नाराज उत्तर प्रदेश के सांसद जगदंबिका पाल ने सोनिया की उपस्थिति में
अपनी कमीज उताकर अफसरों को लानत मलानत भेजी और यहां तक कह डाला कि उन्हें वहां से चुनाव
जीतना है। सोनिया गांधी ने स्थिति को भांपा और उन्हें अपने आसन पर बैठने का आदेश दिया।
वे बैठ तो गए पर अचानक वे फिर खड़े हुए तब सोनिया गांधी ने शीला पुत्र सांसद संदीप दीक्षित
को उन्हें चुप कराने भेजा। उत्तर भारत के कांग्रेस के सांसद सकते में हैं कि इन परिस्थितियों
में उनकी वैतरणी पार कैसे लगेगी? उत्तर भारत में कांग्रेस के सांसदों में अगर विद्रोह
के स्वर प्रस्फुटित हो जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
एनडी की शरण में नेताजी
कांग्रेस के आला क्षत्रप 88 साल के
नारायण दत्त तिवारी को भले ही कांग्रेस बेकार समझ रही हो, किन्तु तिवारी को इस समय
नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव झेल रहे हैं। इसका कारण यह है कि नारायण दत्त तिवारी
पुराने समाजवादी जो ठहरे। तिवारी का नैनीताल क्षेत्र में जलजला है। कहा जाता है कि
वे अटल बिहारी बाजपेयी की तरह ही नैनीताल से बिना चुनाव प्रचार के भी जीत दर्ज करवा
सकते हैं। उत्तर प्रदेश से चार बार सीएम रहे तिवारी लंबे समय तक उत्तर प्रदेश सरकार
के सरकारी मेहमान बने रहे। नेताजी अल्प संख्यकों को तो साध चुके हैं सूबे के ब्राम्हण
वोटों के लिए वे तिवारी का उपयोग करना चाह रहे हैं। नेताजी इन दिनों तिवारी पर इस कदर
फिदा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने तिवारी के एक पुरानी कोठी के जीर्णोद्धार में एक
करोड़ रूपए से ज्यादा की रकम फूंक दी है। किसी ने सही ही कहा है कि नेताजी को नगीनों
की परख अन्य लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा है।
राकांपा की उड़ती नींद का राज
महाराष्ट्र में सब कुछ ठाकरे ब्रदर्स
की मर्जी के हिसाब से ही चलता है। वे चाहें जिसे गालियां दें जिसे मारें पीटें देश
का कानून भी उनके आड़े नहीं आ सकता है। पिछले दिनों ठाकरे ब्रदर्स में से चालाक चपल
रााज ठाकरे के साथ भाजपा की गलबहियों ने राकांपा की नीद उड़ाकर रख दी है। सूबे में विधानसभा
चुनाव होने वाले हैं, इन परिस्थितियों में अगर राज और भाजपा के बीच समझौता हो गया
तो राकांपा और कांग्रेस दोनों ही के लिए खतरे की घंटी बजना स्वाभाविक ही माना जा रहा
है। पिछले महीने गोवा में एक मशहूर उद्योगपति गौतम अदानी के बेटे की शादी में टेबिल
पर राज ठाकरे के साथ नरेंद्र मोदी को देखकर सभी का माथा ठनका। दोनों के बीच क्या बात
हुई यह तो दोनों ही जाने पर राज ठाकरे ने अब उत्तर भारतीयों को छोड़ अपनी तोप का मुंह
एनसीपी के मंत्रियों की ओर कर दिया है। मीडिया मैनेजमेंट में माहिर राज की इस चाल से
राकांपा की नींद उड़ना स्वाभाविक ही माना जा रहा है।
अण्णा की बखिया उधेड़ने में लगी कांग्रेस
कांग्रेस की नींद हराम करने वाले
अण्णा हजारे के खिलाफ अब कांग्रेस ने जमीनी स्तर पर जहरबुझे तीर चलाना आरंभ कर दिए
हैं। कांग्रेस मुख्यालय के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के एक धड़े को अण्णा हजारे
को बदनाम करने का काम सौंपा गया है। इस धड़े ने अण्णा की जन्मपत्री निकालना आरंभ कर
दिया है। सूत्रों ने कहा कि अण्णा हजारे ने तीसरी बार अपनी नई टीम के लिए स्वयं सेवकों
को भर्ती करना आरंभ किया है। इसके पहले उन्होने 1992 में पहली बार और 1997 में दूसरी
बार लोगों की भर्ती की थी। आज अण्णा के साथ पहली दो भर्तियों के लोग नहीं है। अण्णा
और अरविंद केजरीवाल के अलग होने की कहानी यह बताई जा रही है कि अण्णा भाजपा के रिमोट
से चल रहे थे, पर केजरीवाल भाजपा पर हमला बोल रहे थे, यही कारण था कि केजरीवाल से अण्णा
अलग हो गए। इन बातों के कितनी सच्चाई है यह तो वे ही जाने पर जब अफवाहें फैलती हैं
तो अच्छे अच्छे मजबूत दरख्त भी उखड़ जाते हैं।
हुड्डा की नाक में दम करतीं शैलजा!
हरियाणा सूबे की दलित केंद्रीय मंत्री
कुमारी शैलजा ने इन दिनों सूबे के निजाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नाक में दम कर रखा
है। कहा जाता है कि हुड्डा द्वारा शैलजा के संसदीय क्षेत्र की घोर उपेक्षा की जा रही
है। एक दशक पहले कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की करीबी रहीं कुमारी शैलजा
इस समय उपेक्षित पड़ी हैं। हरियाणा के दलितों को उनका वाजिब हक ना मिल पाने की शिकायत
उन्होंने कई बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से की है। हर बार शैलजा को मुंह की ही खानी
पड़ी है। हुड्डा और शैलजा के बीच रार इस कदर बढ़ चुकी है कि पिछले माह जब महामहिम राष्ट्रपति
सूरजकुंड मेले के उद्घाटन के लिए आए तब भी शैलजा को राज्य सरकार ने आमंत्रित ही नहीं
किया। शैलजा ने हुड्डा के विरोधियों से भी हाथ मिलाए पर इसका कुछ लाभ नहीं हुआ। ना
तो सोनिया गांधी और ना ही मनमोहन सिंह इस बारे में कुछ सुनने को तैयार दिख रहे हैं।
ठाकुरों का वर्चस्व दिखने लगा महाकौशल
में!
देश के हृदय प्रदेश की संस्कारधानी
मानी जाता है जबलपुर को। जबलपुर और आसपास के जिलों को मिलाकर महाकौशल अंचल अप्रत्यक्ष
तौर पर आज भी अस्तित्व में समझा जाता है। इस महाकौशल पर कांग्रेस की तरफ से आजादी के
उपरांत पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा का बोलबाला था तो फिर यहां पंडित गार्गीशंकर मिश्र
और विमला वर्मा की तूती बोली। नब्बे के दशक के आरंभ होते ही महाकौशल पर छिंदवाड़ा के
सांसद कमल नाथ का दबदबा बढ़ने लगा। अब एक बार फिर वर्चस्व की जंग में महाकौशल में ठाकुर
लाबी हावी होती दिख रही है। महाकौशल के अधिकांश कांग्रेसी नेता अब अपनी आस्था बदलते
दिख रहे हैं। कोई राजा दिग्विजय सिंह को अपना आका मान रहा है तो कोई अजय सिंह राहुल
का दामन थाम रहा है। बचे खुचे नेता मनराखनलाल हरवंश सिंह की शरण में जाना पसंद कर रहे
हैं।
मोदी की राह में शिव का रोढ़ा!
भाजपा में शीर्ष स्तर पर गुजरात के
निजाम नरेंद्र मोदी ने अपना सिक्का जमा लिया है। नरेंद्र मोदी की उपरी स्तर पर स्वीकार्यता
लगभग तय हो चुकी है। मोदी की राह में बस एक ही रोढ़ा नजर आ रहा है वह हैं एमपी के निजाम
शिवराज सिंह चौहान। सीधी साधी छवि वाले पांव पांव वाले भईया शिवराज सिंह चौहान लोकप्रियता
के मामले में नरेंद्र मोदी से बीस ही नजर आ रहे हैं। गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी
हाईटेक हुए तो अब शिवराज उनसे दो कदम आगे निकलने आतुर दिख रहे हैं। मध्य प्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा चुनाव के दौरान एक साथ 250 स्थानों पर सभाएं
संबोधित करते नजर आएंगे। हाईटेक तरीके से होने वाले इस चुनाव प्रचार में चौहान गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी आगे रहेंगे, क्योंकि मोदी ने एक साथ सिर्फ 53
सभाओं को ही संबोधित किया था। वहीं कहते हैं कि सुषमा स्वराज को अपनी सींची गई विदिशा
संसदीय सीट देकर बहुत दूर की कौडी खेली थी शिवराज ने।
पुच्छल तारा
होली के अवसर पर देश भर में जमकर
धूम हुई लोगों ने जमकर भांग मदिरा का सेवन किया। इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग वेब साईट
भी इससे अछूती नहीं रही। एक पोस्ट ने कांग्रेस की हालत बयां कर दी। इस पोस्ट में कांग्रेस
के अखिल भारतीय स्तर से जिला स्तर के संगठन को बयां किया गया है। अखिल भारतीय कांग्रेस
कमेटी जिसे एआईसीसी कहा जाता है को ये आई शीशी कहा गया। प्रदेश की कांग्रेस समिति तो
पीसीसी कहा जाता है को पी शीशी कहा गया और फिर जिला कांग्रेस कमेटी को डीसीसी कहा जाता
है को शीशी को पीने के बाद फेंकने वाले अंदाज में दी शीशी कहा गया है। (साई फीचर्स)
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